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लॉकडाउन की मार: औने-पौने दाम पर लीची बेचने को मजबूर हैं किसान

कोरोना वायरस के चलते देशभर में लॉकडाउन चल रहा है. हालांकि अनलॉक 1.0 के फेज 2 में अब राज्य सरकार ने काफी हद तक छूट दी हैं. इसके बावजूद लॉकडाउन के चलते किसानों को फसलों को दूर-दराज की मंडियों तक पहुंचाने में काफी दिक्कतें आ रही हैं. उत्तराखंड में किसानों को लीची के सही दाम तक नहीं मिल रहे.

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औने-पौने दाम पर लीची बेचने को मजबूर हैं किसान
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Published : Jun 8, 2020, 10:40 AM IST

कोटद्वार: कोरोना महामारी के दौरान देश में हुए लॉकडाउन के कारण किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा. इन दिनों आम और लीची की फसल लगी हुई है. लेकिन लॉकडाउन में गाड़ियों के न चलने से लीची को बाहरी राज्यों की मंडी तक नहीं पहुंचाया जा पा रहा है. इस कारण किसानों को फसल स्थानीय मंडी में औने-पौने दामों में बेचनी पड़ रही है.

लॉकडाउन के चलते मंडियों में औने-पौने दाम पर लीची बेचने को मजबूर हैं किसान.

लीची के व्यवसायी मुख्तार अहमद बताते हैं कि उद्यान विभाग कोटद्वार से टेंडर प्रक्रिया से 6 लाख का एक आम और लीची का बगीचा खरीदा था. लेकिन लॉकडाउन के चलते वह लीची को दूर-दराज की मंडियों तक नहीं ले जा पाए. इस कारण उन्हें लीची का उचित दाम नहीं मिला. इससे व्यवसायी को लाखों रुपए का घाटा होने का डर सता रहा है. उन्होंने बताया कि कोटद्वार में लीची सबसे पहले तैयार होती है. अगर लॉकडाउन नहीं होता तो लीची को देहरादून जैसी अन्य मंडियों में भेजा जाता और अच्छे दाम मिलते.

ये भी पढ़ें: DM के आदेश पर पौड़ी शहर को किया सैनिटाइज

लीची व्यवसायी मोहम्मद सोल्हे बताते हैं कि उद्यान विभाग से लीची के बगीचे को 6 लाख 61 हजार की बोली लगाकर खरीदा गया था. हमें खुशी थी कि बगीचे में अच्छी फसल होगी और हमें अच्छा मुनाफा होगा. लेकिन विभाग की कमी थी कि उन्होंने बगीचे के अंदर के पेड़ों में दवाई और खाद-पानी समय से नहीं डाला. इस कारण हमारी लीची पेड़ों पर ही फट गई है. कुछ लीची पेड़ों पर बची भी है, लेकिन लॉकडॉउन के कारण दूर-दराज की मंडियों तक नहीं पहुंचा सके. इस कारण लीचियों को स्थानीय मंडी में बहुत सस्ते में बेचना पड़ा है.

ये भी पढ़ें: लैंसडाउन में 30 जून तक पर्यटकों पर रोक, कोरोना के मद्देनजर लिया गया फैसला

बता दें कि वर्तमान में 50 से ₹55 रुपये किलो मंडी में लीची बेची जा रही है. जबकि पिछले साल लीची 100 और ₹95 के भाव से मंडी में बेची गई थी. अगर लॉकडाउन समय से खुल जाता तो दूर दराज की मंडियों में कोटद्वार की लीची पहुंचती, जिससे अच्छा मुनाफा मिलता.

कोटद्वार: कोरोना महामारी के दौरान देश में हुए लॉकडाउन के कारण किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा. इन दिनों आम और लीची की फसल लगी हुई है. लेकिन लॉकडाउन में गाड़ियों के न चलने से लीची को बाहरी राज्यों की मंडी तक नहीं पहुंचाया जा पा रहा है. इस कारण किसानों को फसल स्थानीय मंडी में औने-पौने दामों में बेचनी पड़ रही है.

लॉकडाउन के चलते मंडियों में औने-पौने दाम पर लीची बेचने को मजबूर हैं किसान.

लीची के व्यवसायी मुख्तार अहमद बताते हैं कि उद्यान विभाग कोटद्वार से टेंडर प्रक्रिया से 6 लाख का एक आम और लीची का बगीचा खरीदा था. लेकिन लॉकडाउन के चलते वह लीची को दूर-दराज की मंडियों तक नहीं ले जा पाए. इस कारण उन्हें लीची का उचित दाम नहीं मिला. इससे व्यवसायी को लाखों रुपए का घाटा होने का डर सता रहा है. उन्होंने बताया कि कोटद्वार में लीची सबसे पहले तैयार होती है. अगर लॉकडाउन नहीं होता तो लीची को देहरादून जैसी अन्य मंडियों में भेजा जाता और अच्छे दाम मिलते.

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लीची व्यवसायी मोहम्मद सोल्हे बताते हैं कि उद्यान विभाग से लीची के बगीचे को 6 लाख 61 हजार की बोली लगाकर खरीदा गया था. हमें खुशी थी कि बगीचे में अच्छी फसल होगी और हमें अच्छा मुनाफा होगा. लेकिन विभाग की कमी थी कि उन्होंने बगीचे के अंदर के पेड़ों में दवाई और खाद-पानी समय से नहीं डाला. इस कारण हमारी लीची पेड़ों पर ही फट गई है. कुछ लीची पेड़ों पर बची भी है, लेकिन लॉकडॉउन के कारण दूर-दराज की मंडियों तक नहीं पहुंचा सके. इस कारण लीचियों को स्थानीय मंडी में बहुत सस्ते में बेचना पड़ा है.

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बता दें कि वर्तमान में 50 से ₹55 रुपये किलो मंडी में लीची बेची जा रही है. जबकि पिछले साल लीची 100 और ₹95 के भाव से मंडी में बेची गई थी. अगर लॉकडाउन समय से खुल जाता तो दूर दराज की मंडियों में कोटद्वार की लीची पहुंचती, जिससे अच्छा मुनाफा मिलता.

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