कोटद्वार: स्वतंत्रता के आंदोलन में अग्रणीय रहा पौड़ी जिले का दुगड्डा क्षेत्र आज भी आजादी की यादों को संजोकर रखे हुए है. कोटद्वार से करीब 17 किलोमीटर दूर सेन्धिखाल मार्ग पर बना आजादी के नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का शहीदी स्मारक उनके यहां आने और शस्त्र प्रशिक्षण की कहानी बयां कर रहा है. आजाद अगस्त 1930 में अपने साथियों के साथ दुगड्डा आए थे.
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान दुगड्डा के पास नाथूपुर निवासी क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत के आग्रह पर अगस्त 1930 में चंद्रशेखर आजाद अपने साथियों रामचंद्र, हजारीलाल, छैल बिहारी व विशंभर दयाल के साथ दुगड्डा आए थे. यहां नौडी के जंगलों में उन्होंने अपनी पिस्टल से निशाना आजमाया था. साझासैण के समीप वन क्षेत्र में प्रशिक्षण के दौरान चंद्रशेखर आजाद ने साथियों के आग्रह पर अपने निशाने का प्रमाण दिया था.
बताया जाता है कि वृक्ष के एक छोटे से पत्ते पर निशाना साधते हुए जब आजाद ने अपनी पिस्टल से फायर किए तो वहां मौजूद साथियों को पत्ता हिलता नहीं दिखा. लेकिन जब पेड़ के पास जाकर देखा तो सभी गोलियां पत्ते के आर-पार हो गई थीं. पत्ते को भेदती गोलियां पेड़ पर धंस गई थीं.
आजाद की स्मृतियों को चिरस्थायी रखने के लिए यहां आजाद पार्क बनाया गया है. आजाद की अचूक निशानेबाजी का प्रमाण वृक्ष जीर्ण-शीर्ण होकर धराशाई हो गया. वन विभाग ने उसके एक हिस्से को सुरक्षित कर पार्क में स्थापित किया है. लेकिन लोग पार्क के रखरखाव से खुश नहीं हैं. हालत ये है कि आजादी के अमर शहीद की निशानी पार्क में होने के बावजूद लोग यहां कम ही आते हैं.
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1930 में चंद्रशेखर आजाद ने जिस पेड़ पर निशाना साधा था आज उस पेड़ का भी धीरे-धीरे नामोनिशान मिटने लगा है. चंद्रशेखर आजाद के नाम पर बनाए पार्क में झाड़ियां उगी हुई हैं. राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं. समय रहते अगर इस पार्क के रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह जगह सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही पढ़ने को मिलेगी.
देश को गुलामी से आजादी दिलाने वाले सेनानियों की यादें प्रेरणा का काम करती हैं. जो देश अपने सेनानियों की यादों को सहेज कर नहीं रखता उसकी आने वाली पीढ़ियों को अपने आजादी के नायकों का इतिहास और उनका त्याग पता नहीं चलता. इसलिए दुगड्डा के आजाद पार्क को सुरक्षित और संरक्षित करने की जरूरत है. ताकि भावी पीढ़ियां जानें और समझें कि हमारे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के जुल्मों को सहते हुए कैसे अपने प्राणों की आहुति देकर हमें आजादी दिलाई थी.