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कोटद्वार में नजूल भूमि कब्जा मामले में अतिक्रमणकारियों को राहत - Kotdwar Nazul land Encroachment case

कोटद्वार में नजूल भूमि पर काबिज अतिक्रमणकारियों को हाईकोर्ट ने राहत दी है.

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कोटद्वार नजूल भूमि कब्जा मामले में अतिक्रमकारियों को राहत
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Published : Feb 25, 2021, 10:12 PM IST

नैनीताल: कोटद्वार में नजूल भूमि पर काबिज अतिक्रमणकारियों को नैनीताल हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने अतिक्रमणकारियों को अपना प्रत्यावेदन 15 दिन के भीतर नगर निगम कोटद्वार को देने के आदेश दिए हैं. साथ ही नगर निगम कोटद्वार को आदेश दिए हैं कि अतिक्रमण मामले में 2 माह के भीतर फैसला करें.

कोटद्वार नजूल भूमि कब्जा मामले में अतिक्रमकारियों को राहत
बता दें कि कोटद्वार के रहने वाले मुजीब नैथानी ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि कोटद्वार में नजूल भूमि व बदरीनाथ हाईवे पर लोगों ने अतिक्रमण किया है. जिस वजह से हाइवे संकरा हो गया है. जिसके कारण बदरीनाथ जाने वाले मार्ग पर आए दिन जाम की स्थिति बनी रहती है. लिहाजा इस अतिक्रमण को तत्काल हटाया जाये.

पढ़ें- ATS में शामिल होगा पहला महिला कमांडो दस्ता, महाकुंभ में लगेगी ड्यूटी

पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए नजूल भूमि व हाईवे के आसपास से अतिक्रमण को 8 सप्ताह के भीतर हटाने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन की टीम के द्वारा दर्जनों दुकान और भवनों को ध्वस्त भी कर दिया गया था.

पढ़ें- त्रिवेंद्र सरकार के आखिरी बजट पर टिकी विपक्ष और जनता की निगाहें, सरकार ने तैयार किया फुलप्रूफ प्लान

हाईकोर्ट के आदेश के बाद नजूल भूमि पर काबिज लोगों के द्वारा सुप्रीम कोर्ट की शरण ली गई. जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ को मामले को संज्ञान में लेकर कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे. जिसके बाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ याचिकाकर्ता को अपना जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए थे. आज सभी याचिकाकर्ताओं के द्वारा अपना जवाब कोर्ट में पेश किया गया. जिसमें कहा कि सरकार के द्वारा 1970 में नजूल भूमि आवंटित की थी. उनके द्वारा सरकारी भूमि पर कब्जा नहीं किया गया है.

पढ़ें- 12 से 14 मार्च तक होगा चिरबटिया नेचर फेस्टिवल, पोस्टर का विमोचन

जिसका संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि अपना प्रत्यावेदन 15 दिन के भीतर नगर निगम कोटद्वार के पास ले जाएं. साथ ही नगर निगम कोटद्वार को आदेश दिए हैं कि याचिकाकर्ताओं के प्रत्यावेदन को 2 माह के भीतर निस्तारित करें ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हुआ है या नहीं.

नैनीताल: कोटद्वार में नजूल भूमि पर काबिज अतिक्रमणकारियों को नैनीताल हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने अतिक्रमणकारियों को अपना प्रत्यावेदन 15 दिन के भीतर नगर निगम कोटद्वार को देने के आदेश दिए हैं. साथ ही नगर निगम कोटद्वार को आदेश दिए हैं कि अतिक्रमण मामले में 2 माह के भीतर फैसला करें.

कोटद्वार नजूल भूमि कब्जा मामले में अतिक्रमकारियों को राहत
बता दें कि कोटद्वार के रहने वाले मुजीब नैथानी ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि कोटद्वार में नजूल भूमि व बदरीनाथ हाईवे पर लोगों ने अतिक्रमण किया है. जिस वजह से हाइवे संकरा हो गया है. जिसके कारण बदरीनाथ जाने वाले मार्ग पर आए दिन जाम की स्थिति बनी रहती है. लिहाजा इस अतिक्रमण को तत्काल हटाया जाये.

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पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए नजूल भूमि व हाईवे के आसपास से अतिक्रमण को 8 सप्ताह के भीतर हटाने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन की टीम के द्वारा दर्जनों दुकान और भवनों को ध्वस्त भी कर दिया गया था.

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हाईकोर्ट के आदेश के बाद नजूल भूमि पर काबिज लोगों के द्वारा सुप्रीम कोर्ट की शरण ली गई. जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ को मामले को संज्ञान में लेकर कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे. जिसके बाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ याचिकाकर्ता को अपना जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए थे. आज सभी याचिकाकर्ताओं के द्वारा अपना जवाब कोर्ट में पेश किया गया. जिसमें कहा कि सरकार के द्वारा 1970 में नजूल भूमि आवंटित की थी. उनके द्वारा सरकारी भूमि पर कब्जा नहीं किया गया है.

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जिसका संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि अपना प्रत्यावेदन 15 दिन के भीतर नगर निगम कोटद्वार के पास ले जाएं. साथ ही नगर निगम कोटद्वार को आदेश दिए हैं कि याचिकाकर्ताओं के प्रत्यावेदन को 2 माह के भीतर निस्तारित करें ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हुआ है या नहीं.

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