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बदलती इंसानी फितरत ने बदला दिया बहुत कुछ, सूख गए हरे-भरे चाल-खाल, भटक रहे पानी के लिए

लगभग 10 दशक तक इन चाल-खालों में 12 महीने पानी भरा रहता था, लेकिन सरकारी मशीनरी कि बेरुखी के कारण आज ये पूरी तरह से अपना अस्तित्व खो चुके हैं.

Kotdwar
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Published : Apr 22, 2019, 2:28 PM IST

कोटद्वारः इन दिनों गर्मी से लोगों का हाल बेहाल है. गर्मी से आदमी ही नहीं पशु-पक्षी भी परेशान हैं. इन दिनों पड़ रही जबरदस्त गर्मी कोटद्वार के लोगों के साथ ही पशु-पक्षी और जानवरों पर भारी पड़ रहा है. कोटद्वार के अलग-अलग जगहों पर कई दशकों से चाल-खाल बने हुए थे, जिसमें बरसात का पानी और गर्मी के समय नहरों से पानी एकत्रित किया जाता था. जंगल से सटे इन चाल-खालों का पानी जंगली जीव जंतुओं से लेकर स्थानीय निवासियों के मवेशी पीने के लिए उपयोग करते थे. लेकिन बदलती इंसानी फितरत के कारण आज स्थिति यह है कि ये पूरी तरह से सूख गए हैं.

सूख गए हरे-भरे चाल-खाल, भटक रहे पानी के लिए

बता दें कि लगभग 10 दशक तक इन चाल-खालों में 12 महीने पानी भरा रहता था, लेकिन सरकारी मशीनरी कि बेरुखी के कारण आज ये पूरी तरह से अपना अस्तित्व खो चुके हैं.

पढ़ें: अब 'जीवनदायिनी' नहीं रही 108, अनट्रेंड ड्राइवरों के हाथ में मरीज की जान, सुनें कर्मचारियों की बात

वहीं, इसको लेकर वन गुर्जर अकबर अली का कहना है कि तीन दशक पूर्व ये चाल-खाल हमेशा पानी से भरा रहता था. उस दौरान जंगली जानवरों से लेकर स्थानीय मवेशी इस पर निर्भर रहते थे. विगत वर्षों में ग्राम प्रधानों के द्वारा इस साल चाल-खाल की चारदीवारी के लिए खुदवाया गया और इसकी मिट्टी को बाहर फिंकवाया दिया गया. जिससे चाल-खाल के नीचे पत्थर ही पत्थर रह गए और आज स्थिति यह है कि इसमें पानी नहीं रुकता. उन्होंने कहा कि मवेशियों के पानी के लिए बड़ी समस्या रहती है. अब उनके लिए टैंकरों से पानी लाया जाता है.

पढ़ें: यहां लाखों खर्च कर जुआरियों के लिए बनाया गया पोस्टमार्टम हाउस?

कुछ स्थानीय निवासियों ने प्रशासन पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि पहले यह चाल-खाल 12 महीने पानी से भरे रहते थे. अब स्थिति यह है कि जंगली जीव जंतु भटक कर इस चाल-खाल पर पानी के लिए पहुंचते हैं, लेकिन यहां पानी न मिलने से वह निराश होकर वापस लौटते हैं. उन्होंने कहा कि गांव के पार्षद हो या प्रधान उन्हें इस ओर ध्यान देना चाहिए.

कोटद्वारः इन दिनों गर्मी से लोगों का हाल बेहाल है. गर्मी से आदमी ही नहीं पशु-पक्षी भी परेशान हैं. इन दिनों पड़ रही जबरदस्त गर्मी कोटद्वार के लोगों के साथ ही पशु-पक्षी और जानवरों पर भारी पड़ रहा है. कोटद्वार के अलग-अलग जगहों पर कई दशकों से चाल-खाल बने हुए थे, जिसमें बरसात का पानी और गर्मी के समय नहरों से पानी एकत्रित किया जाता था. जंगल से सटे इन चाल-खालों का पानी जंगली जीव जंतुओं से लेकर स्थानीय निवासियों के मवेशी पीने के लिए उपयोग करते थे. लेकिन बदलती इंसानी फितरत के कारण आज स्थिति यह है कि ये पूरी तरह से सूख गए हैं.

सूख गए हरे-भरे चाल-खाल, भटक रहे पानी के लिए

बता दें कि लगभग 10 दशक तक इन चाल-खालों में 12 महीने पानी भरा रहता था, लेकिन सरकारी मशीनरी कि बेरुखी के कारण आज ये पूरी तरह से अपना अस्तित्व खो चुके हैं.

