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जल्द नये स्वरुप में नजर आएगा श्रीनगर का धारी देवी मंदिर, कत्यूरी और पर्वतीय शैली में मंदिर को अंतिम रुप देने में जुटी शिल्पकारों की टीम

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Published : Feb 24, 2019, 5:29 AM IST

धारी देवी को नये स्वरूप दिये जाने का काम इन दिनो जोरो से चल रहा है. मंदिर की साज सज्जा का कार्य अंतिम चरण में चल रहा है. जल्द ही लोगों को मंदिर का एक नया स्वरूप सबके सामने होगा.

नये स्वरूप में दिखेगा धारी देवी का मंदिर.

देहरादून/श्रीनगर: धारी देवी मंदिर जल्द ही नये स्वरूप में देखने को मिलेगा. यहां आने वाले श्रद्धालुों को धारी देवी के नये मन्दिर में प्राचीन कत्यूरी शैली व पर्वतीय कला और शिल्पकारी देखने को मिलेगी. जिसके लिए इन दिनों मन्दिर में कई शिल्पकार व इंजीनियर इसे अंतिम रूप देने में लगे हैं.


श्रीनगर का प्राचीन सिद्धपीठ धारी देवी मन्दिर 18वीं सदी का है. इस मन्दिर में काली माता के अवतार धारी देवी की पूजा होती है. माना जाता है कि यहां अलग-अलग पहरों में माता के अलग-अलग स्वरूप के दर्शन होते हैं. ये मंदिर केवल प्रदेश में नहीं अपितु दक्षिण भारत से लेकर विदेशों में भी प्रसिद्ध है. धारी देवी के प्रति आस्था रखने वाले श्रद्धालु हर साल यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं.


चार धामों में केदारनाथ व बद्रीनाथ की यात्रा प्राचीन समय में यहीं से शुरू होती थी. ऋषिकेश के बाद यही यात्रियों के ठहरने का प्रमुख स्थान था. लेकिन आज सड़कें धामों तक पहुंच चुकी हैं लिहाजा ये धाम चारधाम यात्रा मार्ग के किनारे आज भी पारम्परिक तरीके से यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख दर्शनीय स्थल है.

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अब प्राचीन धारी देवी मन्दिर अपने पुराने स्वरूप से हटकर एक रुप में सबके सामने नजर आने जा रहा है. दरअसल अलकनन्दा के किनारे स्थित प्राचीन धारी देवी के मन्दिर को 15 जून 2013 को जल विद्युत परियोजना के डूब क्षेत्र से विस्थापित किया गया था. जिसके बाद 15-16 जून को उतराखंड मे केदारनाथ त्रासदी हुई थी. जिसे पुजारी वर्ग समेत धारी देवी में आस्था रखने वालों ने मां का प्रकोप माना था.


बहरहाल, अब मन्दिर को जल विद्युत परियोजना की झील के बीचों बीच परियोजना कम्पनी द्वारा उसी मूल स्थान के ऊपर बनाया जा रहा है. मन्दिर को जो नया स्वरूप दिया जा रहा है वह कई मायनों मे अलग होगा. इस मंदिर को कत्यूरी शैली मे बनाया जा रहा है. जहां हिमालय के पवित्र देव वृक्ष ,देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की उत्कृष्ट नक्काशी देखने को मिलेगी. कत्यूरी कला कृतियों को लकड़ी पर उकेरने के लिए परम्परागत यन्त्रों से जौनसार क्षेत्र से आई शिल्पकारों की टीम इन दिनों रात-दिन मेहनत कर रही है.

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इस मन्दिर में जहां देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की प्राचीनकला दिखेगी. वहीं उतराखंड की पर्वतीय शैली पटाल से बनी मन्दिर की छत भीआकर्षण का विशेष केन्द्र होगी. अलकनन्दा नदी पर बनी पानी से भरी झील के बीचों-बीच इस मन्दिर को अन्तिम स्वरूप देने वाले आर्केटेक और इंजीनियर रात-दिन मेहनत कर मंदिर को नये स्वरुप देने में लगे हैं.


धारी देवी मन्दिर के प्रोजेक्ट इंजीनियर का कहना है कि मन्दिर को आकर्षित बनाने के लिए उतराखंड की कत्यूरी शैली का विशेष ध्यान रखा जा रहा है.जिससे ये मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था के साथ ये संस्कृति का परिचायक भी बन सके. प्रोजेक्ट इंजीनियर ने बताया कि इन दिनों यहां आ रहे श्रद्धालुओं को भी मंदिर का नया स्वरूप काफी पसंद आ रहा है.

सिद्धपीठ धारी देवी मन्दिर को दिया जा रहा ये स्वरूप निश्चिततौर पर आने वाले समय में श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहेगा. साथ ही ये मंदिर उतराखंड की प्राचीन पर्वतीय शैली का भी परिचायक होगा. साथ ही मंदिर के नये स्वरुप से उम्मीद जताई जा रहा कि इससे यहां पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा. जिससे यहां आस पास रहने वाले लोगों की आर्थिकी में सुधार होगा.

