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उत्तराखंड की पारंपरिक ऐपण कला पर आधुनिकता हावी, घट रहा क्रेज - उत्तराखंड लोककला  विलुप्ति की कगार पर

दीपावली और शुभ कार्यों में घरों में बनाये जाने वाला ऐपण और रंगोली कला धीरे धीरे हो रही है विलुप्त. आर्टिफिशियल ऐपण और रंगोली ने बनाई जगह.

ऐपण
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Published : Oct 26, 2019, 11:10 AM IST

Updated : Oct 26, 2019, 3:13 PM IST

हल्द्वानीः उत्तराखंड की ऐपण और रंगोली कला की पूरे देश में अलग ही पहचान है. दीपावली का त्योहार हो या घर में कोई शुभ और मांगलिक कार्य हो ऐपण और रंगोली घर में जरूर बनाई जाती है, लेकिन उत्तराखंड की ऐपण और रंगोली कला अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है. इसकी जगह आर्टिफीशियल रंगोली और ऐपण ने बना ली है, लेकिन अभी ऐसे कई परिवार हैं जो आज भी पारंपरिक ऐपण और रंगोली से अपने घर को सजा रहे हैं और अपनी संस्कृति को संरक्षित करने का काम कर रहे हैं. देवभूमि उत्तराखंड अपनी संस्कृति विरासत अनमोल परंपराओं के कारण सदियों से देश दुनिया में अलग ही पहचान रखता है. ऐसी कई लोक कलाएं भी उत्तराखंड में मौजूद हैं जो यहां की पहचान बन चुकी हैं.

ऐपण और रंगोली कला विलुप्ति की कगार पर

उन्हीं लोक कलाओं में ऐपण और रंगोली कला भी मशहूर है. दीपावली हो या हवन यज्ञ मांगलिक कार्य हो या शादी विवाह हर मौके पर घरों की दीवारों, आंगन और मंदिरों को ऐपण और रंगोली से सजाने की परंपरा है और सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, लेकिन बदलते दौर में अब यह लोक कला धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है.परंपरागत ऐपण प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है. पहाड़ की लाल मिट्टी और चावल के आटे को मिलाकर पारंपरिक रंग तैयार कर रंगोली तैयार की जाती है जिससे महिलाएं अपने हाथों से सजाने का काम करती हैं.

ऐपण में लक्ष्मी गणेश, हाथी घोड़े, शुभ लाभ स्वास्तिक फूल पत्ती और अन्य खूबसूरत चित्र उकेर कर ऐपण और रंगोली तैयार करती हैं. दीपावली के मौके पर पारंपरिक रंगों से मंदिर में लक्ष्मी चौकी, लक्ष्मी जी के पैर बनाने की परंपरा है.

बदलते दौर में अब उत्तराखंड की लोक कला धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है. इस कला को विलुप्त होने का मुख्य कारण बाजारों में मिलने वाले आर्टिफीशियल ऐपण है. युवा पीढ़ी इस लोक कला को धीरे-धीरे भूल रहा है. यही नहीं पहाड़ों से लगातार हो रहे पलायन भी इस कला का विलुप्ति का कारण माना जा रहा है.

यह भी पढ़ेंः पिथौरागढ़ सीट पर 25 नवंबर को होगा उपचुनाव, 28 को आएगा रिजल्ट

दूसरी ओर इन सबके बीच अभी भी कई ऐसे परिवार हैं जो अपनी संस्कृति और कला को सजाने का काम कर रहे हैं. शादी विवाह हो या दीपावली पर पारंपरिक ऐपण से अपने घरों के दहलीज और मंदिरों को सजाने के काम कर रहे हैं.

ऐपण कला को बचाने के लिए कई सामाजिक संगठन भी काम कर रहे हैं और इसे सहेजने और संवारने के लिए प्रचार-प्रसार भी कर रहे हैं. उत्तराखंड की पारंपरिक ऐपण आज आर्टिफिशियल का रूप ले लिया है और इसका प्रचार-प्रसार अभी भी बड़े पैमाने पर हो रहा है, लेकिन पारंपरिक ऐपण को लोग धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है. ऐसे में सरकार को भी चाहिए कि उत्तराखंड की इस लोक कला को संरक्षित करने के लिए जागरूक करें.

