श्रीनगरः देवप्रयाग में आजादी से पहले स्थापित ऐतिहासिक नक्षत्र वेधशाला बदहाल स्थिति में है. सरकार के उदासीनता के कारण ये वेधशाला अपना अस्तित्व खोने की कगार पर हैं. इस वेधशाला में देश के पहले राष्ट्रपति की जन्मपत्री बनाई गई थी. इतना ही नहीं यहां पर पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, सरदार बल्लभ भाई पटेल, इंदिरा गांधी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा समेत कई बड़ी हस्तियां अपनी जन्म कुंडली दिखवाने के लिए सीधे संपर्क में रहते थे. अब ये अमूल्य धरोहर धूल फांक रही है. जिसे संजोने की भी दरकार है.
बता दें कि अलकनंदा और भागीरथी के संगम पर बसे देवप्रयाग की अपनी एक अलग ही पहचान है. यहां की धार्मिक और एतिहासिक महत्व को देखने के लिए देश-विदेश से हर साल लाखों पर्यटक पहुंचते हैं. गंगा की इस संगम नगरी में एक ऐतिहासिक स्थान नक्षत्र वेधशाला भी स्थित है. जो 2123 फीट की ऊचांई पर स्थित है. इस नक्षत्र वेधशाला की स्थापना साल 1946 में हुई थी. देवप्रयाग के रहने वाले पंडित चक्रधर प्रसाद जोशी और देश के पहले लोकसभा अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलकंर ने इसकी नींव रखी थी.
बताया जाता है कि चक्रधर प्रसाद जोशी नक्षत्र वेधशाला बनाना चाहते थे, लेकिन उनके पास ज्यादा साधन नहीं थे. ऐसे में हिमालय समेत देश के चारों दिशाओं में घुमक्कड़ और साधक चक्रधर जोशी के खगोलशास्त्र पर अद्भुत पकड़ होने के कारण गणेश वासुदेव मावलकंर ने उनसे वेधशाला बनाने की सलाह दी. साथ में उनकी मदद भी की. इसकी स्थापना के बाद चक्रधर जोशी की खगोल विद्याा और संजोई गई ऐतिहासिक धरोहरों को देखने के लिए लोग यहां से जुड़ते गये.
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ये नक्षत्र वेधशाला ऐसे स्थान पर हैं, जहां से सौरमडंल बराबर दिशाओं में हैं. वहीं, यहां से उन्होंने सौर मडंल के नक्षत्रों और मानव के बीच के ज्योतिष शास्त्र का भी विशेष संयोग विद्या हासिल की. यही कारण है कि देश की आजादी के बाद देश की विभिन्न हस्तियों का यहां से सीधा जुड़ाव रहा. इसी नक्षत्र वेधशाला में देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद आये और अपनी जन्म कुंडली बनाकर अपने भविष्य को जानना चाहा. उनकी कुंडली आज भी यहां मौजूद है. उनके अलावा प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, फिल्म अभिनेत्री आशा पारेख समेत कई संगीतकार यहां आये थे. जिनके अहम दस्तावेज आज भी यहां पर मौजूद हैं.
इस वेधशाला में आज भी कई महत्वपूर्ण दस्तावेज, ऐतिहासिक प्रमाण और खगोलीय वस्तुऐं मौजूद हैं. यहां पर जर्मन की 1950 की दूरबीनें, जापान और रूस से लाई गई दूरबीनें भी रखी गई है. जिनसे खुद चक्रधर जोशी ने सौरमंडल का अध्ययन किया था. इस वेधशाला में दक्षिण भारत के कई ग्रंथ भी संजोकर रखे गये हैं, जो ताड़ के पत्तों पर लिखित हैं. वहीं, एक पेज पर चक्राकार मे लिखी हुई गीता भी संग्रहित की गई है. इसके अलावा वेधशाला में भारतीय चित्रकारों के कई अद्भुत चित्रकारी के नमूने और मानचित्र भी मौजूद हैं.
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वेधशाला में 1600 सदी से लेकर 19वीं सदी तक की 3000 से ज्यादा पांडुलिपियां और उत्तराखंड की एक मात्र रामायण प्रदीप रामायण, भृगुसहिंता, तंत्र-मंत्र की पांडुलिपियां मौजूद है, लेकिन ऐतिहासिक लोगों से जुड़ी इस वेधशाला का कोई सरक्षंण और सवंर्धन नहीं हो रहा है. हालांकि, लोग आज भी यहां पर जन्म कुंडली दिखवाने के लिए आते हैं, लेकिन वेधशाला के ये ऐतिहासिक तथ्य और सामग्री आज धूल फांक रहे हैं. परिवार के ही दो सदस्य अपने प्रयासों से इस वेधशाला की देखरेख कर रहे हैं. जो इस ऐतिहासिक नक्षत्र वेधशाला का संरक्षण और संवर्धन को लेकर कई बार सरकार से गुहार लगा चुके हैं.
भारत की संस्कृति और परम्पराएं विश्वाविख्यात हैं. वहीं, यहां के खगोल, भूगोल, गणित, विज्ञान जैसे विषयों का प्राचीन ज्ञान विश्व के कई अविष्कारों और अध्ययनों का आधार रहा है. विश्व के कई वैज्ञानिक भारतीय ज्ञान का लोहा मानते हैं, लेकिन उत्तराखंड की इस नक्षत्र वेधशाला में अर्जित अपार ज्ञान आज सरकार के उदासीनता के भेंट चढ़कर अपना अस्तित्व खोने की कगार पर हैं. ऐसे में अब दरकार है कि सरकार इस वेधशाला की महत्व को देखते हुए इसके सरक्षंण के लिए कोई ठोस कदम उठाये.