श्रीनगर: पहाड़ी क्षेत्रों में मॉनसून अमूमन जूलाई-अगस्त में आता है. लेकिन इस साल पहले ही मॉनसून की दस्तक ने वैज्ञानिकों में चिंता पैदा कर दी है. प्रदेश में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम के अभाव के चलते ऐसे हालातों का पता नहीं चल पाता है. जिससे प्रदेश में बड़ी आपदा के होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं.
वैज्ञानिकों ने प्रदेश में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए जाने की वकालत की है. उनका कहना है कि जो बारिश 15 जुलाई के आस-पास होती है वो जून माह में हो रही है. इस साल अरेबियन सी में आये साइक्लोन, बे ऑफ बंगाल में साइक्लोन सर्कुलेशन से मॉनसून ट्रिगर हुआ और वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के चलते आ रही मॉनसूनी हवा को इसका कारण बताया.
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गढ़वाल विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर डॉ. आलोक सागर गौतम ने बताया कि ऐसी आपदाओं से बचा जा सकता है. बशर्ते प्रदेश में उन्नत किस्म के अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगे हों. जिससे पहले ही फोरकास्ट के बारे में आम पब्लिक को जानकारी दी जा सके. उनका कहना है कि जून में शुरू हुई बारिश आगे भी इसी तरह जारी रहेगी.