पौड़ी: जिले को आलू का हब बनाने के लिये पांच दिवसीय प्रशिक्षण केंद्र लगाया जाएगा. इसमें किसानों को वैज्ञानिक एवं आधुनिक खेती के तरीकों से अवगत कराया जाएगा. योजना सफल हुई तो आने वाले दिनों में पौड़ी जनपद को आलू नई पहचान दिलाएगा.
यहां का पहाड़ी आलू है पूरे देश में प्रसिद्ध: विभाग द्वारा 3 दिवसीय प्रशिक्षण के तहत किसानों के एक दल को रवाना किया गया है. जिले के सबसे बड़े विकास खंडों में शुमार थलीसैंण ब्लाॅक यूं तो सभी पहाड़ी और परंपरागत फसलों के लिए जाना जाता है, लेकिन थलीसैंण ब्लाॅक का पहाड़ी आलू पूरे देश में एक विशेष पहचान रखता है. थलीसैंण ब्लाॅक में अब आलू की खेती को वैज्ञानिक और आधुनिक तरीके से किये जाने को लेकर उद्यान विभाग ने रणनीति बनाई है. साथ ही पांच दिवसीय प्रशिक्षण के तहत किसानों को आलू बीज के उत्पादन की भी वैज्ञानिक जानकारियां दी जाएंगी.
किसानों को दी जाएगी खेती संबंधित वैज्ञानिक जानकारी: उद्यान विभाग द्वारा फिलहाल थलीसैंण ब्लॉक के 26 प्रगतिशील काश्तकारों के एक दल को केंद्रीय आलू शोध संस्थान हिमाचल प्रदेश भेजा गया है. यहां इन काश्तकारों को केंद्रीय आलू शोध संस्थान में आलू की खेती तथा उसके बीज उत्पादन की वैज्ञानिक जानकारियां दी जाएंगी. उद्यान विभाग के मुताबिक जनपद में आलू की खेती की अपार संभावनाएं हैं. पौड़ी के सभी 15 ब्लाॅकों में आलू की खेती होती है. लेकिन थलीसैंण ब्लाॅक में आलू का उत्पादन अन्य ब्लाॅकों के सापेक्ष काफी कहीं अधिक होता है.
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टनों में उगाया जाता है आलू: उद्यान विभाग के मुताबिक थलीसैंण में 320 हेक्टेअर के सापेक्ष 4762 मीट्रिक टन आलू प्रतिवर्ष उगाया जाता है. थलीसैंण का आलू मुख्य रूप से रामनगर मंडी पहुंचता है. थलीसैंण ब्लाॅक की मिट्टी में सिलिका प्रचुर मात्रा में है, जो कि आलू, प्याज, चुकंदर, मूली व जमीन के अंदर उगायी जाने वाली फसलों के लिए अनुकूल है. विभाग के मुताबिक जनपद में 67 हजार किसानों को पीएम किसान निधि प्राप्त होती है. जबकि जिले में कुछ 80 हजार किसान हैं. वहीं पौड़ी जिले के 1080 हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 16,102 मीट्रिक टन आलू का उत्पादन होता है.
इन ब्लाॅकों में होता है आलू उत्पादन: किसानों को 3 दिवसीय प्रशिक्षण दिया जाना है. इसमें उन्हें आलू के बीज उत्पादन की मुख्य रूप से जानकारी दी जाएगी. पौड़ी में आलू बीज मुहैया कराने वाला कोई संस्थान नहीं है. जिसके चलते इसे मुनस्यारी, मलारी, जलंधर या हिमाचल प्रदेश आदि जगहों से मंगवाना पड़ता है. थलीसैंण ब्लाॅक के 320 हेक्टेयर में 4762 मैट्रिक टन आलू होता है. वहीं कोट के 50 हेक्टेयर में 744, कल्जीखाल के 33 हेक्टेयर में 491, पौड़ी के 120 हेक्टेयर में 1785, पाबौ के 58 हेक्टेयर में 864, बीरोंखाल के 42 हेक्टेयर में 630, द्वारीखाल के 52 हेक्टेयर में 781, दुगड्डा के 56 हेक्टेयर में 844, जयहरीखाल के 35 हेक्टेयर में 511, एकेश्वर के 50 हेक्टेयर में 744 व रिखणीखाल के 45 हेक्टेयर में 675, यमकेश्वर के 51 हेक्टेयर में 770, नैनीडांडा के 53 हेक्टेयर में 796, पोखड़ा के 39 हेक्टेयर में 587, खिर्सू के 75 हेक्टेयर में 1116 मीट्रिक टन आलू का उत्पादन होता है.