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गुलदार पकड़ने के लिए अब NIT बनाएगा इलेक्ट्रॉनिक पिंजरे, वन विभाग ने सौंपी जिम्मेदारी

प्रदेश में अब तक गुलदार को पकड़ने के लिए जिन पिंजरों का इस्तेमाल किया जाता था, अब उनका रूप बदलने जा रहा है. अब ये पिंजरे वजन में हल्के ओर इलेक्ट्रॉनिक रूप में आम जन को दिखाई पड़ेंगे. इसके लिए वन महकमे ने एनआईटी उत्तराखंड को इन्हें बनाने की जिम्मेदारी दी है.

cage for Guldar
गुलदार के लिए पिंजरा
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Published : Mar 30, 2023, 8:57 AM IST

Updated : Mar 30, 2023, 11:23 AM IST

गुलदार के लिए पिंजरा

श्रीनगर: एनआईटी ने गुलदार पकड़ने के पिंजरों के वजन में बदलाव करके इन्हें 120 किलो से घटा कर 80 किलो तक बना दिया है. साथ में अब इन पिंजरों को विभाग के लोग ऑटोमेटिक ढंग से भी ऑपरेट कर पायेंगे. इससे पकड़े गए गुलदार को पिंजरे सहित आसानी से वाहन तक ले जाया जा सकेगा. इससे गुलदार को रेस्क्यू करने की कार्रवाई जल्द शुरू की जा सकेगी और इसे सुरक्षित बनाया जा सकेगा. इसके लिए वन विभाग ने एनआईटी के यांत्रिक अभियांत्रिकी विभाग को जिमेदारी सौपी हैं.

ये बनाएंगे इलेक्ट्रॉनिक पिंजरा: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान उत्तराखंड के अभियांत्रिकी विभाग में सहायक प्राध्यापक पद पर कार्यरत डॉ विनोद सिंह यादव, डॉ डी श्रीहरि एवं डॉक्टर विकास कुकसाल को उत्तराखंड वन विभाग ने मानव गुलदार संघर्ष प्रबंधन के अंतर्गत परामर्श परियोजना प्रदान की है. इसके अंतर्गत संस्थान को पोर्टेबल, मजबूत, हल्के वजन और उन्नत ट्रैप केज (जाल पिंजरे) का डिजाइन और पशु सहित जाल-पिंजरे को संभालने के लिए वाहन की स्वचालित प्रणाली का डिज़ाइन बनाने का उत्तरदायित्व दिया गया है.

इलेक्ट्रॉनिक पिंजरे से जल्द होगा गुलदार का रेस्क्यू: संस्थान के निदेशक प्रोफेसर ललित कुमार अवस्थी ने इस अवसर पर ख़ुशी व्यक्त करते हुए कहा कि एनआईटी उत्तराखंड की टीम पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के क्षेत्र में लगातार काम कर रही है. स्थानीय लोगों के विकास और सुरक्षा के संदर्भ में संभावित समाधान प्रदान कर रही है. इसमें मानव और बाघ, गुलदार जैसे हिंसक जानवरों का संघर्ष सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक अभिव्यक्ति है. उन्होंने बताया कि भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय एवं अन्य वन्यजीव ट्रस्ट इस संघर्ष को नियंत्रित करने के लिए बेहतर तकनीकों और तरीकों को खोजने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं.

डिजाइन का करेंगे पेटेंट: प्रोफेसर ललित कुमार अवस्थी ने आगे कहा कि इस दृष्टि से पारंपरिक और भारी ट्रैपिंग सिस्टम को बदलने के लिए उत्तराखंड वन प्रभाग द्वारा उठाया गया यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सराहनीय कदम है. संस्थान अन्य भारतीय वन विभागों को डिजाइन प्रदान करेगा, ताकि वे भी नवीनतम डिजाइन से लाभान्वित हो सकें. संस्थान वन विभाग की स्वीकृति के बाद डिजाइन को पेटेंट कराने की भी योजना बना रहा है. ताकि नये रोजगार सृजित करने के अवसरों में वृद्धि हो सके.
ये भी पढ़ें: हरिद्वार में पहली बार दिखा टाइगर? सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो का जानें सच

इस मौके पर डॉ विनोद सिंह यादव (प्रमुख अन्वेषक) ने बताया कि पौड़ी गढ़वाल जिले के प्रभागीय वनाधिकारी स्वप्निल अनिरुद्ध ने हमसे संपर्क किया और बताया कि पारंपरिक ट्रैपिंग प्रणाली के कारण उसमें काम करने वाले लोगों और अधिकारियों को पिंजरे के वजन और परिवहन व्यवस्था से संबंधित बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने नवीनतम प्रणाली प्रदान करने के लिए कहा जो उन्हें कुशल तरीके से जानवरों को पकड़ने में मदद करे. उन्होंने बताया कि नई तकनीक से पिंजरे पर काम खत्म होने वाला है. प्रोटोटाइप बना दिया गया है. जल्द विभाग को इस प्रोटोटाइप को सौंप दिया जाएगा.

