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स्वर्ण जंयती: 50 साल बाद भी पलायन और रोजगार की समस्या से जूझ रहा पौड़ी

50 साल होने पर पौड़ी मुख्यालय में स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है. जिसको लेकर गढ़वाल के लोगों का कहना है कि प्रदेश के अधिकतर मंडलीय कार्यालय देहरादून में शिफ्ट हो जाने से आज पौड़ी से मैदानी इलाकों की तरफ पलायन हो रहा है.

पलायन और रोजगार की समस्याओं से जूझ रहा पौड़ी.
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Published : Jun 30, 2019, 9:19 AM IST

पौड़ी: गढ़वाल कमिश्नरी के 50 साल होने पर पौड़ी मुख्यालय में स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है. 1 जनवरी 1969 को गढ़वाल कमिश्नरी का निर्माण किया गया था. कमिश्नरी बनने के बाद पौड़ी को मुख्यालय घोषित किया गया. लेकिन इसके बाद बावजूद ये जिला आज भी पलायन और रोजगार की समस्याएं झेल रहा हैं. इसका कारण है उत्तराखंड बनने के बाद पौड़ी से मंडलीय कार्यालय धीरे-धीरे देहरादून शिफ्ट होते चले गए, जिस कारण यहां पर लोगों का रुकने का रुझान कम होता चला गया. साथ ही लोग वर्तमान में पौड़ी छोड़ राजधानी या अन्य मैदानी क्षेत्रों की तरफ रुख करने लगे हैं.

पलायन और रोजगार की समस्याओं से जूझ रहा पौड़ी.

वरिष्ठ पत्रकारों के अनुसार, साल 1969 के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. बी गोपाला रेड्डी ने यह सोचकर इसका निर्माण किया था कि अध्यात्म और प्राकृतिक सुंदरता से भरे इस गढ़वाल में प्रशासनिक इकाइयों को सुनियोजित करना चाहिए. विकास की धीमी गति और अधिकारियों की कम आवाजाही होने के कारण कुमाऊं और गढ़वाल की मंडल दोनों को अलग कर दिया गया.

वरिष्ठ पत्रकार अनिल बहुगुणा ने बताया कि गढ़वाल मंडल निर्माण के पीछे का उद्देश्य था कि इसे छोटे सचिवालय के रूप में संचालित किया जाए, जिससे इस परिधि में आने वाले पूरे क्षेत्रों के विकास कार्य में तेजी आ सके. वहीं, अब गढ़वाल मंडल के 50 साल पूरे होने पर कमिश्नरी स्वर्ण जयंती के रूप में धूमधाम से मनाई जा रही है. साथ ही मंडलीय कार्यालयों को देहरादून से संचालित किया जा रहा है. पौड़ी मुख्यालय की रौनक धीरे-धीरे समाप्त होने की कगार पर है, जिस कारण लोगों को हर काम के लिए राजधानी दून की ओर रुख करना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें: कांग्रेस में इस्तीफों का दौर जारी, पर उत्तराखंड में कोई नहीं लेना चाहता हार की जिम्मेदारी?

वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत ने बताया कि उत्तराखंड पृथक राज्य बनने के बाद पहाड़ी क्षेत्रों का विकास किया जाना था, लेकिन धीमी गति से हो रहे विकास और मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण ही लोग मैदानी क्षेत्रों की तरफ रुख करते चले गए. यूपी के दौरान पौड़ी मुख्यालय में शिक्षा स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया होती थी. प्रदेश बनने के बाद इन सुविधाओं में वृद्धि होनी चाहिए थी, लेकिन इनमें तेजी से हो रही कमी के कारण लोग राजधानी दून की ओर रुख करने लगे.

अजय रावत ने बताया कि गढ़वाल मंडल में सर्वाधिक पलायन वाला क्षेत्र पौड़ी है. यदि इतिहास पर नजर डालें तो पौड़ी ने प्रदेश को चार मुख्यमंत्री दिए हैं. इसके बावजूद पौड़ी विकास के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है. साथ ही पत्रकार ने बताया कि गढ़वाल कमिश्नरी की स्वर्ण जयंती का कार्यक्रम सफल तभी माना जाएगा, जब सभी मंडलीय कार्यालय पौड़ी मुख्यालय में संचालित किए जाएंगे.

