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विकास की राह देखता 'हीरो ऑफ नेफा' का गांव, स्मारक स्थल पर आज तक नहीं लगी मूर्ति - Hero of NEFA Jaswant Singh

हीरो ऑफ नेफा जसवंत सिंह रावत का गांव आज भी उपेक्षा का शिकार है. वहीं, विडंबना देखिए की उन्हीं के गांव में उनके स्मारक स्थल में आज तक मूर्ति नहीं लगाई गई है.

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विकास को तरसता हीरो ऑफ नेफा का गांव
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Published : Aug 17, 2021, 9:34 PM IST

Updated : Aug 19, 2021, 4:17 PM IST

श्रीनगर: देश को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं. हमें आजादी का तोहफा देने वालों में लाखों ऐसे सैनिक हैं, जिन्होंने अपने बलिदान से भारत माता की आन-बान और शान की रक्षा की है. उन्हीं वीरों में से एक हीरो ऑफ नेफा जसवंत सिंह भी हैं. जिनकी वीरता के किस्से आज भी देश के हर बच्चे को सुनाए जाते हैं, लेकिन विडंबना देखिए नेफा के हीरो खुद अपने ही प्रदेश में उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं. उनका गांव बाड़ीयू आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है.

पौड़ी जनपद के बीरोंखाल ब्लॉक का बाड़ीयू हीरो ऑफ नेफा जसवंत सिंह रावत का गांव है. इस गांव को जाने वाली सड़क भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है. गांव में जसवंत सिंह का एक स्मारक बनाया गया है, लेकिन वो भी उपेक्षा का शिकार है. स्मारक में लगाने के लिए मूर्ति की जगह तो बनाई गई, लेकिन आज तक उस स्मारक में देश के इतने बड़े हीरो की एक मूर्ति भी नहीं लग सकी है.

विकास को तरसता हीरो ऑफ नेफा का गांव

ऐसा हा तब है, जब पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज इसी जनपद से आते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है, लेकिन अब वो भी बंद हो चुका है. कोरोना काल में दूसरे प्रदेशों को छोड़ कर प्रवासी यहां लौटे, लेकिन स्कूल के बंद होने के कारण बच्चों को कई किलोमीटर सफर कर स्कूल जाना पड़ता है. ग्रामीणों ने मांग की है कि महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह के स्मारक को ठीक किया जाए और गांव में बने स्कूल को फिर से खोला जाए.

महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह कौन थे: जसवंत सिंह किसी किसी पहचान के मोहताज नहीं है. उनकी वीरता पर बॉलीबुड में बहुत सी फिल्में बनी है. महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले लड़ते हुए शहीद हुए थे. लेकिन देश का सिर नहीं झुकने दिया. जब तक राइफल मैन बाबा जसवंत सिंह अपनी पोस्ट संभाले हुए थे. तब तक वो अपनी बंदूक से 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार चुके थे. जिसके बाद वो वीर गति को प्राप्त हो गए.

ये भी पढ़ें: कर्नल कोठियाल होंगे आप के CM पद के उम्मीदवार, केजरीवाल बोले- जनता ने लिया फैसला

चीनी सैनिक अधिकारी जब इस पोस्ट पर पहुंचे तो हक्के-बक्के रह गए. उन्होंने सोचा कि पूरी एक यूनिट ने उन्हें इतना बड़ा नुकसान पहुंचाया है, लेकिन जब देखा कि एक सैनिक उन्हें इतना बड़ा नुकसान दे गया तो उनकी पैरों तले जमीन खिसक गई. चीनी आधिकारी भी उनकी वीरता से प्रभावित हुए और उनकी कासे की प्रतिमा भारतीय सैनिकों को भेंट की.

आज भी भारतीय सेना उन्हें बाबा जसवंत सिंह के नाम से पुकारती है. नेफा में उनका एक शानदार स्मारक भी भारतीय सेना ने बनाया है. जिसे देखने के लिए दूर-दराज से सैलानी आते हैं. यू तो बाबा जसवंत सिंह के गांव में उनका स्मारक बनाया गया है, लेकिन आज भी उनकी मूर्ति की जगह सालों से खाली पड़ी है, जो सरकारों की लापरवाही की दस्तां बयां कर रही है.

श्रीनगर: देश को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं. हमें आजादी का तोहफा देने वालों में लाखों ऐसे सैनिक हैं, जिन्होंने अपने बलिदान से भारत माता की आन-बान और शान की रक्षा की है. उन्हीं वीरों में से एक हीरो ऑफ नेफा जसवंत सिंह भी हैं. जिनकी वीरता के किस्से आज भी देश के हर बच्चे को सुनाए जाते हैं, लेकिन विडंबना देखिए नेफा के हीरो खुद अपने ही प्रदेश में उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं. उनका गांव बाड़ीयू आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है.

पौड़ी जनपद के बीरोंखाल ब्लॉक का बाड़ीयू हीरो ऑफ नेफा जसवंत सिंह रावत का गांव है. इस गांव को जाने वाली सड़क भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है. गांव में जसवंत सिंह का एक स्मारक बनाया गया है, लेकिन वो भी उपेक्षा का शिकार है. स्मारक में लगाने के लिए मूर्ति की जगह तो बनाई गई, लेकिन आज तक उस स्मारक में देश के इतने बड़े हीरो की एक मूर्ति भी नहीं लग सकी है.

विकास को तरसता हीरो ऑफ नेफा का गांव

ऐसा हा तब है, जब पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज इसी जनपद से आते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है, लेकिन अब वो भी बंद हो चुका है. कोरोना काल में दूसरे प्रदेशों को छोड़ कर प्रवासी यहां लौटे, लेकिन स्कूल के बंद होने के कारण बच्चों को कई किलोमीटर सफर कर स्कूल जाना पड़ता है. ग्रामीणों ने मांग की है कि महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह के स्मारक को ठीक किया जाए और गांव में बने स्कूल को फिर से खोला जाए.

महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह कौन थे: जसवंत सिंह किसी किसी पहचान के मोहताज नहीं है. उनकी वीरता पर बॉलीबुड में बहुत सी फिल्में बनी है. महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले लड़ते हुए शहीद हुए थे. लेकिन देश का सिर नहीं झुकने दिया. जब तक राइफल मैन बाबा जसवंत सिंह अपनी पोस्ट संभाले हुए थे. तब तक वो अपनी बंदूक से 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार चुके थे. जिसके बाद वो वीर गति को प्राप्त हो गए.

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चीनी सैनिक अधिकारी जब इस पोस्ट पर पहुंचे तो हक्के-बक्के रह गए. उन्होंने सोचा कि पूरी एक यूनिट ने उन्हें इतना बड़ा नुकसान पहुंचाया है, लेकिन जब देखा कि एक सैनिक उन्हें इतना बड़ा नुकसान दे गया तो उनकी पैरों तले जमीन खिसक गई. चीनी आधिकारी भी उनकी वीरता से प्रभावित हुए और उनकी कासे की प्रतिमा भारतीय सैनिकों को भेंट की.

आज भी भारतीय सेना उन्हें बाबा जसवंत सिंह के नाम से पुकारती है. नेफा में उनका एक शानदार स्मारक भी भारतीय सेना ने बनाया है. जिसे देखने के लिए दूर-दराज से सैलानी आते हैं. यू तो बाबा जसवंत सिंह के गांव में उनका स्मारक बनाया गया है, लेकिन आज भी उनकी मूर्ति की जगह सालों से खाली पड़ी है, जो सरकारों की लापरवाही की दस्तां बयां कर रही है.

Last Updated : Aug 19, 2021, 4:17 PM IST
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