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History of Kanvashram: कण्व आश्रम में वसंतोत्सव की धूम, चक्रवर्ती राजा भरत की है जन्म स्थली!

कोटद्वार के प्रसिद्ध कण्व आश्रम में हर साल की तरह इस साल भी माघ मास में पंचमी के दिन चक्रवर्ती राजा भरत की जन्म स्थली पर वसंतोत्सव मनाया जा रहा है. जानकार बताते हैं कि कण्व आश्रम करीब 3500 साल पुराना है, जो ऋषि वशिष्ठ और महर्षि ऋषि कण्व का आश्रम हुआ करता था. जिसका उल्लेख कई पुराणों और ग्रंथों में मिलता है. जानिए कण्व आश्रम का इतिहास.

Kotdwar Kanva Ashram
कण्वाश्रम का इतिहास
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Published : Jan 26, 2023, 9:40 AM IST

कोटद्वार स्थित कण्वाश्रम का इतिहास जानिए.

कोटद्वार: चक्रवर्ती सम्राट राजा भरत की जन्म स्थली व महातेजस्वी कण्व ऋषि की कर्म स्थली कोटद्वार के कण्वाश्रम में माघ माह में तीन दिवसीय वसंतोत्सव मनाया जा रहा है. पौड़ी जनपद के कोटद्वार कण्वाश्रम में माघ मास में हर वर्ष की भांति पंचमी के दिन चक्रवर्ती राजा भरत की जन्म स्थली पर वसंतोत्सव मनाया जा रहा है. बताया जाता है कि लगभग 3500 पूर्व ऋषि वशिष्ठ व महर्षि कण्व का आश्रम हुआ करता था.

ऋषि वशिष्ठ द्वारा इन्द्र देव की घोर तपस्या की गई. तपस्या को भंग करने के लिए स्वर्ग से आई मेनका नाम की अप्सरा ऋषि वशिष्ठ की तपस्या भंग करने में सफल हुई. जिसके बाद मेनका व ऋषि वशिष्ठ के मिलने से शकुन्तला नाम की कन्या की उत्पत्ति हुई. ऋषि वशिष्ठ ने अंतिम समय में शकुन्तला को ऋषि कण्व के आश्रम में सौंप दिया. मालिनी नदी के तट पर स्थित कण्वाश्रम का वर्णन भारत के प्राचीन ग्रंथों, पुराणों, महर्षि व्यास द्वारा रचित महाभारत तथा महान कवि कालिदास द्वारा अभिज्ञान शाकुन्तलम में व स्कन्द पुराण के केदारखंड के 57वें अध्याय में भी वर्णन इस प्रकार किया गया है.

कण्वाश्रम समारमभ यावननंद गिरिभवेत।

तावत क्षेत्र परमं मुक्ति -मुक्ति प्रदायक:।।

कणवो नाम महातेज महर्षि लोक विश्रतु:।

तस्या श्रम पदे भगवत रमापतपतिम् ।।

अर्थात- कण्वाश्रम यहां से नन्दगिरि पर्वत तक एक विस्तृत एक परम पुण्य स्थान है. यहां भक्ति योग व मोक्ष का महान केन्द्र है‌. यहां सम्पूर्ण लोक में विख्यात महातेजस्वी कण्व ऋषि का आश्रम है. यहां पर शीष नमन करने से सम्पूर्ण सुख शांति की प्राप्ति होती है. प्राचीन ग्रंथ महाभारत में भी कण्वाश्रम व मालिनी का वर्णन किया गया है.

प्रस्थे हिमवतो रम्ये मालिनीममितो नदीम्।

जातमुत्सृज्यन्त गर्भ मेनका मलिनिमनु:।।

महाकवि कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुन्तलम् में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत के कण्व ऋषि के आश्रम में विश्वामित्र की पुत्री शकुन्तला व राजा दुष्यंत का कण्वाश्रम के सती मठ स्थान पर गन्धर्व विवाह हुआ इसका वर्णन है. विवाह के उपरांत पुत्र भरत का जन्म भी कोटद्वार कण्वाश्रम में ही वर्णन किया गया है.
ये भी पढ़ें- बसंत पंचमी 2023: सरस्वती पूजा आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मान्यताएं

वरिष्ठ लेखक व कण्वाश्रम विकास समिति के अध्यक्ष ले. कमाण्डर वीरेंद्र रावत बताते हैं कि कण्वाश्रम व मालिनी नदी का अटूट बंधन है. कण्वाश्रम का वर्णन 3500 हजार वर्ष पूर्व का है, तो गंगा नदी से प्राचीन व कल कल बहने वाली मालिनी नदी का जल जीवनदायिनी शीतल शुद्ध मीठे जल ने कण्व ऋषि को आकर्षित कर नदी के तट पर भव्य आश्रम की स्थापना की. इसके अलावा एलेक्जेण्डर कनिंघम (जो अंग्रेजों काल में भारतीय पुरातत्व विभाग के मुखिया रहे) ने भी अपनी 1865 में लिखी रिपोर्ट में जिस नदी को ग्रीक दूत मैगस्थनीज ने अपनी पुस्तक में perineses के नाम से सम्बोधित किया है, वह मालिनी नदी ही है का उल्लेख किया है. इसी नदी के तट पर शकुन्तला बड़ी हुईं.

