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गंगा में अवैध खनन का मामला, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने NMCG से मांगा जवाब

हरिद्वार में गंगा में हो रहे अवैध खनन (illegal mining in Ganga) के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) में सुनवाई हुई. कोर्ट ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन से 5 जनवरी तक जवाब मांगा है. साथ ही अवैध खनन की शिकायतों के निस्तारण के लिए सरकार को आदेश दिए हैं.

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Published : Dec 15, 2022, 4:03 PM IST

हरिद्वार: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने हरिद्वार में रायवाला से भोगपुर के बीच गंगा नदी में खनन (illegal mining in Ganga) के खिलाफ मातृ सदन की जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि खनन की शिकायतों का निस्तारण के लिए सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी या सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी को नियुक्त करें.

जिससे कि खनन की शिकायतों का निस्तारण हो सके. खंडपीठ ने NMCG (राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन) से 5 जनवरी तक यह बताने को कहा है कि आपने केवल अवैध खनन पर रोक लगाई है या सम्पूर्ण खनन पर इस पर स्पष्टीकरण पेश करें. मामले की अगली सुनवाई 5 जनवरी को होगी.
पढ़ें- AIIMS ऋषिकेश में विभिन्न पदों की भर्ती मामले में HC में सुनवाई, विपक्षियों से 6 सप्ताह में मांगा जवाब

आज सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि एनएमसीजी ने 2018 के आदेश को संशोधित कर दिया है. इसलिए सरकार ने खनन के आदेश दिए, जबकि याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि एनएमसीजी ने खनन पर रोक के आदेश को समाप्त नहीं किया है, बल्कि उसमें तीन अन्य शर्तें जोड़ दी है. जिसमे पहला रायवाला से भोगपुर गंगा में किसी भी तरह का खनन कार्य नहीं होगा.

दूसरी शर्त अवैध खनन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एक सिस्टम बनाया जाए, जिसकी जिम्मेदारी जिला अधिकारी या एसएसपी की होगी. तीसरी शर्त राययवाला से भोगपुर गंगा नदी के तट से 3 से 5 किलोमीटर के भीतर स्टोन क्रेशरों के लिए बफर जोन बनाया जाय, जिसका अनुपालन अभी तक नहीं किया गया. इसके विपरीत सचिव खनन ने इन आदेशों का गलत अर्थ निकालकर वहां 2019 में खनन की अनुमति दे दी गयी. इस आदेश के स्पष्टीकरण हेतु 2019 में मातृ सदन ने एनएमसीजी को एक और प्रत्यावेदन दिया, जिस पर एनएमसीजी ने स्पष्ट करते हुए कहा कि 2018 के नियम यथावत रहेंगे.
पढ़ें- HC ने UKPCB के आदेश पर लगाई रोक, बोर्ड ने उद्योगों के संचालन की NOC की थी रद्द

मामले के अनुसार हरिद्वार मातृसदन ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि हरिद्वार में रायवाला से भोगपुर के बीच गंगा नदी में नियमों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से खनन किया जा रहा है, ससे गंगा नदी के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है. गंगा नदी में खनन करने वाले नेशनल मिशन क्लीन गंगा को पलीता लगा रहे हैं.

जनहित याचिका में कोर्ट से प्रार्थन की गई है कि गंगा नदी में हो रहे अवैध खनन पर रोक लगाई जाए, ताकि गंगा नदी के अस्तित्व को बचाया जा सके. अब खनन कुंभ क्षेत्र में भी किया जा रहा है. याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार ने गंगा नदी को बचाने के लिए एनएमसीजी बोर्ड गठित किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य गंगा को साफ करना और उसके अस्तित्व को बचाए रखना है.

एनएमसीजी द्वारा राज्य सरकार को बार-बार आदेश दिए गए कि यहां खनन कार्य नहीं किया जाए. उसके बाद में सरकार ने यहां खनन कार्य करवाया जा रहा है. यूएन ने भी भारत सरकार को निर्देश दिए थे कि गंगा को बचाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा रहे. उसके बाद भी सरकार द्वारा गंगा के अस्तित्व को समाप्त किया जा रहा है.

हरिद्वार: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने हरिद्वार में रायवाला से भोगपुर के बीच गंगा नदी में खनन (illegal mining in Ganga) के खिलाफ मातृ सदन की जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि खनन की शिकायतों का निस्तारण के लिए सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी या सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी को नियुक्त करें.

जिससे कि खनन की शिकायतों का निस्तारण हो सके. खंडपीठ ने NMCG (राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन) से 5 जनवरी तक यह बताने को कहा है कि आपने केवल अवैध खनन पर रोक लगाई है या सम्पूर्ण खनन पर इस पर स्पष्टीकरण पेश करें. मामले की अगली सुनवाई 5 जनवरी को होगी.
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आज सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि एनएमसीजी ने 2018 के आदेश को संशोधित कर दिया है. इसलिए सरकार ने खनन के आदेश दिए, जबकि याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि एनएमसीजी ने खनन पर रोक के आदेश को समाप्त नहीं किया है, बल्कि उसमें तीन अन्य शर्तें जोड़ दी है. जिसमे पहला रायवाला से भोगपुर गंगा में किसी भी तरह का खनन कार्य नहीं होगा.

दूसरी शर्त अवैध खनन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एक सिस्टम बनाया जाए, जिसकी जिम्मेदारी जिला अधिकारी या एसएसपी की होगी. तीसरी शर्त राययवाला से भोगपुर गंगा नदी के तट से 3 से 5 किलोमीटर के भीतर स्टोन क्रेशरों के लिए बफर जोन बनाया जाय, जिसका अनुपालन अभी तक नहीं किया गया. इसके विपरीत सचिव खनन ने इन आदेशों का गलत अर्थ निकालकर वहां 2019 में खनन की अनुमति दे दी गयी. इस आदेश के स्पष्टीकरण हेतु 2019 में मातृ सदन ने एनएमसीजी को एक और प्रत्यावेदन दिया, जिस पर एनएमसीजी ने स्पष्ट करते हुए कहा कि 2018 के नियम यथावत रहेंगे.
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मामले के अनुसार हरिद्वार मातृसदन ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि हरिद्वार में रायवाला से भोगपुर के बीच गंगा नदी में नियमों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से खनन किया जा रहा है, ससे गंगा नदी के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है. गंगा नदी में खनन करने वाले नेशनल मिशन क्लीन गंगा को पलीता लगा रहे हैं.

जनहित याचिका में कोर्ट से प्रार्थन की गई है कि गंगा नदी में हो रहे अवैध खनन पर रोक लगाई जाए, ताकि गंगा नदी के अस्तित्व को बचाया जा सके. अब खनन कुंभ क्षेत्र में भी किया जा रहा है. याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार ने गंगा नदी को बचाने के लिए एनएमसीजी बोर्ड गठित किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य गंगा को साफ करना और उसके अस्तित्व को बचाए रखना है.

एनएमसीजी द्वारा राज्य सरकार को बार-बार आदेश दिए गए कि यहां खनन कार्य नहीं किया जाए. उसके बाद में सरकार ने यहां खनन कार्य करवाया जा रहा है. यूएन ने भी भारत सरकार को निर्देश दिए थे कि गंगा को बचाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा रहे. उसके बाद भी सरकार द्वारा गंगा के अस्तित्व को समाप्त किया जा रहा है.

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