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विलुप्त के कगार पर उत्तराखंड का वाद्य यंत्र 'हुड़का', लोक कला को ऐसे बचा रहा एक छात्र

उत्तराखंड में परंपरागत वाद्य यंत्र की धुनें लगातार कम हो रही हैं. बदलते दौर में पारंपरिक वाद्ययंत्र हुड़का भी विलुप्त की कगार पर है. ऐसे में लोक कलाओं को बचाने का संकल्प एक छात्र ने लिया है.

हुड़का
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Published : Nov 18, 2019, 12:37 PM IST

हल्द्वानीः एक समय था जब उत्तराखंड में परंपरागत वाद्य यंत्रों की खूब मांग हुआ करती थी. पर्वतीय अंचलों की लोक संस्कृति के प्रतीक ढोल दमाऊ, हुड़के अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं. ऐसे में परंपरागत वाद्य यंत्र की धुनें अब पहाड़ों में कभी-कभी ही सुनाई देती हैं. ऐसे में कुमाऊं के लोक वाद्य यंत्र हुड़का को संरक्षित और संजोने का काम कर रहे हैं मनीष बिष्ट.

लोक वाद्य यंत्र हुड़का विलुप्त के कगार पर.

पहाड़ के विभिन्न उत्सव हों या लोक संगीत या देवी देवताओं के जागर हर जगह पर हुड़के की धुन सुनाई देती थी और हुड़के की धुन पर लोग अपने लोक नृत्य को भी किया करते थे, लेकिन बदलते दौर में पारंपरिक वाद्य यंत्र हुड़का विलुप्त होता जा रहा है. नैनीताल जिले के नथुआ खान के रहने वाले 18 वर्षीय मनीष बिष्ट एक छात्र हैं, लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ अपनी लोक कला हुड़का बजाने में महारत हासिल है. उनके हुड़के की थाप पर लोग झूमने को मजबूर हो जाते हैं.

यह भी पढ़ेंः मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह पहुंचे केदारनाथ, पुनर्निर्माण कार्यों का जायजा लिया

मनीष बिष्ट हाल ही में प्रदेशस्तरीय देहरादून में आयोजित लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपने हुड़के की थाप का लोहा मनवा है. बिष्ट का कहना है कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति ,लोक कला पूरे देश में जानी जाती है, ऐसे में युवाओं को अपनी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना पड़ेगा, तभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उत्तराखंड की पहचान हो सकेगी.

संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के कोऑर्डिनेटर गौरीशंकर कांडपाल का कहना है कि उत्तराखंड में बहुत से गुमनाम कलाकार हैं, जिनमें काफी प्रतिभाएं छुपी हुई हैं. इन प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने और संजोने का काम सांस्कृतिक विभाग द्वारा किया जाता है. मनीष बिष्ट परंपरिक वाद्य यंत्र हुड़का का उभरता हुआ कलाकार है. ऐसे उभरते कलाकार को सरकार को भी प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और लोक कला को बचा सके.

हल्द्वानीः एक समय था जब उत्तराखंड में परंपरागत वाद्य यंत्रों की खूब मांग हुआ करती थी. पर्वतीय अंचलों की लोक संस्कृति के प्रतीक ढोल दमाऊ, हुड़के अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं. ऐसे में परंपरागत वाद्य यंत्र की धुनें अब पहाड़ों में कभी-कभी ही सुनाई देती हैं. ऐसे में कुमाऊं के लोक वाद्य यंत्र हुड़का को संरक्षित और संजोने का काम कर रहे हैं मनीष बिष्ट.

लोक वाद्य यंत्र हुड़का विलुप्त के कगार पर.

