नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गढ़वाल श्रीनगर के कांडा रामपुर में लगाये जा रहे अलकनंदा स्टोन क्रशर के मामले में अपने पुराने आदेश में संशोधन करते हुए स्टोन क्रशर के संचालन पर रोक लगा दी है. श्रीनगर के फरासू निवासी नरेंद्र सिंह सेंधवाल की ओर से दायर जनहित याचिका पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने ये निर्देश जारी किये हैं.
पीसीबी की ओर से अदालत को बताया गया कि 23 अप्रैल को स्टोन क्रेशर के निर्माण के लिये सहमति दी है, जबकि संचालन के लिये की कोई सहमति नहीं दी गयी है. स्टोन क्रशर के निर्माण के लिये दी सहमति भी याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेगी.
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सुनवाई कब बाद खंडपीठ ने अपने पुराने आदेश में संशोधन करते हुए स्टोन क्रशर के संचालन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है. साथ ही अदालत ने सरकार को इस मामले में प्रतिशपथ पेश करने के निर्देश दिये हैं. इस मामले में अगली सुनवाई 29 जून को होगी.
याचिकाकर्ता की ओर से एक जनहित याचिका दायर कर कहा गया था कि ग्रामीणों के विरोध के बावजूद प्रदेश सरकार की ओर से स्टोन क्रशर के निर्माण की अनुमति दे दी गयी है. इससे आसपास के पर्यावरण व परंपरागत पेयजल स्रोतों को भी नुकसान हो रहा है. गौरा देवी एवं राज राजेश्वरी मंदिरों के अस्तित्व को भी खतरा उत्पन्न हो गया है.
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न्यायालयों में ड्रेस कोड में पहाड़ी टोपी: उत्तराखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं ने न्यायालयों के ड्रेस कोड में पहाड़ी टोपी को शामिल किए जाने को लेकर अभियान चलाया है. अधिवक्ता इस सम्बंध में जल्द ही हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश व बार काउंसिल के सामने प्रत्यावेदन देंगे.
इस अभियान के संयोजक हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एमसी पन्त ने बताया कि इस जनजागरण अभियान में अधिवक्ताओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है. यह टोपी स्वतंत्रता आंदोलन के समय पंडित बद्रीदत्त पांडे के नेतृत्व में हुए कूली बेगार आंदोलन की शान रहा. यह उत्तराखंड की पहचान भी है. इसलिये टोपी को व्यापक मान्यता दिए जाने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि हिमांचल और पंजाब हाईकोर्ट के अलावा दक्षिण भारत के कई राज्यों में उच्च न्यायालयों में वहां के परंपरागत परिधान पहनने की अनुमति है. इसलिये उत्तराखंड हाईकोर्ट में भी पहाड़ी टोपी पहनने की अनुमति मिलनी चाहिये.