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पौड़ी: मां कालिंका बूंखाल मेले का आगाज, ढोल-दमाऊं के साथ मां के दर्शन करने पहुंचे भक्त - Maa Kalinka Boonkhala Mela News of Pauri

पौड़ी में मां कालिंका बूंखाल मेले की शनिवार से विधिवत शुरुवात हो गई है. साल 2014 के बाद से यहां पशु बलि पर रोक लगा दी गई है. जिसके चलते भक्त नारियल चढ़ाकर मां की पूजा-अर्चना करते हैं.

मां कालिंका बूंखाल मेला न्यूज Maa Kalinka Boonkhal Fair News
कालिंका बूंखाल मेले की शनिवार से विधिवत शुरुवात हो गई है.
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Published : Dec 7, 2019, 8:22 PM IST

पौड़ी: नगर के प्रसिद्ध मां कालिंका बूंखाल मेले की आज से विधिवत शुरुवात हो गई है. पहले यह मेला पशुबलि के लिए प्रसिद्ध था. लेकिन साल 2014 के बाद से यहां पशु बलि पूर्ण रूप से बंद कर दी गई है. जिसके चलते यहां अब नारियल चढ़ाकर मां की पूजा-अर्चना की जाती है.

कालिंका बूंखाल मेले का आगाज.

बता दें कि इस मेले को राठ क्षेत्र के प्रसिद्ध बूंखाल काली माता के नाम से पूरे देश में जाना जाता है. सदियों से कलिंका माता मंदिर आस्था-विश्वास और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र रहा है. मेले के दौरान थलीसैंण ब्लॉक में आने वाले सभी गांवों के निवासी कलिंका माता मंदिर में अपने-अपने देवी देवताओं के निशान (झंडे) को ढोल-दमाऊं के साथ लेकर आते हैं.

ये भी पढ़ें: शारदा नदी में साइबेरियन पक्षियों का लगा जमावड़ा, सुरक्षा के लिए तैनात स्पेशल टीम

मान्यता है कि मां कालिका यहां बने कुंड में रहती है. 2014 से पहले इस कुंड को पशुओं के रक्त से भरा जाता था. लेकिन समय के साथ मान्यताओं में आए बदलाव के चलते अब इस कुंड को रक्त की जगह नारियल के पानी से भरा जाता है. आस्था है कि आज के दिन जो कोई मां कलिंका दर्शन करता है. वह सभी दुखों और कष्ट से मुक्त हो जाता है. साथ ही माता अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है.

पौड़ी: नगर के प्रसिद्ध मां कालिंका बूंखाल मेले की आज से विधिवत शुरुवात हो गई है. पहले यह मेला पशुबलि के लिए प्रसिद्ध था. लेकिन साल 2014 के बाद से यहां पशु बलि पूर्ण रूप से बंद कर दी गई है. जिसके चलते यहां अब नारियल चढ़ाकर मां की पूजा-अर्चना की जाती है.

कालिंका बूंखाल मेले का आगाज.

बता दें कि इस मेले को राठ क्षेत्र के प्रसिद्ध बूंखाल काली माता के नाम से पूरे देश में जाना जाता है. सदियों से कलिंका माता मंदिर आस्था-विश्वास और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र रहा है. मेले के दौरान थलीसैंण ब्लॉक में आने वाले सभी गांवों के निवासी कलिंका माता मंदिर में अपने-अपने देवी देवताओं के निशान (झंडे) को ढोल-दमाऊं के साथ लेकर आते हैं.

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मान्यता है कि मां कालिका यहां बने कुंड में रहती है. 2014 से पहले इस कुंड को पशुओं के रक्त से भरा जाता था. लेकिन समय के साथ मान्यताओं में आए बदलाव के चलते अब इस कुंड को रक्त की जगह नारियल के पानी से भरा जाता है. आस्था है कि आज के दिन जो कोई मां कलिंका दर्शन करता है. वह सभी दुखों और कष्ट से मुक्त हो जाता है. साथ ही माता अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है.

Intro:पौड़ी के प्रसिद्ध मां कालिंका बूंखाल का मेला आज विधिवत रूप से चल रहा है यह मेला पहले पशुबलि के लिए प्रसिद्ध था लेकिन साल 2014 के बाद यहां पर पशु बलि को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है और हर साल आयोजित होने वाले इस मेले से कुछ दिन पूर्व से पुलिस बल व जिला प्रसाशन की मदद से सभी वाहनों की चेकिंग कर पशुबली की आशंका को देखते हुए पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं आज के दिन भारी पुलिस बल की देखरेख में इस मेले का आयोजन किया जाता है मेले को शांतिपूर्वक संपन्न करने और पशुबलि मुक्त रखने के लिए पुलिस की भूमिका रहती है साथ ही जिला प्रशासन भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है साल 2014 के बाद यहां पर पशु बलि समाप्त होने के बाद नारियल पानी चढ़ाकर माँ की पूजा अर्चना की जाती हैBody:पौड़ी जिले के थलीसैंण ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले प्रसिद्ध बूंखाल कालिंका मंदिर में आज भव्य पूजा अर्चना के साथ मेले का आयोजन किया गया है यह मंदिर 2014 से पहले भारी पशुबलि के लिए विख्यात था यहां पर माँ कलिंका को हजारों की संख्या में पशुबलि चढ़ाई जाती थी लेकिन साल 2014 के बाद से यहां पर बली प्रथा को समाप्त कर दिया गया। मेला को राठ क्षेत्र के प्रसिद्ध बूंखाल काली माता के नाम से पूरे देश में जाना जाता है कलिंका माता मंदिर आस्था विश्वास और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र सदियों से रहा है थलीसैंण ब्लॉक में आने वाले सभी गांवों के लोग इस कलिंका माता मंदिर में अपने-अपने देवी देवताओं के निशान(झंडे) को ढोल-दमोउ के साथ लेकर आते हैं। मान्यता है कि माँ कालिका यहां बने कुंड में रहती है 2014 से पहले इस कुंड को पशुओं के रक्त से भरा जाता था मगर समय के साथ मान्यताओं में भी बदलाव देखने को मिल रहा है अब इस कुंड को रक्त की जगह नारियल के पानी से भरा जाता है सभी भक्तों की आस्था है कि मां कलिंका की आज के दिन जो भी दर्शन को आता है वह सभी दुखों व कष्ट से मुक्त हो जाता है और माता उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है।
बाइट -मेनका(श्रद्धालु)Conclusion:
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