ETV Bharat / state

देवभूमि के इस मंदिर में यमराज ने की थी महादेव की कठोर तपस्या, सावन में लगा रहता है भक्तों का तांता

इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है किंकालेश्वर मंदिर, ये मंदिर पौड़ी से लगभग 5 किमी दूर किनाश पर्वत पर स्थित है. घने देवदार, बांज,बुरांस और सुरई के जंगलों के बीच बसे इस मंदिर में हारे मन को आस मिलती है.

किंकालेश्वर मंदिर.
author img

By

Published : Jul 30, 2019, 11:59 AM IST

पौड़ी: देवभूमि की दिलकश फिजाएं मन को जितना सुकुन देती हैं, उतनी ही यहां की आध्यात्मिकता लोगों को अपनी ओर खिंचती हैं. यहां कदम-कदम पर देवी-देवताओं का वास है. जिससे यहां के अलौकिक वातावरण में एक अलग ही शांति का एहसास होता है. उत्तराखंड में ऐसा ही एक स्थान है पौड़ी.. जो कि अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ धार्मिक महत्व के लिए भी जाना जाता है. पौड़ी में कई ऐसे धर्मिक स्थान है जहां वर्ष भर श्रद्दालुओं की भीड़ लगी रहती है.

देवभूमि के इस मंदिर में यमराज ने की थी महादेव की कठोर तपस्या.

इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है किंकालेश्वर मंदिर, ये मंदिर पौड़ी से लगभग 5 किमी दूर किनाश पर्वत पर स्थित है. घने देवदार, बांज,बुरांस और सुरई के जंगलों के बीच बसे इस मंदिर में हारे मन को आस मिलती है. भगवान शिव के इस मंदिर में पूजा और आराधना करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

बताया जाता है कि कीनाश पर्वत पर यमराज ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था. जिसके बाद से इस मंदिर को मुक्तेश्वर के नाम से भी जाना जाने लगा. इस मंदिर का वर्णन स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में भी मिलता है जहां इसकी महत्ता का विस्तार से उल्लेख है .

पढ़ें-विश्व बाघ दिवसः उत्तराखंड में बढ़े 102 बाघ, पीएम मोदी ने बताई ये बात

बात अगर मंदिर के इतिहास की करें तो आज से लगभग 200 साल पहले एक मुनि, राम बुद्ध शर्मा के सपने में आकर भगवान शिव ने यहां एक मंदिर निर्माण की बात कही थी. उसी दौरान केदारनाथ के पुरोहित गणेश लिंग महाराज को भी भगवान शिव ने सपने में दर्शन दिये. और उनकी कुटिया के बाहर रखे शिवलिंग को पौड़ी के कीनाश पर्वत पर बन रहे मंदिर में स्थापित करने की बात कही. जिसके बाद मंदिर की सत्यता की बात की जांचकर पुरोहित गणेश लिंग महाराज ने स्वयं पौड़ी आकर शिवलिंग की स्थापना की.

वर्तमान में कंकालेश्वर का अपभ्रंश ही किंकालेश्वर है. इस मन्दिर का सौन्दर्य यहां आने वाले पर्यटकों के लिये किसी आश्चर्य से कम नहीं है. जन्माष्टमी और शिवरात्रि में यहां श्रद्धालुओं की खासी भीड़ लगती है . श्रावण मास के सोमवार के व्रतों में भक्त यहां शिवलिंग पर दूध व जल चढ़ाने आते हैं.

पौड़ी: देवभूमि की दिलकश फिजाएं मन को जितना सुकुन देती हैं, उतनी ही यहां की आध्यात्मिकता लोगों को अपनी ओर खिंचती हैं. यहां कदम-कदम पर देवी-देवताओं का वास है. जिससे यहां के अलौकिक वातावरण में एक अलग ही शांति का एहसास होता है. उत्तराखंड में ऐसा ही एक स्थान है पौड़ी.. जो कि अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ धार्मिक महत्व के लिए भी जाना जाता है. पौड़ी में कई ऐसे धर्मिक स्थान है जहां वर्ष भर श्रद्दालुओं की भीड़ लगी रहती है.

देवभूमि के इस मंदिर में यमराज ने की थी महादेव की कठोर तपस्या.

इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है किंकालेश्वर मंदिर, ये मंदिर पौड़ी से लगभग 5 किमी दूर किनाश पर्वत पर स्थित है. घने देवदार, बांज,बुरांस और सुरई के जंगलों के बीच बसे इस मंदिर में हारे मन को आस मिलती है. भगवान शिव के इस मंदिर में पूजा और आराधना करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

बताया जाता है कि कीनाश पर्वत पर यमराज ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था. जिसके बाद से इस मंदिर को मुक्तेश्वर के नाम से भी जाना जाने लगा. इस मंदिर का वर्णन स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में भी मिलता है जहां इसकी महत्ता का विस्तार से उल्लेख है .

पढ़ें-विश्व बाघ दिवसः उत्तराखंड में बढ़े 102 बाघ, पीएम मोदी ने बताई ये बात

बात अगर मंदिर के इतिहास की करें तो आज से लगभग 200 साल पहले एक मुनि, राम बुद्ध शर्मा के सपने में आकर भगवान शिव ने यहां एक मंदिर निर्माण की बात कही थी. उसी दौरान केदारनाथ के पुरोहित गणेश लिंग महाराज को भी भगवान शिव ने सपने में दर्शन दिये. और उनकी कुटिया के बाहर रखे शिवलिंग को पौड़ी के कीनाश पर्वत पर बन रहे मंदिर में स्थापित करने की बात कही. जिसके बाद मंदिर की सत्यता की बात की जांचकर पुरोहित गणेश लिंग महाराज ने स्वयं पौड़ी आकर शिवलिंग की स्थापना की.

वर्तमान में कंकालेश्वर का अपभ्रंश ही किंकालेश्वर है. इस मन्दिर का सौन्दर्य यहां आने वाले पर्यटकों के लिये किसी आश्चर्य से कम नहीं है. जन्माष्टमी और शिवरात्रि में यहां श्रद्धालुओं की खासी भीड़ लगती है . श्रावण मास के सोमवार के व्रतों में भक्त यहां शिवलिंग पर दूध व जल चढ़ाने आते हैं.

Intro:Body:

kinkaleshwar temple story in pauri



पौड़ी: देवभूमि की दिलकश फिजाएं मन को जितना सुकुन देती हैं, उतनी ही यहां की आध्यात्मिकता लोगों को अपनी ओर खिंचती हैं. यहां कदम-कदम पर देवी-देवताओं का वास है. जिससे यहां के अलौकिक वातावरण में एक अलग ही शांति का एहसास होता है. उत्तराखंड में ऐसा ही एक स्थान है पौड़ी.. जो कि अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ धार्मिक महत्व के लिए भी जाना जाता है. पौड़ी में कई ऐसे धर्मिक स्थान है जहां वर्ष भर श्रद्दालुओं की भीड़ लगी रहती है.

इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है किंकालेश्वर मंदिर, ये मंदिर पौड़ी से लगभग 5 किमी दूर किनाश पर्वत पर स्थित है. घने देवदार, बांज,बुरांस और सुरई के जंगलों के बीच बसे इस मंदिर में हारे मन को आस मिलती है. भगवान शिव के इस मंदिर में पूजा और आराधना करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.  बताया जाता है कि कीनाश पर्वत पर यमराज ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था. जिसके बाद से इस मंदिर को मुक्तेश्वर के नाम से भी जाना जाने लगा.  इस मंदिर का वर्णन स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में भी मिलता है जहां इसकी महत्ता का विस्तार से उल्लेख है .बात अगर मंदिर के इतिहास की करें तो आज से लगभग 200 साल पहले एक मुनि,  राम बुद्ध शर्मा के सपने में आकर भगवान शिव ने यहां एक मंदिर निर्माण की बात कही थी. उसी दौरान केदारनाथ के पुरोहित गणेश लिंग महाराज को भी भगवान शिव ने सपने में दर्शन दिये.  और उनकी कुटिया के बाहर रखे शिवलिंग को पौड़ी के कीनाश पर्वत पर बन रहे मंदिर में स्थापित करने की बात कही. जिसके बाद मंदिर की सत्यता की बात की जांचकर पुरोहित गणेश लिंग महाराज ने स्वयं पौड़ी आकर शिवलिंग की स्थापना की.  वर्तमान में कंकालेश्वर का अपभ्रंश ही किंकालेश्वर  है. इस मन्दिर का सौन्दर्य यहां आने वाले पर्यटकों के लिये किसी आश्चर्य से कम नहीं है. जन्माष्टमी और शिवरात्रि में यहां  श्रद्धालुओं की  खासी भीड़ लगती है . श्रावण मास के सोमवार के व्रतों में भक्त यहां शिवलिंग पर दूध व जल चढ़ाने आते हैं.

 


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.