नैनीतालः देहरादून की रिस्पना और बिंदाल नदी समेत अन्य नालों में हुए अतिक्रमण पर राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में अपना जवाब पेश किया. जिस पर याचिकाकर्ता ने आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि सरकार ने केवल गरीब स्तर के लोगों पर कार्रवाई कर उन्हें अतिक्रमण के नाम पर हटाया है. जबकि, किसी बड़े और प्रभावशाली अतिक्रमणकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है. वहीं, एकतरफा कार्रवाई पर कोर्ट ने याचिकाकर्ता को शपथ-पत्र पेश करने को कहा है.
बता दें कि देहरादून निवासी पार्षद उर्मिला थापा ने नैनीताल हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि लोगों ने रिस्पना और बिंदाल नदी के किनारे अतिक्रमण कर लिया है. साथ ही नदी में बने चाल-खाल पर भी अतिक्रमण किया है. जिससे आने वाले समय में बाढ़ जैसी स्थिति का खतरा बढ़ गया है.
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याचिकाकर्ता का कहना है कि लोगों ने नदी के आसपास से हजारों की संख्या में हरे पेड़ों को काट दिया है. जिससे भी आने वाले समय में केदारनाथ जैसी स्थिति उत्पन्न होगी. लिहाजा, इन अतिक्रमणकारियों को हटाया जाए और बेतहाशा हो रहे पेड़ों के कटान पर रोक लगाई जाए.
पिछली सुनवाई के दौरान देहरादून के डीएम ने अपना शपथ-पत्र के साथ रिपोर्ट कोर्ट में पेश की. जिसमें उन्होंने माना कि दून घाटी में करीब 270 एकड़ भूमि पर नदी के किनारे अतिक्रमण हुआ है और केवल देहरादून में 100 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण हुआ है.
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अतिक्रमण मामले में मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए राज्य सरकार और डीएम देहरादून को आदेश दिए हैं कि राजपुर क्षेत्र में तत्काल अतिक्रमण पर रोक लगाएं. साथ ही 2 महीने के भीतर घाटी में हुए अतिक्रमण को चिह्नित कर उसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें.
वहीं, मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को 2 हफ्ते के भीतर प्रति शपथ पत्र पेश करने को कहा है. साथ ही याचिकाकर्ता से कहा है कि वह कोर्ट को बताएं कि किन-किन स्थानों पर अतिक्रमण के नाम पर कार्रवाई की गई है और किन जगह पर नहीं की गई है? ऐसे में अब इस मामले की अगली सुनवाई 2 दिसंबर को होगी.