हल्द्वानीः उत्तराखंड की ऐपण और रंगोली कला की पूरे देश में अलग ही पहचान है. दीपावली का त्योहार हो या घर में कोई शुभ और मांगलिक कार्य हो ऐपण और रंगोली घर में जरूर बनाई जाती है, लेकिन उत्तराखंड की ऐपण और रंगोली कला अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है. इसकी जगह आर्टिफीशियल रंगोली और ऐपण ने बना ली है, लेकिन अभी ऐसे कई परिवार हैं जो आज भी पारंपरिक ऐपण और रंगोली से अपने घर को सजा रहे हैं और अपनी संस्कृति को संरक्षित करने का काम कर रहे हैं. देवभूमि उत्तराखंड अपनी संस्कृति विरासत अनमोल परंपराओं के कारण सदियों से देश दुनिया में अलग ही पहचान रखता है. ऐसी कई लोक कलाएं भी उत्तराखंड में मौजूद हैं जो यहां की पहचान बन चुकी हैं.

ऐपण और रंगोली कला विलुप्ति की कगार पर

उन्हीं लोक कलाओं में ऐपण और रंगोली कला भी मशहूर है. दीपावली हो या हवन यज्ञ मांगलिक कार्य हो या शादी विवाह हर मौके पर घरों की दीवारों, आंगन और मंदिरों को ऐपण और रंगोली से सजाने की परंपरा है और सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, लेकिन बदलते दौर में अब यह लोक कला धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है.परंपरागत ऐपण प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है. पहाड़ की लाल मिट्टी और चावल के आटे को मिलाकर पारंपरिक रंग तैयार कर रंगोली तैयार की जाती है जिससे महिलाएं अपने हाथों से सजाने का काम करती हैं.

ऐपण में लक्ष्मी गणेश, हाथी घोड़े, शुभ लाभ स्वास्तिक फूल पत्ती और अन्य खूबसूरत चित्र उकेर कर ऐपण और रंगोली तैयार करती हैं. दीपावली के मौके पर पारंपरिक रंगों से मंदिर में लक्ष्मी चौकी, लक्ष्मी जी के पैर बनाने की परंपरा है.

बदलते दौर में अब उत्तराखंड की लोक कला धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है. इस कला को विलुप्त होने का मुख्य कारण बाजारों में मिलने वाले आर्टिफीशियल ऐपण है. युवा पीढ़ी इस लोक कला को धीरे-धीरे भूल रहा है. यही नहीं पहाड़ों से लगातार हो रहे पलायन भी इस कला का विलुप्ति का कारण माना जा रहा है.

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दूसरी ओर इन सबके बीच अभी भी कई ऐसे परिवार हैं जो अपनी संस्कृति और कला को सजाने का काम कर रहे हैं. शादी विवाह हो या दीपावली पर पारंपरिक ऐपण से अपने घरों के दहलीज और मंदिरों को सजाने के काम कर रहे हैं.

ऐपण कला को बचाने के लिए कई सामाजिक संगठन भी काम कर रहे हैं और इसे सहेजने और संवारने के लिए प्रचार-प्रसार भी कर रहे हैं. उत्तराखंड की पारंपरिक ऐपण आज आर्टिफिशियल का रूप ले लिया है और इसका प्रचार-प्रसार अभी भी बड़े पैमाने पर हो रहा है, लेकिन पारंपरिक ऐपण को लोग धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है. ऐसे में सरकार को भी चाहिए कि उत्तराखंड की इस लोक कला को संरक्षित करने के लिए जागरूक करें.

