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केदारनाथ प्रलय से जुड़ा है इस मंदिर का रहस्य, दिन में तीन रूप बदलती हैं देवी

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Published : Oct 1, 2019, 7:31 AM IST

Updated : Oct 1, 2019, 7:15 PM IST

आज शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन हम देवभूमि के एक और एतिहासिक मंदिर को जानेंगे. ये भी जानेंगे कि इस मंदिर को लेकर क्या कहानियां प्रचलित हैं. इस मंदिर के बारे में अनुश्रुति प्रचलित है कि इसके विस्थापन से केदारनाथ में जलप्रलय आया था.

धारी देवी मंदिर

श्रीनगर : इसे चाहे अंधविश्वास कहें या महज एक संयोग, उत्तराखंड में 2013 को आए जलप्रलय के लिए स्थानीय लोगों का मानना है कि माता धारी देवी के प्रकोप से केदारनाथ में महाविनाश हुआ था. मां काली का रूप माने जाने वाली धारी देवी की प्रतिमा को ठीक 16 जून 2013 की शाम को उनके प्राचीन मंदिर से हटाया गया था. पौड़ी जिले के श्रीनगर में हाइडिल-पॉवर प्रोजेक्ट के लिए ऐसा किया गया था. ऐसा मानना है कि जैसे ही प्रतिमा हटाई गई, उसके कुछ घंटे बाद ही केदारनाथ में तबाही आ गई और सैकड़ों लोग की जान इस तबाही में चली गई.

स्थानीय लोगों का मानना है कि धारी देवी को केदारनाथ का द्वारपाल कहा जाता है. उनके विस्थापन से केदारनाथ का संतुलन बिगड़ गया और केदारनाथ में आई तबाही देवभूमि में प्रलय का कारण बनी. देवभूमि में और खासकर श्रीनगर इलाके में धारी देवी की बहुत मान्यता है. लोगों की धारणा है कि धारी देवी की प्रतिमा में उनका चेहरा दिन में तीन बार बदलता है. सुबह देवी की प्रतिमा एक बच्चे के समान लगती है. दोपहर चढ़ने तक मूर्ति में युवा स्त्री की झलक दिखती है और रात होते-होते मूर्ति एक बूढ़ी महिला जैसा रूप ले लेती है. ऐसा हर दिन होता है. कई लोगों ऐसा भी कहते हैं कि उन्हें साक्षात मूर्ति में ऐसा परिवर्तन होते देखा है.

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पौराणिक कथा
मान्यता है कि काफी समय पहले एक भयंकर बाढ़ में पूरा मंदिर बह गया था, लेकिन धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से सटी धारो गांव में बची रह गई. गांव वालों को धारी देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी कि उनकी प्रतिमा को वहीं स्थापित किया जाए. यही कारण है कि धारी देवी की प्रतिमा को उनके मंदिर से हटाए जाने का विरोध किया जा रहा था. यह मंदिर श्रीनगर से 10 किलोमीटर दूर स्थित है.

पढ़ेंः नवरात्र विशेष: यहां अश्रुधार से बनी थी झील, शिव-सती के वियोग का साक्षी है ये मंदिर

शारदीय नवरात्र शुरू हो गए हैं. ऐसे में देवी के अन्य मंदिरों की तरह धारी देवी में भी बड़ी संख्या में भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं. वैसे तो धारी देवी मंदिर में भक्तों का हुजूम पूरे साल रहता है. लेकिन, नवरात्र पर देवी मां के दर्शन करने बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. धारी देवी मंदिर में घंटा चढ़ाने की परंपरा है. इसलिए मंदिर में घंटा बहुतायत संख्या में दिख जाएंगे. ऐसी मान्यता है कि मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त मंदिर में घंटा चढ़ाते हैं.

श्रीनगर : इसे चाहे अंधविश्वास कहें या महज एक संयोग, उत्तराखंड में 2013 को आए जलप्रलय के लिए स्थानीय लोगों का मानना है कि माता धारी देवी के प्रकोप से केदारनाथ में महाविनाश हुआ था. मां काली का रूप माने जाने वाली धारी देवी की प्रतिमा को ठीक 16 जून 2013 की शाम को उनके प्राचीन मंदिर से हटाया गया था. पौड़ी जिले के श्रीनगर में हाइडिल-पॉवर प्रोजेक्ट के लिए ऐसा किया गया था. ऐसा मानना है कि जैसे ही प्रतिमा हटाई गई, उसके कुछ घंटे बाद ही केदारनाथ में तबाही आ गई और सैकड़ों लोग की जान इस तबाही में चली गई.

स्थानीय लोगों का मानना है कि धारी देवी को केदारनाथ का द्वारपाल कहा जाता है. उनके विस्थापन से केदारनाथ का संतुलन बिगड़ गया और केदारनाथ में आई तबाही देवभूमि में प्रलय का कारण बनी. देवभूमि में और खासकर श्रीनगर इलाके में धारी देवी की बहुत मान्यता है. लोगों की धारणा है कि धारी देवी की प्रतिमा में उनका चेहरा दिन में तीन बार बदलता है. सुबह देवी की प्रतिमा एक बच्चे के समान लगती है. दोपहर चढ़ने तक मूर्ति में युवा स्त्री की झलक दिखती है और रात होते-होते मूर्ति एक बूढ़ी महिला जैसा रूप ले लेती है. ऐसा हर दिन होता है. कई लोगों ऐसा भी कहते हैं कि उन्हें साक्षात मूर्ति में ऐसा परिवर्तन होते देखा है.