पौड़ी: गढ़वाल कमिश्नरी के 50 साल होने पर पौड़ी मुख्यालय में स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है. 1 जनवरी 1969 को गढ़वाल कमिश्नरी का निर्माण किया गया था. कमिश्नरी बनने के बाद पौड़ी को मुख्यालय घोषित किया गया. लेकिन इसके बाद बावजूद ये जिला आज भी पलायन और रोजगार की समस्याएं झेल रहा हैं. इसका कारण है उत्तराखंड बनने के बाद पौड़ी से मंडलीय कार्यालय धीरे-धीरे देहरादून शिफ्ट होते चले गए, जिस कारण यहां पर लोगों का रुकने का रुझान कम होता चला गया. साथ ही लोग वर्तमान में पौड़ी छोड़ राजधानी या अन्य मैदानी क्षेत्रों की तरफ रुख करने लगे हैं.

पलायन और रोजगार की समस्याओं से जूझ रहा पौड़ी.

वरिष्ठ पत्रकारों के अनुसार, साल 1969 के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. बी गोपाला रेड्डी ने यह सोचकर इसका निर्माण किया था कि अध्यात्म और प्राकृतिक सुंदरता से भरे इस गढ़वाल में प्रशासनिक इकाइयों को सुनियोजित करना चाहिए. विकास की धीमी गति और अधिकारियों की कम आवाजाही होने के कारण कुमाऊं और गढ़वाल की मंडल दोनों को अलग कर दिया गया.

वरिष्ठ पत्रकार अनिल बहुगुणा ने बताया कि गढ़वाल मंडल निर्माण के पीछे का उद्देश्य था कि इसे छोटे सचिवालय के रूप में संचालित किया जाए, जिससे इस परिधि में आने वाले पूरे क्षेत्रों के विकास कार्य में तेजी आ सके. वहीं, अब गढ़वाल मंडल के 50 साल पूरे होने पर कमिश्नरी स्वर्ण जयंती के रूप में धूमधाम से मनाई जा रही है. साथ ही मंडलीय कार्यालयों को देहरादून से संचालित किया जा रहा है. पौड़ी मुख्यालय की रौनक धीरे-धीरे समाप्त होने की कगार पर है, जिस कारण लोगों को हर काम के लिए राजधानी दून की ओर रुख करना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें: कांग्रेस में इस्तीफों का दौर जारी, पर उत्तराखंड में कोई नहीं लेना चाहता हार की जिम्मेदारी?

वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत ने बताया कि उत्तराखंड पृथक राज्य बनने के बाद पहाड़ी क्षेत्रों का विकास किया जाना था, लेकिन धीमी गति से हो रहे विकास और मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण ही लोग मैदानी क्षेत्रों की तरफ रुख करते चले गए. यूपी के दौरान पौड़ी मुख्यालय में शिक्षा स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया होती थी. प्रदेश बनने के बाद इन सुविधाओं में वृद्धि होनी चाहिए थी, लेकिन इनमें तेजी से हो रही कमी के कारण लोग राजधानी दून की ओर रुख करने लगे.

अजय रावत ने बताया कि गढ़वाल मंडल में सर्वाधिक पलायन वाला क्षेत्र पौड़ी है. यदि इतिहास पर नजर डालें तो पौड़ी ने प्रदेश को चार मुख्यमंत्री दिए हैं. इसके बावजूद पौड़ी विकास के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है. साथ ही पत्रकार ने बताया कि गढ़वाल कमिश्नरी की स्वर्ण जयंती का कार्यक्रम सफल तभी माना जाएगा, जब सभी मंडलीय कार्यालय पौड़ी मुख्यालय में संचालित किए जाएंगे.

