देहरादून/श्रीनगर: धारी देवी मंदिर जल्द ही नये स्वरूप में देखने को मिलेगा. यहां आने वाले श्रद्धालुों को धारी देवी के नये मन्दिर में प्राचीन कत्यूरी शैली व पर्वतीय कला और शिल्पकारी देखने को मिलेगी. जिसके लिए इन दिनों मन्दिर में कई शिल्पकार व इंजीनियर इसे अंतिम रूप देने में लगे हैं.
श्रीनगर का प्राचीन सिद्धपीठ धारी देवी मन्दिर 18वीं सदी का है. इस मन्दिर में काली माता के अवतार धारी देवी की पूजा होती है. माना जाता है कि यहां अलग-अलग पहरों में माता के अलग-अलग स्वरूप के दर्शन होते हैं. ये मंदिर केवल प्रदेश में नहीं अपितु दक्षिण भारत से लेकर विदेशों में भी प्रसिद्ध है. धारी देवी के प्रति आस्था रखने वाले श्रद्धालु हर साल यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
चार धामों में केदारनाथ व बद्रीनाथ की यात्रा प्राचीन समय में यहीं से शुरू होती थी. ऋषिकेश के बाद यही यात्रियों के ठहरने का प्रमुख स्थान था. लेकिन आज सड़कें धामों तक पहुंच चुकी हैं लिहाजा ये धाम चारधाम यात्रा मार्ग के किनारे आज भी पारम्परिक तरीके से यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख दर्शनीय स्थल है.
अब प्राचीन धारी देवी मन्दिर अपने पुराने स्वरूप से हटकर एक रुप में सबके सामने नजर आने जा रहा है. दरअसल अलकनन्दा के किनारे स्थित प्राचीन धारी देवी के मन्दिर को 15 जून 2013 को जल विद्युत परियोजना के डूब क्षेत्र से विस्थापित किया गया था. जिसके बाद 15-16 जून को उतराखंड मे केदारनाथ त्रासदी हुई थी. जिसे पुजारी वर्ग समेत धारी देवी में आस्था रखने वालों ने मां का प्रकोप माना था.
बहरहाल, अब मन्दिर को जल विद्युत परियोजना की झील के बीचों बीच परियोजना कम्पनी द्वारा उसी मूल स्थान के ऊपर बनाया जा रहा है. मन्दिर को जो नया स्वरूप दिया जा रहा है वह कई मायनों मे अलग होगा. इस मंदिर को कत्यूरी शैली मे बनाया जा रहा है. जहां हिमालय के पवित्र देव वृक्ष ,देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की उत्कृष्ट नक्काशी देखने को मिलेगी. कत्यूरी कला कृतियों को लकड़ी पर उकेरने के लिए परम्परागत यन्त्रों से जौनसार क्षेत्र से आई शिल्पकारों की टीम इन दिनों रात-दिन मेहनत कर रही है.
इस मन्दिर में जहां देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की प्राचीनकला दिखेगी. वहीं उतराखंड की पर्वतीय शैली पटाल से बनी मन्दिर की छत भीआकर्षण का विशेष केन्द्र होगी. अलकनन्दा नदी पर बनी पानी से भरी झील के बीचों-बीच इस मन्दिर को अन्तिम स्वरूप देने वाले आर्केटेक और इंजीनियर रात-दिन मेहनत कर मंदिर को नये स्वरुप देने में लगे हैं.
धारी देवी मन्दिर के प्रोजेक्ट इंजीनियर का कहना है कि मन्दिर को आकर्षित बनाने के लिए उतराखंड की कत्यूरी शैली का विशेष ध्यान रखा जा रहा है.जिससे ये मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था के साथ ये संस्कृति का परिचायक भी बन सके. प्रोजेक्ट इंजीनियर ने बताया कि इन दिनों यहां आ रहे श्रद्धालुओं को भी मंदिर का नया स्वरूप काफी पसंद आ रहा है.
सिद्धपीठ धारी देवी मन्दिर को दिया जा रहा ये स्वरूप निश्चिततौर पर आने वाले समय में श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहेगा. साथ ही ये मंदिर उतराखंड की प्राचीन पर्वतीय शैली का भी परिचायक होगा. साथ ही मंदिर के नये स्वरुप से उम्मीद जताई जा रहा कि इससे यहां पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा. जिससे यहां आस पास रहने वाले लोगों की आर्थिकी में सुधार होगा.