पहाड़ के विभिन्न उत्सव हों या लोक संगीत या देवी देवताओं के जागर हर जगह पर हुड़के की धुन सुनाई देती थी और हुड़के की धुन पर लोग अपने लोक नृत्य को भी किया करते थे, लेकिन बदलते दौर में पारंपरिक वाद्य यंत्र हुड़का विलुप्त होता जा रहा है. नैनीताल जिले के नथुआ खान के रहने वाले 18 वर्षीय मनीष बिष्ट एक छात्र हैं, लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ अपनी लोक कला हुड़का बजाने में महारत हासिल है. उनके हुड़के की थाप पर लोग झूमने को मजबूर हो जाते हैं.

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मनीष बिष्ट हाल ही में प्रदेशस्तरीय देहरादून में आयोजित लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपने हुड़के की थाप का लोहा मनवा है. बिष्ट का कहना है कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति ,लोक कला पूरे देश में जानी जाती है, ऐसे में युवाओं को अपनी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना पड़ेगा, तभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उत्तराखंड की पहचान हो सकेगी.

संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के कोऑर्डिनेटर गौरीशंकर कांडपाल का कहना है कि उत्तराखंड में बहुत से गुमनाम कलाकार हैं, जिनमें काफी प्रतिभाएं छुपी हुई हैं. इन प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने और संजोने का काम सांस्कृतिक विभाग द्वारा किया जाता है. मनीष बिष्ट परंपरिक वाद्य यंत्र हुड़का का उभरता हुआ कलाकार है. ऐसे उभरते कलाकार को सरकार को भी प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और लोक कला को बचा सके.

Intro:sammry- विलुप्त के कगार पर उत्तराखंड के वाद्य यंत्र हुड़का। हुड़के की धुन को सजोने का काम कर रहा है मनीष बिष्ट ।

(स्पेशल खबर)

एंकर- एक समय था जब उत्तराखंड में परंपरागत वाद्य यंत्रों का खूब मांग हुआ करता था। पर्वतीय अंचलों की लोक संस्कृति के प्रतीक ढोल दमाऊ ,हुड़के अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं। ऐसे में परंपरागत वाद्य यंत्र की धुनें अब पहाड़ों में कभी-कभी ही सुनाई देती है। ऐसे में कुमाऊ के लोक वाद्य यंत्र हुड़का को संरक्षित और सजोने का काम कर रहे हैं मनीष बिष्ट।


Body:पहाड़ की विभिन्न उत्सव हो या लोक संगीत या देवी देवताओं के जागर हर जगह पर हुड़के की धुन सुनाई देती थी और हुड़के कि धुन पर लोग अपने लोक नृत्य को भी किया करते थे। लेकिन बदलते दौर में परंपरिक वाद्ययंत्र हुड़का विलुप्ती के कगार पर है। । नैनीताल जिले के नथुआ खान के रहने वाला 18 वर्षीय मनीष बिष्ट ऐसे तो छात्र है लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ अपनी लोक कला हुड़का बजाने में महारत हासिल है और इसके हुड़के की थाप पर लोग झूमने को मजबूर हो जाते हैं। मनीष बिष्ट हाल ही में प्रदेश स्तरीय देहरादून में आयोजित लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपने हुड़का की थाप को लोहा मनवा चुका है। मनीष बिष्ट का कहना है कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति ,लोक कला पूरे देश में जानी जाती है ऐसे में युवाओं को अपनी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना पड़ेगा तभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उत्तराखंड की पहचान हो सकेगी।

बाइट- मनीष बिष्ट हुडका वादक


Conclusion:संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के कोऑर्डिनेटर गौरीशंकर कांडपाल का कहना है कि उत्तराखंड में बहुत से गुमनाम कलाकार हैं जिनमें काफी प्रतिभाएं छुपी हुई है। इन प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने और सजोने का काम सांस्कृतिक विभाग द्वारा किया जाता है। मनीष बिष्ट परंपरिक वाद्य यंत्रों हुड़का का उभरता हुआ कलाकार है । ऐसे उभरते कलाकार को सरकार को भी प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और लोक कला को बचा सके।

बाइट- गौरी शंकर कांडपाल कोऑर्डिनेटर सांस्कृतिक मंत्रालय भारत सरकार
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