श्रीनगर: उत्तराखंड के पहाड़ी स्रोतों के पानी को औषधीय गुणों वाला माना जाता था. वैज्ञानिक तक मानते थे कि पहाड़ के धारों से निकलने वाले पानी में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है, मगर हाल ही में गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिमालयन जलीय जैव विविधता विभाग के एक शोध में बड़ा खुलासा हुआ है. इस शोध में पता चला है कि अब पहाड़ी स्रोतों का पानी औषधीय गुणों वाला नहीं रह गया है. इन धारों के पानी में वैज्ञानिकों को इंकोला नाम का बैक्टरिया मिला है. ये बैक्टरिया पेट की बीमारियों को जन्म देता है.
हिमालयन जलीय जैव विविधता विभाग के असिस्टेन्ट प्रोफेसर जसपाल सिंह चौहान और उनके शोध छात्र लंबे अरसे से हिमालय के पानी और उसके प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं. उन्होंने पौड़ी जनपद के सुमाड़ी गांव में कुछ स्रोतों से पानी के नमूने जमा किये. जब इन नमूनों की जांच की गई तो उसमें इंकोला बैक्टरिया पाया गया.
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प्रोफेसर जसपाल सिंह चौहान बताते हैं कि ये बैक्टीरिया पेट की बीमारियों को जन्म देता है. इससे डायरिया भी होता है. उन्होंने कहा अब ग्रामीण इलाकों में धारों की साफ सफाई नहीं की जाती. अब इन धारों में पशुओं को नहलाया जाने लगा है. जिसके कारण ये वायरस अब इन पानी के स्रोतों में पाया जाने लगा है.
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जसपाल सिंह चौहान ने बताया कि इसी तरह टैप वॉटर भी उन्हें प्रदूषित मिला है. अभी भी पहाड़ों में जो कुंड हैं उनका पानी 100 प्रतिशत शुद्ध है. इसका पता भी उनके शोध में चला है. उन्होंने टैप वॉटर, कुंड और स्रोतों के पानी में तुलना की तो कुंड का पानी सबसे शुद्ध पाया गया.