हल्द्वानीः कहावत है कि 'बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद' भले बंदर को अदरक के स्वाद का पता न हो लेकिन, पहाड़ के काश्तकारों को अदरक का स्वाद खूब भा रहा है. जिन्होंने अब पारंपरिक खेती छोड़ अदरक की खेती शुरू कर दी है. वहीं, जंगली जानवर भी अदरक की खेती को नुकसान नहीं पहुंचाते, लिहाजा पहाड़ के काश्तकारों ने अदरक की खेती वरदान साबित हो रही है. पहाड़ के काश्तकार अदरक की खेती करके खूब मुनाफा कमा रहे हैं. देखिए एक रिपोर्ट...
पहाड़ के काश्तकार बंदर और जंगली जानवर के आतंक से परेशान हैं और खेती से मुंह मोड़ रहे हैं. ऐसे में पहाड़ के काश्तकारों के आगे रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो रहा है. तो पलायन भी मुख्य वजहों में से एक है.
वहीं,अब पहाड़ के किसानों ने अपनी आजीविका चलाने के लिए पारंपरिक खेती छोड़कर अदरक की खेती को अपनाया है. काश्तकारों की मानें तो जंगली जानवर उनकी पारंपरिक खेती को काफी नुकसान किया करते थे. ऐसे में उन्होंने खेती करना छोड़ दिया था, लेकिन अब उन्होंने अदरक की खेती को अपनाया है, जिसे जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं. साथ ही अदरक की खेती से उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है.
किसानों का कहना है कि हल्द्वानी के गौलापार क्षेत्र में जंगली जानवरों का ज्यादा आतंक है. ऐसे में उनकी धान, गेहूं और मक्के जैसी पारंपरिक फसलों को जंगली जानवर लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं. ऐसे में उन्होंने अब पारंपरिक खेती छोड़ अदरक की खेती को अपनाया है, जो मुनाफे की खेती साबित हो रही है.
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यही नहीं यहां के हल्द्वानी सहित अन्य मंडियों में अदरक की भारी मांग है. किसानों का कहना है कि यहां के अदरक की गुणवत्ता भी काफी अच्छी है. सरकार को चाहिए कि उत्तराखंड में पैदा होने वाले अदरक को लेकर कोई ठोस नीति बनाए, जिससे यहां के किसानों की आय में वृद्धि हो और यहां उत्पादित अदरक को नई पहचान मिल सके.