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उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजोने के प्रयास में जुटा 'गढ़ज्योति'

गढ़ज्योति सांस्कृतिक कला मंच का उद्देश्य बच्चों को उत्तराखंड की संस्कृति, पारंपरिक वेशभूषा और बोली से रूबरू करवाना है. साथ ही मंच पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत को संजोने का काम भी कर रहा है.

कला मंच
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Published : Aug 18, 2019, 7:54 PM IST

पौड़ी: उत्तराखंड की विलुप्त होती संस्कृति को गढ़ज्योति सांस्कृतिक कला मंच पिछले 13 सालों से संजोने का प्रयास कर रहा है. जिसके तहत हर साल कला मंच विभिन्न सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है. जिसमें पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य, गढ़वाली वाद विवाद और भाषण प्रतियोगिता आदि है. जिससे छात्र-छात्राएं अपनी सांस्कृतिक विरासत और बोली से रूबरू हो सकें.

पढ़ें:रुड़की में मासूम बच्चे के साथ कुकर्म, आरोपी फरार

गढ़ज्योति सांस्कृतिक कला मंच के अध्यक्ष भरत सिंह रावत ने कहा कि मंच के माध्यम से उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा, आभूषण, रहन-सहन और बोली भाषा को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. ताकि आयोजनों की मदद से बच्चे अपनी संस्कृति से रूबरू हो सके. साथ ही प्रतियोगिता में विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया जाता है.

उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजोने के प्रयास में जुटा 'गढ़ज्योति'.

वहीं, मंच की सदस्य प्रियंका बिष्ट ने कहा कि वह लंबे समय से इस मंच के साथ जुड़ी है. साथ ही समय-समय पर इस तरह के आयोजन से बच्चों को उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा संस्कृति की जानकारी मिलती है. गढ़वाली वाद विवाद और भाषण प्रतियोगिता की मदद से भी हमारी गढ़वाली बोली भाषा को भी बचाने का प्रयास किया जा रहा है.

पौड़ी: उत्तराखंड की विलुप्त होती संस्कृति को गढ़ज्योति सांस्कृतिक कला मंच पिछले 13 सालों से संजोने का प्रयास कर रहा है. जिसके तहत हर साल कला मंच विभिन्न सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है. जिसमें पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य, गढ़वाली वाद विवाद और भाषण प्रतियोगिता आदि है. जिससे छात्र-छात्राएं अपनी सांस्कृतिक विरासत और बोली से रूबरू हो सकें.

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गढ़ज्योति सांस्कृतिक कला मंच के अध्यक्ष भरत सिंह रावत ने कहा कि मंच के माध्यम से उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा, आभूषण, रहन-सहन और बोली भाषा को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. ताकि आयोजनों की मदद से बच्चे अपनी संस्कृति से रूबरू हो सके. साथ ही प्रतियोगिता में विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया जाता है.

उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजोने के प्रयास में जुटा 'गढ़ज्योति'.

वहीं, मंच की सदस्य प्रियंका बिष्ट ने कहा कि वह लंबे समय से इस मंच के साथ जुड़ी है. साथ ही समय-समय पर इस तरह के आयोजन से बच्चों को उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा संस्कृति की जानकारी मिलती है. गढ़वाली वाद विवाद और भाषण प्रतियोगिता की मदद से भी हमारी गढ़वाली बोली भाषा को भी बचाने का प्रयास किया जा रहा है.

Intro:हमारे उत्तराखंड की संस्कृति, वेशभूषा और हमारे आभूषण धीमे धीमे विलुप्त होते जा रहे हैं आज के समय में हमारे पारंपरिक वेश भूषाओं को पहनने की परंपरा भी समाप्त होती जा रही है गढ़ज्योति सांस्कृतिक कला मंच की ओर से पिछले 13 सालों से संस्कृति को बचाने का प्रयास किया जा रहा है इस मंच की ओर से हर साल उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा आभूषणों को पहनकर छात्राएं प्रतिभाग करती हैं और जो भी प्रतिभागी इसमें विजेता रहता है उसे पुरस्कृत भी किया जाता है।


Body:गढ़ज्योति सांस्कृतिक कला मंच के अध्यक्ष भरत सिंह रावत ने कहा कि वह इस मंच की मदद से हमारे उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा आभूषण और बोली भाषा को बचाने के लिए इस तरह के आयोजन करते हैं इन आयोजनों की मदद से आज के बच्चों को हमारे उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषाओं बोली भाषाओं की जानकारी दी जाती है और प्रतियोगिता में विजेता प्रतिभागी को पुरस्कृत भी किया जाता है। कहा प्रतियोगिता की शुरुआत गढ़वाली भाषा से की जाती है और इसमें प्रतिभाग करने वाले सभी प्रतिभागी अपनी इच्छा के अनुसार वेशभूषा आभूषण और उनकी जानकारियां जुटाकर आते हैं इन प्रतियोगिताओं की मदद से हमारे उत्तराखंड की संस्कृति को का प्रचार प्रसार कर इस को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
बाईट-भरत सिंह रावत(अध्यक्ष गढ़ज्योति सांस्कृतिक कला मंच)


Conclusion:मंच की सदस्य प्रियंका बिष्ट ने कहा कि वह लंबे समय से इस मंच के साथ जुड़ी है और समय-समय पर इस तरह के आयोजन से बच्चों को उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा संस्कृति की जानकारी मिलती है और गढ़वाली वाद विवाद और भाषण प्रतियोगिता की मदद से भी हमारी गढ़वाली बोली भाषा को भी बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
बाईट-प्रियंका बिष्ट
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