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नैनीताल के ओखलकांडा में है देव गुरु बृहस्पति का मंदिर, पूरी होती है हर मनोकामना

उत्तराखंड को उसके धार्मिक स्थलों के कारण देवभूमि कहा जाता है. यहां चारधाम हैं तो देव गुरु बृहस्पति का मंदिर भी है. मान्यता है कि नैनीताल के ओखलकांडा में स्थित देव गुरु बृहस्पति के खुले मंदिर में पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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देव गुरु बृहस्पति भगवान का पूजा करने से भक्तों की होती है मनोकामना पूर्ण
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Published : Jun 8, 2020, 12:19 PM IST

Updated : Jun 9, 2020, 10:33 AM IST

हल्द्वानी : उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. यहां कण-कण में देवी-देवताओं का वास माना जाता है. ऋषि मुनियों के साथ-साथ देवताओं ने भी उत्तराखंड को अपना तपस्थली बनाया. उन्हीं देवी-देवताओं में देव गुरु बृहस्पति भगवान का पिंडी रूपी मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले के ओखलकांडा में है. मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा करने से भगवान बृहस्पति देव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

नैनीताल के ओखलकांडा में है देव गुरु बृहस्पति का मंदिर
जिले के ओखलकांडा क्षेत्र में स्थित देव गुरु बृहस्पति भगवान का एकमात्र मंदिर है, जो समूचे हिमालयी भू-भाग में परम पूजनीय है. इस मंदिर की महिमा के बारे में अनेकों दंतकथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि सतयुग में एक बार देवराज इन्द्र ब्रह्म हत्या के पाप से घिर गये थे. पाप से मुक्ति के लिए वे यहां के घने जंगलों की गुफाओं में तपस्या करने लगे. उनके अचानक स्वर्ग छोड़ देने के कारण सभी देवता परेशान हो गए. काफी खोजबीन के बाद भी जब देवराज इन्द्र का पता नहीं चला तो सभी देवगण निराश होकर अपने गुरु बृहस्पति महाराज की शरण में गये. उन्होंने देवगुरु से इन्द्र को खोजने का अनुरोध किया.

देवताओं की विनती पर देवगुरु ने इन्द्र की खोज आरम्भ की. वे उन्हें खोजते-खोजते भू-लोक में पहुंचे. एक गुफा में उन्होंने देवराज इन्द्र को भयग्रस्त अवस्था में व्याकुल देखा. देवगुरु ने इन्द्र की व्याकुलता दूर कर उन्हें अभयत्व प्रदान कर वापस भेज दिया. तत्पश्चात इस स्थान के सौंदर्य व पर्वतों की रमणीकता देखकर वे मंत्रमुग्ध हो तपस्या में लीन हो गए. तभी से यह स्थान पृथ्वी पर देवगुरु धाम के नाम से प्रसिद्व हुआ.

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अनंत रहस्यों को अपने में समेटे इस दरबार के प्रति अंग्रेजों की भी गहरी आस्था थी. वे भी देवगुरु के चमत्कार से वाकिफ थे. इस मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देवगुरु की इच्छा से यह मंदिर खुले आकाश के नीचे है. अनेक भक्तों ने यहां मंदिर निर्माण की बात सोची लेकिन सभी की इच्छाएं धरी की धरी रह गईं. क्योंकि देवगुरु की इच्छा खुले आकाश के नीचे विराजमान रहने की थी. बताते हैं कि कई लोगों ने पूर्व में यहां पर भव्य मंदिर निर्माण की बात सोची व प्रयास भी किये, परन्तु देवगुरु की इच्छा के आगे सभी के प्रयास विफल हो गए.

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स्थानीय श्रद्धालु बताते हैं कि एक बार मंदिर के पुजारी केशव दत्त जी ने इसे बड़ा बनाने के उद्वेश्य से कुछ दूरी पर पत्थर का खुदान करवाया. इस खुदाई में हर पत्थर के नीचे सांपों का झुण्ड निकला. पत्थर इतने वजनदार हो गये कि उन्हें कोई उठा तक नहीं पाया. देवगुरु के सभी भक्त प्रभु के संकेत को समझ गये कि उनका मंदिर खुला रहेगा. बताते हैं कि रात्रि में विधिपूर्वक यहां देवगुरु का ध्यान लगाने पर पहाड़ियों से कानों में संगीत के स्वर गूंजते हैं. आज भी यहां रात्रि पूजा होती है. नैनीताल के ओखलकांडा विकास खण्ड की ऊंची चोटी पर स्थित देवगुरु के इस दरबार की ऊंचाई लगभग आठ हजार फीट है. आसपास के गांव कोटली, करायल, देवली, पुटपुड़ी, तुषराड़ आदि हैं.