पढ़ें: अब 'जीवनदायिनी' नहीं रही 108, अनट्रेंड ड्राइवरों के हाथ में मरीज की जान, सुनें कर्मचारियों की बात

वहीं, इसको लेकर वन गुर्जर अकबर अली का कहना है कि तीन दशक पूर्व ये चाल-खाल हमेशा पानी से भरा रहता था. उस दौरान जंगली जानवरों से लेकर स्थानीय मवेशी इस पर निर्भर रहते थे. विगत वर्षों में ग्राम प्रधानों के द्वारा इस साल चाल-खाल की चारदीवारी के लिए खुदवाया गया और इसकी मिट्टी को बाहर फिंकवाया दिया गया. जिससे चाल-खाल के नीचे पत्थर ही पत्थर रह गए और आज स्थिति यह है कि इसमें पानी नहीं रुकता. उन्होंने कहा कि मवेशियों के पानी के लिए बड़ी समस्या रहती है. अब उनके लिए टैंकरों से पानी लाया जाता है.

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कुछ स्थानीय निवासियों ने प्रशासन पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि पहले यह चाल-खाल 12 महीने पानी से भरे रहते थे. अब स्थिति यह है कि जंगली जीव जंतु भटक कर इस चाल-खाल पर पानी के लिए पहुंचते हैं, लेकिन यहां पानी न मिलने से वह निराश होकर वापस लौटते हैं. उन्होंने कहा कि गांव के पार्षद हो या प्रधान उन्हें इस ओर ध्यान देना चाहिए.

Intro:एंकर- चिलचिलाती गर्मी से मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी पानी के लिए दर-दर भटक रहे हैं कोटद्वार के अलग अलग जगहों पर कई दशकों पूर्व से ही चाल खाल बने हुए थे जिनमें कि वर्षा काल मे वर्षा का पानी और गर्मी के समय नहरों से पानी एकत्रित किया जाता था,जंगल से सटे इन चालखालो के पानी को जंगली जीव जंतुओं से लेकर स्थानीय निवासियों के मवेशी तक पीने के लिए उपयोग करते थे, बदलते समय के साथ सरकारी मशीनरी और जनप्रतिनिधियों ने इन चार खालो की चारदीवारी का कार्य किया तो उसके बाद से यह चाल खाल पूर्णता सूख गए जिसके चलते ही जंगली जानवरों से लेकर स्थानीय निवासियों की मवेशियों को पानी का संकट गहराने लगा


Body:वीओ1- बता दें कि कई दशकों पूर्व से बने यह चाल खाल आज पूर्णता सूख गए लगभग 10 दशक पूर्व तक इन चाल खालो में 12 महीने पानी भरा रहता था और यह चाल खाल पानी से हरे भरे भरे रहते थे स्थानीय निवासियों के मवेशियों से लेकर जंगली जीव जंतु इन चाल खालो में पानी पीते थे लेकिन सरकारी मशीनरी कि बेरुखी के कारण आज यह चाल खाल अपना पूर्ण रूपसे अपना अस्तित्व खो चुके हैं,


Conclusion:विओ2- वन गुर्जर अकबर अली का कहना है कि तीन दशक पूर्व चाल खाल 12 महीने पानी से हरा भरा रहता था उस दौरान जंगली जानवरों से लेकर स्थानीय निवासियों के मवेशी भी इस पर पानी पीने के लिए निर्भर रहते थे विगत वर्षों में ग्राम प्रधानों के द्वारा इस साल खाल की चारदीवारी के लिए खुदवाया गया और इसकी मट्टी को बाहर फिंकवाया दिया गया चालखाल की मट्टी बाहर फेंकने के बाद इसके नीचे पत्थर ही पत्थर रह गए और आज स्थिति यह है कि इसमें पानी नहीं रुकता मवेशियों को पानी पिलाने की बड़ी समस्या रहती है टैंकरों के सारे पानी लाकर जानवरों को पानी पिलाया जाता है ऑल सूखने से जंगली जानवर भी पानी के लिए तरस रहे हैं

बाइट अकबर अली

वीओ3- वहीं झंडीचोड का स्थानीय निवासी पीतांबर का कहना है कि पहले यह चालखाल 12 महीने पानी से हरा भरा रहता था स्थानीय निवासी के मवेशी और जंगली जानवर भी इस चालखाल में आकर पानी पीते थे अब स्थिति यह है कि जंगल से जंगली जीव जंतु भटक भटक कर इस चाल खाल पर पानी के लिए पहुंचते हैं लेकिन यहां पानी न मिलने से वह निराश होकर वापस लौटते हैं घरेलू जानवरों का अब टेंकरो से और नालों से बाल्टी भरकर पानी पिलाना पड़ता है उन्होंने कहां की गांव के पार्षद हो या प्रधान उन्हें इस और ध्यान देना चाहिए और इस चाल खाल को दोबारा से आवाद करना चाहिए।
बाइट पीतांबर

पी टू सी विकाश वर्मा
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