गुलदार के लिए पिंजरा

श्रीनगर: एनआईटी ने गुलदार पकड़ने के पिंजरों के वजन में बदलाव करके इन्हें 120 किलो से घटा कर 80 किलो तक बना दिया है. साथ में अब इन पिंजरों को विभाग के लोग ऑटोमेटिक ढंग से भी ऑपरेट कर पायेंगे. इससे पकड़े गए गुलदार को पिंजरे सहित आसानी से वाहन तक ले जाया जा सकेगा. इससे गुलदार को रेस्क्यू करने की कार्रवाई जल्द शुरू की जा सकेगी और इसे सुरक्षित बनाया जा सकेगा. इसके लिए वन विभाग ने एनआईटी के यांत्रिक अभियांत्रिकी विभाग को जिमेदारी सौपी हैं.

ये बनाएंगे इलेक्ट्रॉनिक पिंजरा: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान उत्तराखंड के अभियांत्रिकी विभाग में सहायक प्राध्यापक पद पर कार्यरत डॉ विनोद सिंह यादव, डॉ डी श्रीहरि एवं डॉक्टर विकास कुकसाल को उत्तराखंड वन विभाग ने मानव गुलदार संघर्ष प्रबंधन के अंतर्गत परामर्श परियोजना प्रदान की है. इसके अंतर्गत संस्थान को पोर्टेबल, मजबूत, हल्के वजन और उन्नत ट्रैप केज (जाल पिंजरे) का डिजाइन और पशु सहित जाल-पिंजरे को संभालने के लिए वाहन की स्वचालित प्रणाली का डिज़ाइन बनाने का उत्तरदायित्व दिया गया है.

इलेक्ट्रॉनिक पिंजरे से जल्द होगा गुलदार का रेस्क्यू: संस्थान के निदेशक प्रोफेसर ललित कुमार अवस्थी ने इस अवसर पर ख़ुशी व्यक्त करते हुए कहा कि एनआईटी उत्तराखंड की टीम पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के क्षेत्र में लगातार काम कर रही है. स्थानीय लोगों के विकास और सुरक्षा के संदर्भ में संभावित समाधान प्रदान कर रही है. इसमें मानव और बाघ, गुलदार जैसे हिंसक जानवरों का संघर्ष सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक अभिव्यक्ति है. उन्होंने बताया कि भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय एवं अन्य वन्यजीव ट्रस्ट इस संघर्ष को नियंत्रित करने के लिए बेहतर तकनीकों और तरीकों को खोजने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं.

डिजाइन का करेंगे पेटेंट: प्रोफेसर ललित कुमार अवस्थी ने आगे कहा कि इस दृष्टि से पारंपरिक और भारी ट्रैपिंग सिस्टम को बदलने के लिए उत्तराखंड वन प्रभाग द्वारा उठाया गया यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सराहनीय कदम है. संस्थान अन्य भारतीय वन विभागों को डिजाइन प्रदान करेगा, ताकि वे भी नवीनतम डिजाइन से लाभान्वित हो सकें. संस्थान वन विभाग की स्वीकृति के बाद डिजाइन को पेटेंट कराने की भी योजना बना रहा है. ताकि नये रोजगार सृजित करने के अवसरों में वृद्धि हो सके.
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इस मौके पर डॉ विनोद सिंह यादव (प्रमुख अन्वेषक) ने बताया कि पौड़ी गढ़वाल जिले के प्रभागीय वनाधिकारी स्वप्निल अनिरुद्ध ने हमसे संपर्क किया और बताया कि पारंपरिक ट्रैपिंग प्रणाली के कारण उसमें काम करने वाले लोगों और अधिकारियों को पिंजरे के वजन और परिवहन व्यवस्था से संबंधित बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने नवीनतम प्रणाली प्रदान करने के लिए कहा जो उन्हें कुशल तरीके से जानवरों को पकड़ने में मदद करे. उन्होंने बताया कि नई तकनीक से पिंजरे पर काम खत्म होने वाला है. प्रोटोटाइप बना दिया गया है. जल्द विभाग को इस प्रोटोटाइप को सौंप दिया जाएगा.

Last Updated : Mar 30, 2023, 11:23 AM IST
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