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देहरादून/श्रीनगर: धारी देवी मंदिर जल्द ही नये स्वरूप में देखने को मिलेगा. यहां आने वाले श्रद्धालुों को धारी देवी के नये मन्दिर में प्राचीन कत्यूरी शैली व पर्वतीय कला और शिल्पकारी देखने को मिलेगी. जिसके लिए इन दिनों मन्दिर में कई शिल्पकार व इंजीनियर इसे अंतिम रूप देने में लगे हैं.


श्रीनगर का प्राचीन सिद्धपीठ धारी देवी मन्दिर 18वीं सदी का है. इस मन्दिर में काली माता के अवतार धारी देवी की पूजा होती है. माना जाता है कि यहां अलग-अलग पहरों में माता के अलग-अलग स्वरूप के दर्शन होते हैं. ये मंदिर केवल प्रदेश में नहीं अपितु दक्षिण भारत से लेकर विदेशों में भी प्रसिद्ध है. धारी देवी के प्रति आस्था रखने वाले श्रद्धालु हर साल यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं.


चार धामों में केदारनाथ व बद्रीनाथ की यात्रा प्राचीन समय में यहीं से शुरू होती थी. ऋषिकेश के बाद यही यात्रियों के ठहरने का प्रमुख स्थान था. लेकिन आज सड़कें धामों तक पहुंच चुकी हैं लिहाजा ये धाम चारधाम यात्रा मार्ग के किनारे आज भी पारम्परिक तरीके से यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख दर्शनीय स्थल है.

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अब प्राचीन धारी देवी मन्दिर अपने पुराने स्वरूप से हटकर एक रुप में सबके सामने नजर आने जा रहा है. दरअसल अलकनन्दा के किनारे स्थित प्राचीन धारी देवी के मन्दिर को 15 जून 2013 को जल विद्युत परियोजना के डूब क्षेत्र से विस्थापित किया गया था. जिसके बाद 15-16 जून को उतराखंड मे केदारनाथ त्रासदी हुई थी. जिसे पुजारी वर्ग समेत धारी देवी में आस्था रखने वालों ने मां का प्रकोप माना था.


बहरहाल, अब मन्दिर को जल विद्युत परियोजना की झील के बीचों बीच परियोजना कम्पनी द्वारा उसी मूल स्थान के ऊपर बनाया जा रहा है. मन्दिर को जो नया स्वरूप दिया जा रहा है वह कई मायनों मे अलग होगा. इस मंदिर को कत्यूरी शैली मे बनाया जा रहा है. जहां हिमालय के पवित्र देव वृक्ष ,देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की उत्कृष्ट नक्काशी देखने को मिलेगी. कत्यूरी कला कृतियों को लकड़ी पर उकेरने के लिए परम्परागत यन्त्रों से जौनसार क्षेत्र से आई शिल्पकारों की टीम इन दिनों रात-दिन मेहनत कर रही है.

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इस मन्दिर में जहां देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की प्राचीनकला दिखेगी. वहीं उतराखंड की पर्वतीय शैली पटाल से बनी मन्दिर की छत भीआकर्षण का विशेष केन्द्र होगी. अलकनन्दा नदी पर बनी पानी से भरी झील के बीचों-बीच इस मन्दिर को अन्तिम स्वरूप देने वाले आर्केटेक और इंजीनियर रात-दिन मेहनत कर मंदिर को नये स्वरुप देने में लगे हैं.


धारी देवी मन्दिर के प्रोजेक्ट इंजीनियर का कहना है कि मन्दिर को आकर्षित बनाने के लिए उतराखंड की कत्यूरी शैली का विशेष ध्यान रखा जा रहा है.जिससे ये मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था के साथ ये संस्कृति का परिचायक भी बन सके. प्रोजेक्ट इंजीनियर ने बताया कि इन दिनों यहां आ रहे श्रद्धालुओं को भी मंदिर का नया स्वरूप काफी पसंद आ रहा है.

सिद्धपीठ धारी देवी मन्दिर को दिया जा रहा ये स्वरूप निश्चिततौर पर आने वाले समय में श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहेगा. साथ ही ये मंदिर उतराखंड की प्राचीन पर्वतीय शैली का भी परिचायक होगा. साथ ही मंदिर के नये स्वरुप से उम्मीद जताई जा रहा कि इससे यहां पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा. जिससे यहां आस पास रहने वाले लोगों की आर्थिकी में सुधार होगा.

