श्रीनगर: देवभूमि की फिजाएं मन को जितना सुकुन देती हैं, उतनी ही यहां की आध्यात्मिकता लोगों को अपनी ओर खिंचती हैं. यहां कदम-कदम पर देवी-देवताओं का वास है. जिससे यहां के आलौकिक वातावरण में एक अलग ही शांति का एहसास होता है. उत्तराखंड में ऐसा ही एक स्थान है पौड़ी, जो कि अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ धार्मिक महत्व के लिए भी जाना जाता है. पौड़ी में कई ऐसे धर्मिक स्थान है जहां वर्ष भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है. इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है किंकालेश्वर मंदिर.
हारे का सहारा है ये मंदिर: घने देवदार, बांज,बुरांस और सुरई के जंगलों के बीच बसे इस मंदिर में हारे मन को आस मिलती है. भगवान शिव के इस मंदिर में पूजा और आराधना करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. बताया जाता है कि किनाश पर्वत पर यमराज ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था. जिसके बाद से इस मंदिर को मुक्तेश्वर के नाम से भी जाना जाने लगा. इस मंदिर का वर्णन स्कंदपुराण के केदारखंड में भी मिलता है, जहां इसकी महत्ता का विस्तार से उल्लेख है. बात अगर मंदिर के इतिहास की करें तो आज से लगभग 200 साल पहले एक मुनि, राम बुद्ध शर्मा के सपने में आकर भगवान शिव ने यहां एक मंदिर निर्माण की बात कही थी.
ये भी पढ़ें: श्रद्धालु के माफीनामा के बाद भी सवालों के घेरे में BKTC, पुलिस कार्रवाई क्यों नहीं करने का लगा आरोप
केदारनाथ के पुरोहित को भगवान शंकर ने दिया था सपना: उसी दौरान केदारनाथ के पुरोहित गणेश लिंग महाराज को भी भगवान शिव ने सपने में दर्शन दिये और उनकी कुटिया के बाहर रखे शिवलिंग को पौड़ी के कीनाश पर्वत पर बन रहे मंदिर में स्थापित करने की बात कही. जिसके बाद मंदिर की सत्यता की बात की जांचकर पुरोहित गणेश लिंग महाराज ने पत्र के माध्यम से शिवलिंग की स्थापना करवाई थी. किंकालेश्वर मंदिर के महंत अभय मुनी बताते हैं कि इस मंदिर का वर्णन विभिन्न धर्म ग्रन्थों में मिलता है. यहां आज भी भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है. यहां वर्ष भर भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है हर कोई यहां अपनी मनोकामना लेकर आता है, लेकिन सावन में दर्शन करने वाले श्रद्धालु दूर-दूर से मंदिर में आते हैं और भगवान शिव की पूजा अर्चना का फल प्राप्त करते हैं.
ये भी पढ़ें: 'बम बम भोले, हर-हर महादेव' के जयकारों से गूंजा केदारनाथ धाम, कोटेश्वर मंदिर में उमड़ी भीड़