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UKD ने किया पंतनगर कृषि विवि को केंद्रीय दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध

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Published : Sep 7, 2021, 11:56 AM IST

उत्तराखंड क्रांति दल ने पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय को केंद्रीय दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध शुरू कर दिया है. यूकेडी के पूर्व विधायक नारायण सिंह जंतवाल ने कहा कि पंतनगर विश्वविद्यालय को लेकर अगर सरकार ने यह निर्णय वापस नहीं लिया तो उनकी पार्टी उग्र आंदोलन करेगी.

former MLA Narayan Singh Jantwal
former MLA Narayan Singh Jantwal

नैनीताल: देश के पहले कृषि विश्वविद्यालय के रूप में पहचान रखने वाले पंतनगर विश्वविद्यालय को सरकार द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाए जाने का प्रस्ताव पास किए जाने का यूकेडी (उत्तराखंड क्रांति दल) ने विरोध शुरू कर दिया है. पार्टी का कहना है पंतनगर को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाया जाना ना तो प्रदेश की जनता के हित में है, और ना ही किसानों के लिए. यूकेडी ने चेताया कि अगर सरकार ने यह निर्णय वापस नहीं लिया तो उनकी पार्टी किसानों और युवाओं को लेकर सड़कों पर उतर कर उग्र आंदोलन करेगी.

यूकेडी के पूर्व विधायक नारायण सिंह जंतवाल ने कहा कि पंतनगर विश्वविद्यालय प्रदेश का ही नहीं बल्कि देश का भी गौरव रहा है. राधाकृष्णन शिक्षा मंत्री थे तो उन्होंने देश में कृषि विश्वविद्यालय बनाए जाने की संकल्पना की थी, जिस पर इंडो अमेरिकन टीम ने सर्वे कर पंतनगर क्षेत्र की भूमि का चयन किया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के प्रयासों से 1960 में पंतनगर में भूमि अनुदान विश्वविद्यालय की नींव रखी गई.

पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय को केंद्रीय दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध.

शुरुआती दौर में विश्वविद्यालय के पास करीब 16,000 एकड़ भूमि थी, जिसमें से भारी मात्रा में भूमि का आवंटन सिडकुल को कर दिया गया. अब विश्वविद्यालय के पास महज 12,500 एकड़ भूमि ही बची है. देश ही नहीं, बल्कि एशिया में शुमार पंतनगर विश्वविद्यालय होने से आज पहाड़ों के साथ ही मैदानी क्षेत्रों के कृषकों को इसका सीधा लाभ मिल रहा है.

विश्वविद्यालय में प्रदेश के गरीब और मेधावी बच्चे यहां अध्ययनरत हैं. विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए 75 फीसदी सीटें प्रदेश के बच्चों के लिए आरक्षित हैं. साथ ही यहां शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति में भी प्रदेशवासियों को वरीयता दी जाती है. ऐसे में यदि विश्वविद्यालय को केंद्रीय हाथों में सौंप दिया गया तो प्रदेश की जनता को यह लाभ नहीं मिल पाएगा.

पढ़ें- AAP ने चारधाम यात्रा को लेकर भाजपा पर साधा निशान, बताया जनविरोधी सरकार

केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से प्रदेश में होने वाले अनुसंधान का दायरा भी बढ़ जाएगा. 60 वर्षों में सरकार ने कभी विश्वविद्यालय के संसाधनों से आय बढ़ाने की कोशिश नहीं की. अब बजट के कारणों को केंद्र बनाकर केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिए जाने की साजिश रची जा रही है, जो कि प्रदेश की जनता के साथ कृषकों के लिए भी बेहद हानिकारक साबित होगी. जल्द सरकार से निर्णय वापस लेने की मांग की जाएगी. यदि निर्णय वापस नहीं लिया गया तो पार्टी कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे.

नैनीताल: देश के पहले कृषि विश्वविद्यालय के रूप में पहचान रखने वाले पंतनगर विश्वविद्यालय को सरकार द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाए जाने का प्रस्ताव पास किए जाने का यूकेडी (उत्तराखंड क्रांति दल) ने विरोध शुरू कर दिया है. पार्टी का कहना है पंतनगर को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाया जाना ना तो प्रदेश की जनता के हित में है, और ना ही किसानों के लिए. यूकेडी ने चेताया कि अगर सरकार ने यह निर्णय वापस नहीं लिया तो उनकी पार्टी किसानों और युवाओं को लेकर सड़कों पर उतर कर उग्र आंदोलन करेगी.

यूकेडी के पूर्व विधायक नारायण सिंह जंतवाल ने कहा कि पंतनगर विश्वविद्यालय प्रदेश का ही नहीं बल्कि देश का भी गौरव रहा है. राधाकृष्णन शिक्षा मंत्री थे तो उन्होंने देश में कृषि विश्वविद्यालय बनाए जाने की संकल्पना की थी, जिस पर इंडो अमेरिकन टीम ने सर्वे कर पंतनगर क्षेत्र की भूमि का चयन किया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के प्रयासों से 1960 में पंतनगर में भूमि अनुदान विश्वविद्यालय की नींव रखी गई.

पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय को केंद्रीय दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध.

शुरुआती दौर में विश्वविद्यालय के पास करीब 16,000 एकड़ भूमि थी, जिसमें से भारी मात्रा में भूमि का आवंटन सिडकुल को कर दिया गया. अब विश्वविद्यालय के पास महज 12,500 एकड़ भूमि ही बची है. देश ही नहीं, बल्कि एशिया में शुमार पंतनगर विश्वविद्यालय होने से आज पहाड़ों के साथ ही मैदानी क्षेत्रों के कृषकों को इसका सीधा लाभ मिल रहा है.

विश्वविद्यालय में प्रदेश के गरीब और मेधावी बच्चे यहां अध्ययनरत हैं. विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए 75 फीसदी सीटें प्रदेश के बच्चों के लिए आरक्षित हैं. साथ ही यहां शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति में भी प्रदेशवासियों को वरीयता दी जाती है. ऐसे में यदि विश्वविद्यालय को केंद्रीय हाथों में सौंप दिया गया तो प्रदेश की जनता को यह लाभ नहीं मिल पाएगा.

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केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से प्रदेश में होने वाले अनुसंधान का दायरा भी बढ़ जाएगा. 60 वर्षों में सरकार ने कभी विश्वविद्यालय के संसाधनों से आय बढ़ाने की कोशिश नहीं की. अब बजट के कारणों को केंद्र बनाकर केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिए जाने की साजिश रची जा रही है, जो कि प्रदेश की जनता के साथ कृषकों के लिए भी बेहद हानिकारक साबित होगी. जल्द सरकार से निर्णय वापस लेने की मांग की जाएगी. यदि निर्णय वापस नहीं लिया गया तो पार्टी कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे.

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