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एंकर- श्रीनगर का धारी देवी मन्दिर जल्द ही नये स्वरूप में देखने को मिलेगा ,यहां आने वाले श्रद्धालुआंे को धारी देवी के नये मन्दिर में प्राचीन कत्यूरी शैली व पर्वतीय कला व शिल्पकारी देखने को मिलेगी जिसके लिए इन दिनों मन्दिर को अन्तिम रूप दिए जाने के लिए कई शिल्पकार व इन्जिीनियर कड़ी मेहनत कर रहे हैं

वीओ-1-ये हैं श्रीनगर का प्राचीन सिद्धपीठ धारी देवी मन्दिर, 18वीं सदी के इस मन्दिर में काली माता के अवतार धारी देवी की पूजा होती है,जहां माना जाता है कि माता के मुख के दर्षन दिन के अलग अलग पहरों मे अलग अलग स्वरूप मे होता है।  मन्दिर की प्रसिद्धि न सिर्फ उतराखंड बल्कि दक्षिण भारत से लेकर देष के विभिन्न भागों में है। धारी देवी के प्रति आस्था रखने वाले श्रद्धालु हर साल यहां दर्षन के लिए पहुंचते हैं, चार धामों मे केदारनाथ धाम व बद्रीनाथ धाम की यात्रा प्राचीन समय मे यहीं से शुरू होती थी और ऋषिकेश के बाद यहीं यात्रियों का ठहरने का प्रमुख स्थान था, लेकिन आज सड़के धामों तक पहुंच चुकी है लिहाजा ये धाम चारधाम यात्रा मार्ग के किनारे आज भी पारम्परिक तरीके से यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख दर्शनीय स्थल है। 

बाइट-1- पुजारी 

वीओ-2- प्राचीन धारी देवी मन्दिर अपने पुराने स्वरूप से हटकर एक नये इतिहास को बनाने जा रहा है दरअसल अलकनन्दा के किनारे स्थित प्राचीन धारी देवी के मन्दिर को 15 जून 2013 को जल विद्युत परियोजना के डूब क्षेत्र से विस्थापित किया गया था और 15-16 जून को उतराखंड मे केदारनाथ त्रासदी हुई थी जिसे पुजारी वर्ग समेत धारी देवी मे आस्था रखने वालों ने मां का प्रकोप माना गया , बहरहाल अब मन्दिर को जल विद्युत परियोजना की झील के बीचों बीच परियोजना कम्पनी द्वारा उसी मूल स्थान के ऊपर बनाया जा रहा है,   मन्दिर को जो नया स्वरूप दिया जा रहा है वह कई मायनों मे अलग होगा। मन्दिर केा कत्यूरी शैली मे बनाया जा रहा है, जहां हिमालय के पवित्र देव वृक्ष ,देवदार की लकड़ी पर षिल्पकारी की उत्कृष्ट नकासी देखने को मिलेगी। कत्यूरी कला कृतियों को लकड़ी पर उकेरने के लिए परम्परागत यन्त्रों से जौनसार क्षेत्र से आये षिल्पकारों की टीम इन दिनों दिन-रात एक करके बेहतरीन षिल्पकला को सजोंने का काम कर रही है।

बाइट-2- राम स्वरूप शिल्पकार
बाइट-3- सत्यजीत खण्डूड़ी इन्जिनीयर धारी देवी प्रोजेक्ट 

वीओ-3-इस मन्दिर मे जहां देवदार की लकड़ी पर षिल्पकारी के प्राचीन  कला दिखेगी वहीं उतराखंड की पर्वतीय शैली में बनी    पटाल से बनी मन्दिर की छत भी  आकर्षण का विषेष केन्द्र होगी। अलकनन्दा नदी पर पानी से लबा-लब भरी झील के बीचों बीच इस मन्दिर को अन्तिम स्वरूप देने वाले आर्केटेक व इन्जिीनियर भी दिन रात एक करके मन्दिर को तैयार करने मे जुटे हैं, धारी देवी मन्दिर के प्रोजेक्ट इन्जिीनियर का कहना है कि मन्दिर को आकर्षित बनाने के साथ साथ उतराखंड की कत्यूरी शैली का विशेष ध्यान रखा रहा है ताकि श्रद्धालुओं के लिए आस्था के साथ ये संस्कृति का परिचायक भी बन सके।वहीं यहां आ रहे श्रद्धालु भी मन्दिर के नये स्वरूप से खुश दिख रहे हैं। 

बाइट-4- सत्यजीत खण्डूड़ी इन्जिीनियर धारी देवी प्रोजेक्ट


वीओ फाइनल- सिद्धपीठ धारी देवी मन्दिर को दिया जा रहा ये स्वरूप निश्चिततौर पर आने वाले समय मे जहां श्रद्धालुओं के लिए उतराखंड की प्राचीन पर्वतीय शैली का परिचय करवायेगा वहीं  उम्मीद है कि अलकनन्दा के स्वच्छ नीले जल के बीच ये मन्दिर पर्यटन के लिए भी वरदान साबित होगा। 
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