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पौराणिक कथा
मान्यता है कि काफी समय पहले एक भयंकर बाढ़ में पूरा मंदिर बह गया था, लेकिन धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से सटी धारो गांव में बची रह गई. गांव वालों को धारी देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी कि उनकी प्रतिमा को वहीं स्थापित किया जाए. यही कारण है कि धारी देवी की प्रतिमा को उनके मंदिर से हटाए जाने का विरोध किया जा रहा था. यह मंदिर श्रीनगर से 10 किलोमीटर दूर स्थित है.

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शारदीय नवरात्र शुरू हो गए हैं. ऐसे में देवी के अन्य मंदिरों की तरह धारी देवी में भी बड़ी संख्या में भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं. वैसे तो धारी देवी मंदिर में भक्तों का हुजूम पूरे साल रहता है. लेकिन, नवरात्र पर देवी मां के दर्शन करने बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. धारी देवी मंदिर में घंटा चढ़ाने की परंपरा है. इसलिए मंदिर में घंटा बहुतायत संख्या में दिख जाएंगे. ऐसी मान्यता है कि मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त मंदिर में घंटा चढ़ाते हैं.

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इसे चाहें तो अंधविश्वास कहें या महज एक संयोग! उत्तराखंड में हुई तबाही के लिए जहां लोग प्रशासन की लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं वहीं उत्तराखंड के गढ़वाल वासियों का मानना है कि माता धारी देवी के प्रकोप से ये महाविनाश हुआ.

 

मां काली का रूप माने जाने वाली धारी देवी की प्रतिमा को 16 जून की शाम को उनके प्राचीन मंदिर से हटाई गई थी. उत्तराखंड के श्रीनगर में हाइडिल-पॉवर प्रोजेक्ट के लिए ऐसा किया गया था. प्रतिमा जैसे ही हटाई गई उसके कुछ घंटे बाद ही केदारनाथ में तबाही का मंजर आया और सैकड़ों लोग इस तबाही के मंजर में मारे गए.



विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल ने कहा, 'लोगों ने हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट के खिलाफ प्रदर्शन किया था और धारी देवी की प्रतिमा को हटाए जाने का विरोध किया था. लेकिन इसके बावजूद 16 जून को धारी देवी की प्रतिमा को हटाया गया. धारी देवी के गुस्से से ही केदारनाथ और उत्तराखंड के अन्य इलाकों में तबाही मची. धारी देवी देश के नास्तिक लोगों को समझाना चाहती थीं कि हिमालय और यहां की नदियों को ना छुआ जाए.'





इस इलाके में धारी देवी की बहुत मान्यता है. लोगों की धारणा है कि धारी देवी की प्रतिमा में उनका चेहरा समय के साथ बदला है. एक लड़की से एक महिला और फिर एक वृद्ध महिला का चेहरा बना.



पौराणिक धारणा है कि एक बार भयंकर बाढ़ में पूरा मंदिर बह गया था लेकिन धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से सटी धारो गांव में बची रह गई थी. गांववालों को धारी देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी थी कि उनकी प्रतिमा को वहीं स्थापित किया जाए. यही कारण है कि धारी देवी की प्रतिमा को उनके मंदिर से हटाए जाने का विरोध किया जा रहा था. यह मंदिर श्रीनगर से 10 किलोमीटर दूर पौड़ी गांव में है.



330 मेगावाट वाले अलखनंदा हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट का काम अभी भी जारी है. लोगों के विरोध के चलते ही ये प्रोजेक्ट जो 2011 तक पूरा हो जाना चाहिए था अभी तक इस पर काम चल रहा है. जैसे ही धारी देवी की प्रतिमा को स्थानांतरित करने की बात शुरू हुई प्रोजेक्ट को लेकर लोगों का विरोध नए स्तर से शुरू हो गया. बीच का रास्ता निकालते हुए प्रोजेक्ट ने फैसला लिया कि पावर प्रोजेक्ट से दूर धारी देवी के मंदिर को स्थानांतरित किया जाएगा. धारी देवी की प्रतिमा को स्थानांतरित करने के लिए प्लेटफॉर्म बन चुका था लेकिन पॉवर प्रोजेक्ट कंपनी और मंदिर कमिटी के लिए उनकी मूर्ति को विस्थापित करना मुश्किल होता जा रहा था.



16 जून को जब मंदाकिनी नदी में बाढ़ आना शुरू हुई तो मंदिर कमिटी ने धारी देवी की प्रतिमा बचाने के लिए तुरंत एक्शन लिया. धारा देवी मंदिर कमिटी के पूर्व सचिव देवी प्रसाद पांडे के मुताबिक, 'शाम तक मंदिर में घुटने तक पानी भर गया था. ऐसी खबरें थीं कि रात तक बहुत तेज बारिश होने वाली है. तो धारा देवी की प्रतिमा को हटाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. हमने शाम को 6:30 बजे प्रतिमा को स्थानांतरित किया था.'

 


Conclusion:
Last Updated : Oct 1, 2019, 7:15 PM IST
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