Intro:गढ़वाल कमिश्नरी के 50 साल होने पर पौड़ी मुख्यालय में स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है। 1 जनवरी 1969 को गढ़वाल कमिश्नरी का निर्माण किया गया था गढ़वाल कमिश्नरी बनने के बाद पौड़ी को मुख्यालय रखा गया और उत्तर प्रदेश के समय दूर-दूर से लोग पौड़ी मुख्यालय पहुंचे थे और उस दौरान यहां पर काफी चहल-पहल रहती थी उत्तराखंड बनने के बाद पौड़ी से मंडलीय कार्यालय धीमे-धीमे देहरादून शिफ्ट होते चले गए जिस कारण यहां पर लोगों का रुकने का रुझान कम होता चला गया और सुविधाओं की प्राप्ति के लिए लोग अस्थाई राजधानी देहरादून के तरफ दौड़ते चले गए। वर्तमान में हालात ऐसे हैं कि लोग पौड़ी छोड़ देहरादून या अन्य मैदानी क्षेत्रों की तरफ रुख कर रहे हैं।


Body:वरिष्ठ पत्रकारों के अनुसार साल 1969 के तत्कालीन राज्यपाल डॉ बी गोपाला रेड्डी ने यह सोचकर इसका निर्माण किया की अध्यात्म और प्राकृतिक सुंदरता से भरे  इस गढ़वाल में  प्रशासनिक इकाइयों को चलाना चाहिए। विकास की धीमी गति और  अधिकारियों की कम आवाजाही  होने के चलते  कुमाऊं और गढ़वाल की मंडल  दोनों को अलग अलग कर दिया गया। गढ़वाल मंडल के निर्माण के पीछे उद्देश्य था कि इसे छोटे सचिवालय के रूप में यहां पर संचालन किया जाए ताकि इस परिधि में आने वाले पूरे क्षेत्रों के विकास कार्य में तेजी आ सके। गढ़वाल मंडल के 50 साल पूरे होने पर स्वर्ण जयंती के रूप में से बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है लेकिन इसके पीछे छुपे दर्द को भी देखना जरूरी है जिस तरह लगातार मंडलीय कार्यालयों को देहरादून से संचालित किया जा रहा है उसे  पौड़ी मुख्यालय की रौनक धीमें  धीमें समाप्त होती जा रही है वर्तमान समय में हालात यह है कि पौड़ी के लोगों को ही हर छोटे कार्यों  के लिए अस्थाई राजधानी देहरादून की ओर रुख करना पड़ता है।

बाईट-अनिल बहुगुणा(वरिष्ठ पत्रकार)


Conclusion:वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत बताते हैं कि उत्तराखंड पृथक राज्य बनने के बाद पहाड़ी क्षेत्रों का विकास किया जाना था लेकिन धीमी गति से हो रहे विकास और मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण ही लोग मैदानी क्षेत्रों की तरफ बढ़ते चले गए। उत्तर प्रदेश समय के दौरान पौड़ी मुख्यालय में शिक्षा स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं मैया होती थी लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद इन सुविधाओं में वृद्धि होनी चाहिए थी लेकिन इनमें तेजी से हो रही कमी के कारण  लोग राजधानी की ओर चलते गए। और आज हालात यह है कि गढ़वाल मंडल में सर्वाधिक पलायन वाला क्षेत्र भी पौड़ी ही है यदि इतिहास पर नजर डालें तो पौड़ी ने प्रदेश को चार चार मुख्यमंत्री दिए हैं बावजूद इसके पौड़ी के विकास के लिए कमियां क्यों हो जाती हैं। वर्तमान में पौड़ी के अधिकतर मंडलीय कार्यालय को देहरादून से संचालित किया जाता है और देहरादून से संचालित होने के चलते लोग अधिकतर कार्य के लिए अस्थाई राजधानी का रुख करते हैं जिससे उनका पहाड़ के लिये मोह खत्म होता जा रहा है  उन्होंने बताया कि स्वर्ण जयंती के रूप में मनाए जा रहे हैं भव्य कार्यक्रम को तभी सफल माना जाएगा जब सभी मंडलीय कार्यालयों को पौड़ी मुख्यालय से संचालित किया जाए ताकि सभी 7 जिलों के लोग  कार्यों के लिए देहरादून न जाकर पौड़ी मुख्यालय पहुंचे।

बाईट-अजय रावत(वरिष्ठ पत्रकार)
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