साल 1926 व 2012 मालिनी नदी में भयंकर बाढ़ में कण्वाश्रम क्षेत्र में ऋषि कण्व के आश्रम के मूर्ति अवशेष मिले हैं. प्रथम प्रधानमंत्री के साल 1955 में रूस में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में अभिज्ञान शाकुन्तल आधारित बैले नृत्य में प्रधानमंत्री को कण्वाश्रम की जानकारी लगी. तत्कालीन वन मंत्री जगमोहन सिंह नेगी ने 1956 में स्मारक बनाया गया. वर्ष 1956 से विधिवत वसंत ऋतु के आगमन पर कोटद्वार कण्वाश्रम में बसन्त पंचमी के रूप में हजारों की संख्या में ऋषि कण्व व चक्रवर्ती सम्राट राजा की जन्म स्थली पर मेले के दौरान शीष नमन करने आते हैं.
ये भी पढ़ें- Uttarakhand Millets: 'उत्तराखंड मिलेट्स भोज' में पहुंचे सीएम धामी, स्टॉलों का किया निरीक्षण

कण्वाश्रम की प्रतिष्ठा को देखते हुए भारत सरकार ने इसे 12 जून, 2018 को स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छ प्रतिष्ठित स्थान (आइकॉनिक) देश के प्रसिद्ध 30 स्थानों में स्थान दिया है. लेखक मानते हैं कि कण्वाश्रम का प्राचीन इतिहास रहा है. कोई भी लेखक व जानकार स्पष्ट नहीं कर पाया कि राजा भरत का जन्म कब हुआ होगा. भरत के वंशजों ने ही महाभारत का युद्ध लड़ा. भरत के दो पुत्र हुए भमन्य व सुहोत्रा. सुहोत्रा के पुत्र हुए हस्ती जिन्होंने हस्तीनापुर बसाया. लेखक बताते हैं कि राजा भरत के अट्ठारहवें वंशज ने महाभारत का युद्ध लगभग 1000 से 1200 ईसा पूर्व लड़ा था. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आज से करीब 3500 से 4000 वर्ष पूर्व से कण्वाश्रम व चक्रवर्ती राजा भरत की जन्म स्थली में वंसत ऋतु माघ माह के शुक्ल पक्ष पर वसंतोत्सव मनाया जा रहा है.

कोटद्वार स्थित कण्वाश्रम का इतिहास जानिए.

कोटद्वार: चक्रवर्ती सम्राट राजा भरत की जन्म स्थली व महातेजस्वी कण्व ऋषि की कर्म स्थली कोटद्वार के कण्वाश्रम में माघ माह में तीन दिवसीय वसंतोत्सव मनाया जा रहा है. पौड़ी जनपद के कोटद्वार कण्वाश्रम में माघ मास में हर वर्ष की भांति पंचमी के दिन चक्रवर्ती राजा भरत की जन्म स्थली पर वसंतोत्सव मनाया जा रहा है. बताया जाता है कि लगभग 3500 पूर्व ऋषि वशिष्ठ व महर्षि कण्व का आश्रम हुआ करता था.

ऋषि वशिष्ठ द्वारा इन्द्र देव की घोर तपस्या की गई. तपस्या को भंग करने के लिए स्वर्ग से आई मेनका नाम की अप्सरा ऋषि वशिष्ठ की तपस्या भंग करने में सफल हुई. जिसके बाद मेनका व ऋषि वशिष्ठ के मिलने से शकुन्तला नाम की कन्या की उत्पत्ति हुई. ऋषि वशिष्ठ ने अंतिम समय में शकुन्तला को ऋषि कण्व के आश्रम में सौंप दिया. मालिनी नदी के तट पर स्थित कण्वाश्रम का वर्णन भारत के प्राचीन ग्रंथों, पुराणों, महर्षि व्यास द्वारा रचित महाभारत तथा महान कवि कालिदास द्वारा अभिज्ञान शाकुन्तलम में व स्कन्द पुराण के केदारखंड के 57वें अध्याय में भी वर्णन इस प्रकार किया गया है.

