श्रीनगर: टिहरी जनपद के प्रसिद्ध शक्तिपीठ चंद्रबदनी को पर्यटन गतिविधियों से जोड़ने के लिए राज्य सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. राज्य सरकार ने मंदिर तक जाने वाले लक्ष्मोली-हिंसरियाखाल-जामणीखाल मोटरमार्ग को स्टेट हाईवे घोषित कर दिया है. आज देवप्रयाग विधायक विनोद कंडारी ने इस योजना को अमलीजामा पहनाने लिए इस का फर्स्ट फेज का कार्य शुरू करवाते हुए कार्य का शिलान्यास किया.
इस रोड को बनाने के लिए राज्य सरकार 5 करोड़ 48 लाख रुपये खर्च करेगी. जिसको को लेकर टेंडर प्रक्रिया पूरी हो गई है. आज से रोड का चौड़ीकरण और डामरीकरण का कार्य शुरू कर दिया जाएगा. कीर्तिनगर ब्लॉक के अंतर्गत लक्ष्मोली-हिंसरियाखाल-जामणीखाल मोटरमार्ग के हाॅटमिक्स का कार्य शुरू हो गया है. विधायक विनोद कंडारी ने विधिवत इसका शिलान्यास किया.
बता दें कि पांच करोड़ 46 लाख 52 हजार रूपये की लागत से लक्ष्मोली-हिसरियाखाल-जामणीखाल मोटरमार्ग के किमी 1 से 32 किमी में बीएमएसडीबीसी योजना के तहत डामरीकरण का कार्य किया जाना है. जिसकी स्वीकृत लंबाई 26 किमी के करीब है. विधायक विनोद कंडारी ने कहा लक्ष्मोली-हिसरियाखाल-जामणीखाल मोटरमार्ग को स्टेट हाईवे बनाने की क्षेत्रवासियों की बहुत पुरानी मांग थी. जिसकी घोषणा पिछले कार्यकाल के दौरान ही कर दी गई थी. अब विधिवत इसका कार्य शुरू किया गया है.
इस दौरान विधायक विनोद कंडारी ने गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए इसे शीघ्र बनाने के निर्देश लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को दिए. उन्होंने बताया 31 मार्च तक लक्ष्मोली-हिसरियाखाल-जामणीखाल मोटर मार्ग का डामरीकरण का कार्य पूरा कर लिया जाएगा. सेकेंड फेज में देवप्रयाग-हिंडोलाखाल-जामणीखाल को भी स्टेट हाईवे का दर्जा दिया गया है, इसका भी चौड़ीकरण सहित डामरीकरण का कार्य किया जाएगा.
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दरअसल चंद्रबदनी मंदिर देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है, लेकिन पूर्व की सरकारों की उदासीनता के कारण मंदिर को पर्यटन सर्किट से नहीं जोड़ा जा सका. अब इस मार्ग के स्टेट हाईवे बन जाने के कारण मंदिर तक आवागमन का साधन बढ़ेगा और यात्रा काल मे मंदिर में यात्री आसानी से पहुंच सकेंगे.
चंद्रबदनी मंदिर से जुड़ी कथा: इस शक्तिपीठ के संबंध में कहा जाता है कि एक बार राजा दक्ष ने हरिद्वार (कनखल) में यज्ञ किया, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी सती और भगवान शिव को आने का निमंत्रण नहीं दिया, लेकिन मां सती ने भगवान शंकर से यज्ञ में जाने की इच्छा जताई. जिसपर भगवान शंकर ने सती को वहां नहीं जाने की सलाह दी, लेकिन मोहवश सती ने शिव जी की बात को न मान कर वहां चली गयी. राजा दक्ष ने अपनी बेटी सती और उनके पति शिवजी का अपमान किया गया.
पिता के घर में अपना और अपने पति का अपमान देखकर भावावेश में आकर सती ने अग्नि कुंड में कूदकर प्राण दे दिए. जब भगवान शंकर को इस बात का पता चला तो वे दक्ष की यज्ञशाला में गए और सती का शरीर उठाकर आकाश मार्ग से हिमालय की ओर निकल गए. शिव सती के वियोग से काफी दुखी और क्रोधित हो गए, शिव के रौद्र रूप देखकर पृथ्वी कांपने लगी थी.
धार्मिक मान्यता है कि अनिष्ट की आशंका को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से मां सती के अंगों को छिन्न–भिन्न कर दिया. भगवान विष्णु के चक्र से कटकर सती के शरीह का हिस्सा जहां-जहां गिरा, वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गया. जैसे कि जहां सिर गिरा वहां का नाम सुरकंडा पड़ा. स्तन जहां गिरे वहां का नाम कुंजापुरी पड़ा. इसी प्रकार चंद्रकूट पर्वत पर सती का धड़ (बदन) पड़ा, इसलिए यहां का नाम चंद्रबदनी पड़ा.