पौड़ी: पलायन को रोकने का सरकार लगातार प्रयास कर रही है. लेकिन नब्ज का पता चलने के बावजूद मर्ज पर मलहम नहीं लगा पा रही है. वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार गढ़वाल मंडल में सर्वाधिक पलायन पौड़ी जनपद से हुआ है. जिसमें बीजेपी के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का गांव भी है. जहां लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन कर रहे हैं. खुद अनिल बलूनी का परिवार पलायन से ग्रस्त है और वे पलायन रोकने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं.
गौर हो कि सरकार द्वारा प्रदेश में पलायन को रोकने के लिए पलायन आयोग का गठन किया गया है. वहीं पौड़ी में विभाग की ओर से गांव-गांव तक जाकर सर्वे कर पलायन के कारणों को जानने की कोशिश की गई और सर्वे के बाद देखा गया कि अधिकतर लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की वजह से पलायन कर गए. जिसमें बीजेपी के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का गांव भी है. जहां लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन कर रहे हैं. खुद अनिल बलूनी का परिवार पलायन से ग्रस्त है और वे पलायन रोकने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं.
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वहीं अनिल बलूनी की भतीजी राधिका जो कि राजकीय प्राथमिक विद्यालय दोनंदल में पढ़ती हैं, जो नकोट गावं से करीब 3 किलोमीटर दूर है. रास्ता खराब और दूर होने के चलते राधिका की मां या राधिका की दादी उन्हें रोजाना स्कूल पहुंचाती और लाती है. रास्ते में जंगली जानवरों की डर के चलते उन्हें अकेले स्कूल नहीं भेजा जा सकता. उन्होंने बताया कि उनके परिवार से वह एकमात्र बालिका है जो पढ़ने जाती हैं. यदि गांव के पास स्कूल होता तो राधिका को 6 किलोमीटर पैदल आना जाना नहीं पड़ता.
राधिका की मां बीना देवी बताती है कि गांव में बहुत कम लोग रह गए हैं और गांव में बच्चों की संख्या कम होने के चलते हैं स्कूल 3 किलोमीटर दूर शिफ्ट हो गया है. गांव के कुछ लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए शहरों का रुख कर गए हैं. जिससे गांव की आबादी कम होती जा रही है. उत्तराखंड राज्य बनने के समय करीब 200 परिवार निवास करते थे और आज यहां मात्र 20 परिवार ही रह गए है.
अनिल बलूनी की चाची (राधिका की दादी) सुलोचना देवी बताती है कि पिछले 5 सालों से वह राधिका को स्कूल लेकर जाते हैं और स्कूल से लेकर आते हैं. गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर राजकीय प्राथमिक विद्यालय दोनंदल में पढ़ती है और रास्ते में जंगली जानवरों के खौफ से अकेले नहीं भेजा जा सकता. इसलिए वह स्वयं उसे स्कूल लेकर जाती है उन्होंने बताया कि अनिल बलूनी जब 8 साल के थे तो वे गांव को छोड़ कर चले गए थे. आज तक नहीं आए उन्हें उम्मीद थी कि इस बार इगास के त्योहार में आएंगे.
लेकिन स्वास्थ्य खराब होने के चलते इस बार नहीं आ पाए. उन्होंने सरकार से गांव में शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार की मांग की, जिससे पलायन रुक सके. उन्होंने आगे बताया कि आज गांव में वही लोग रह गए हैं, जो रोजगार नहीं करते हैं या जो उम्र से काफी अधिक हैं.