कण्वाश्रम समारमभ यावननंद गिरिभवेत।

तावत क्षेत्र परमं मुक्ति -मुक्ति प्रदायक:।।

कणवो नाम महातेज महर्षि लोक विश्रतु:।

तस्या श्रम पदे भगवत रमापतपतिम् ।।

अर्थात- कण्वाश्रम यहां से नन्दगिरि पर्वत तक एक विस्तृत एक परम पुण्य स्थान है. यहां भक्ति योग व मोक्ष का महान केन्द्र है‌. यहां सम्पूर्ण लोक में विख्यात महातेजस्वी कण्व ऋषि का आश्रम है. यहां पर शीष नमन करने से सम्पूर्ण सुख शांति की प्राप्ति होती है. प्राचीन ग्रंथ महाभारत में भी कण्वाश्रम व मालिनी का वर्णन किया गया है.

प्रस्थे हिमवतो रम्ये मालिनीममितो नदीम्।

जातमुत्सृज्यन्त गर्भ मेनका मलिनिमनु:।।

महाकवि कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुन्तलम् में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत के कण्व ऋषि के आश्रम में विश्वामित्र की पुत्री शकुन्तला व राजा दुष्यंत का कण्वाश्रम के सती मठ स्थान पर गन्धर्व विवाह हुआ इसका वर्णन है. विवाह के उपरांत पुत्र भरत का जन्म भी कोटद्वार कण्वाश्रम में ही वर्णन किया गया है.
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वरिष्ठ लेखक व कण्वाश्रम विकास समिति के अध्यक्ष ले. कमाण्डर वीरेंद्र रावत बताते हैं कि कण्वाश्रम व मालिनी नदी का अटूट बंधन है. कण्वाश्रम का वर्णन 3500 हजार वर्ष पूर्व का है, तो गंगा नदी से प्राचीन व कल कल बहने वाली मालिनी नदी का जल जीवनदायिनी शीतल शुद्ध मीठे जल ने कण्व ऋषि को आकर्षित कर नदी के तट पर भव्य आश्रम की स्थापना की. इसके अलावा एलेक्जेण्डर कनिंघम (जो अंग्रेजों काल में भारतीय पुरातत्व विभाग के मुखिया रहे) ने भी अपनी 1865 में लिखी रिपोर्ट में जिस नदी को ग्रीक दूत मैगस्थनीज ने अपनी पुस्तक में perineses के नाम से सम्बोधित किया है, वह मालिनी नदी ही है का उल्लेख किया है. इसी नदी के तट पर शकुन्तला बड़ी हुईं.

साल 1926 व 2012 मालिनी नदी में भयंकर बाढ़ में कण्वाश्रम क्षेत्र में ऋषि कण्व के आश्रम के मूर्ति अवशेष मिले हैं. प्रथम प्रधानमंत्री के साल 1955 में रूस में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में अभिज्ञान शाकुन्तल आधारित बैले नृत्य में प्रधानमंत्री को कण्वाश्रम की जानकारी लगी. तत्कालीन वन मंत्री जगमोहन सिंह नेगी ने 1956 में स्मारक बनाया गया. वर्ष 1956 से विधिवत वसंत ऋतु के आगमन पर कोटद्वार कण्वाश्रम में बसन्त पंचमी के रूप में हजारों की संख्या में ऋषि कण्व व चक्रवर्ती सम्राट राजा की जन्म स्थली पर मेले के दौरान शीष नमन करने आते हैं.
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कण्वाश्रम की प्रतिष्ठा को देखते हुए भारत सरकार ने इसे 12 जून, 2018 को स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छ प्रतिष्ठित स्थान (आइकॉनिक) देश के प्रसिद्ध 30 स्थानों में स्थान दिया है. लेखक मानते हैं कि कण्वाश्रम का प्राचीन इतिहास रहा है. कोई भी लेखक व जानकार स्पष्ट नहीं कर पाया कि राजा भरत का जन्म कब हुआ होगा. भरत के वंशजों ने ही महाभारत का युद्ध लड़ा. भरत के दो पुत्र हुए भमन्य व सुहोत्रा. सुहोत्रा के पुत्र हुए हस्ती जिन्होंने हस्तीनापुर बसाया. लेखक बताते हैं कि राजा भरत के अट्ठारहवें वंशज ने महाभारत का युद्ध लगभग 1000 से 1200 ईसा पूर्व लड़ा था. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आज से करीब 3500 से 4000 वर्ष पूर्व से कण्वाश्रम व चक्रवर्ती राजा भरत की जन्म स्थली में वंसत ऋतु माघ माह के शुक्ल पक्ष पर वसंतोत्सव मनाया जा रहा है.

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