हल्द्वानी : उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. यहां कण-कण में देवी-देवताओं का वास माना जाता है. ऋषि मुनियों के साथ-साथ देवताओं ने भी उत्तराखंड को अपना तपस्थली बनाया. उन्हीं देवी-देवताओं में देव गुरु बृहस्पति भगवान का पिंडी रूपी मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले के ओखलकांडा में है. मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा करने से भगवान बृहस्पति देव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

नैनीताल के ओखलकांडा में है देव गुरु बृहस्पति का मंदिर
जिले के ओखलकांडा क्षेत्र में स्थित देव गुरु बृहस्पति भगवान का एकमात्र मंदिर है, जो समूचे हिमालयी भू-भाग में परम पूजनीय है. इस मंदिर की महिमा के बारे में अनेकों दंतकथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि सतयुग में एक बार देवराज इन्द्र ब्रह्म हत्या के पाप से घिर गये थे. पाप से मुक्ति के लिए वे यहां के घने जंगलों की गुफाओं में तपस्या करने लगे. उनके अचानक स्वर्ग छोड़ देने के कारण सभी देवता परेशान हो गए. काफी खोजबीन के बाद भी जब देवराज इन्द्र का पता नहीं चला तो सभी देवगण निराश होकर अपने गुरु बृहस्पति महाराज की शरण में गये. उन्होंने देवगुरु से इन्द्र को खोजने का अनुरोध किया.

देवताओं की विनती पर देवगुरु ने इन्द्र की खोज आरम्भ की. वे उन्हें खोजते-खोजते भू-लोक में पहुंचे. एक गुफा में उन्होंने देवराज इन्द्र को भयग्रस्त अवस्था में व्याकुल देखा. देवगुरु ने इन्द्र की व्याकुलता दूर कर उन्हें अभयत्व प्रदान कर वापस भेज दिया. तत्पश्चात इस स्थान के सौंदर्य व पर्वतों की रमणीकता देखकर वे मंत्रमुग्ध हो तपस्या में लीन हो गए. तभी से यह स्थान पृथ्वी पर देवगुरु धाम के नाम से प्रसिद्व हुआ.

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अनंत रहस्यों को अपने में समेटे इस दरबार के प्रति अंग्रेजों की भी गहरी आस्था थी. वे भी देवगुरु के चमत्कार से वाकिफ थे. इस मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देवगुरु की इच्छा से यह मंदिर खुले आकाश के नीचे है. अनेक भक्तों ने यहां मंदिर निर्माण की बात सोची लेकिन सभी की इच्छाएं धरी की धरी रह गईं. क्योंकि देवगुरु की इच्छा खुले आकाश के नीचे विराजमान रहने की थी. बताते हैं कि कई लोगों ने पूर्व में यहां पर भव्य मंदिर निर्माण की बात सोची व प्रयास भी किये, परन्तु देवगुरु की इच्छा के आगे सभी के प्रयास विफल हो गए.

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स्थानीय श्रद्धालु बताते हैं कि एक बार मंदिर के पुजारी केशव दत्त जी ने इसे बड़ा बनाने के उद्वेश्य से कुछ दूरी पर पत्थर का खुदान करवाया. इस खुदाई में हर पत्थर के नीचे सांपों का झुण्ड निकला. पत्थर इतने वजनदार हो गये कि उन्हें कोई उठा तक नहीं पाया. देवगुरु के सभी भक्त प्रभु के संकेत को समझ गये कि उनका मंदिर खुला रहेगा. बताते हैं कि रात्रि में विधिपूर्वक यहां देवगुरु का ध्यान लगाने पर पहाड़ियों से कानों में संगीत के स्वर गूंजते हैं. आज भी यहां रात्रि पूजा होती है. नैनीताल के ओखलकांडा विकास खण्ड की ऊंची चोटी पर स्थित देवगुरु के इस दरबार की ऊंचाई लगभग आठ हजार फीट है. आसपास के गांव कोटली, करायल, देवली, पुटपुड़ी, तुषराड़ आदि हैं.

Last Updated : Jun 9, 2020, 10:33 AM IST
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