Intro:sammry- दीपावली और शुभ कार्यों में घरों में बनाये जाने वाला ऐपण और रंगोली कला धीरे धीरे हो रही है विलुप्त। आर्टिफिशियल ऐपण और रंगोली ने बनाई जगह। (दीपावाली स्पेशल खबर)


एंकर- उत्तराखंड की ऐपण और रंगोली कला का पूरे देश में अलग ही पहचान है। दीपावली का त्यौहार हो घर में कोई शुभ और मांगलिक कार्य हो ऐपण और रंगोली घर में जरूर बनाई जाती है लेकिन उत्तराखंड की ऐपण और रंगोली कला अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है और इसकी जगह आर्टिफिशियल रंगोली और ऐपण ने बना ली है। लेकिन अभी ऐसे कई परिवार हैं जो आज भी अपने परंपरिक ऐपण और रंगोली से अपने घर को सजा रहे हैं। और अपनी संस्कृति को संरक्षित करने का काम कर रहे हैं।




Body:देवभूमि उत्तराखंड अपनी संस्कृति विरासत अनमोल परंपराओं के कारण सदियों से देश दुनिया में अलग ही पहचान रखता है साथी ऐसी कई लोक कलाएं भी उत्तराखंड में मौजूद है जो यहां की पहचान बन चुकी है उन्हें लोक कलाओं में ऐपण और रंगोली कला भी मशहूर है । दीपावली हो या हवन यज्ञ मांगलिक कार्य हो या शादी विवाह हर मौके पर घरों की दीवारों, आंगन और मंदिरों को ऐपण और रंगोली से सजाने की परंपरा है और सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है लेकिन बदलते दौर में अब यह लोक कला धीरे-धीरे विलुप्ति के कगार पर है।
परंपरागत ऐपण प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है पहाड़ की लाल मिट्टी और चावल के आटे को मिलाकर पारंपरिक रंग तैयार कर रंगोली तैयार की जाती है जिससे महिलाएं अपने हाथों से सजाने का काम करती हैं ।ऐपण में लक्ष्मी गणेश, हाथी घोड़े, शुभ लाभ स्वास्तिक फूल पत्ती और अन्य खूबसूरत चित्र उकेर कर ऐपण और रंगोली तैयार करती हैं।
दीपावली के मौके पर पारंपरिक रंगों से मंदिर में लक्ष्मी चौकी, लक्ष्मी जी का पैर बनाने की परंपरा है।
लेकिन बदलते दौर में अब उत्तराखंड की लोक कला धीरे-धीरे विलुप्ती के कगार पर हैं। इस कला को विलुप्त होने का मुख्य कारण बाजारों में मिलने वाले आर्टिफिशियल ऐपण है। युवा पीढ़ी इस लोक कला को धीरे-धीरे भूल रहा है। यही नहीं पहाड़ों से लगातार हो रहे पलायन भी इस कला का विलुप्त का कारण माना जा रहा है।
लेकिन इन सबके बीच अभी भी कई ऐसे परिवार हैं जो अपने संस्कृति और कला को सजाने का काम कर रहे हैं। शादी विवाह हो या दीपावली का मौका पारंपरिक ऐपण से अपने घरों के दहलीज और मंदिरों को सजाने के काम कर रहे हैं।

बाइट- परंपरिक ऐपण बनाने वाली महिला
बाइट- ऐपण रंगोली बनाने वाली युवती



Conclusion:ऐपण कला को बचाने के लिए कई सामाजिक संगठन भी काम कर रहा है और इसे सहेजने और संवारने के लिए प्रचार-प्रसार भी कर रहा है। उत्तराखंड की परंपरिक ऐपण आज आर्टिफिशियल का रूप ले लिया है और इसका प्रचार-प्रसार अभी भी बड़े पैमाने पर हो रहा है ।लेकिन पारंपरिक ऐपण को लोग धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं जो चिंता का विषय है ।ऐसे में सरकार को भी चाहिए कि उत्तराखंड की इस लोक कला को संरक्षित करने के लिए लोगों को जागरूक करें।
Last Updated : Oct 26, 2019, 3:13 PM IST
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