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तिब्बती समुदाय ने हर्षोल्लास से मनाया लोसर पर्व, आटे की होली की धूम, विश्व शांति की प्रार्थना

नैनीताल में तिब्बती समुदाय का नया साल लोसर हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया. लोसर की प्रार्थना के दौरान तिब्बती समुदाय के धर्मगुरु ने रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की शांति के लिए प्रार्थना की. उत्तरकाशी में भी लोसर पर्व का समापन भव्यता से हुआ. यहां तिब्बती समुदाय के लोगों ने आटे की होली खेली.

New Year of Tibetan Community
तिब्बती समुदाय का नया साल
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Published : Mar 5, 2022, 4:28 PM IST

Updated : Mar 5, 2022, 4:54 PM IST

नैनीताल: तिब्बती समुदाय विश्वभर में आज अपने नए साल यानी लोसर का जश्न मना रहा है. नैनीताल में भी तिब्बती समुदाय ने सुख निवास स्थित बौद्ध मठ में लोसर का जश्न मनाया. इस दौरान समुदाय के लोगों ने मठ में पूजा अर्चना की. तीन दिन तक चले लोसर के जश्न में लोगों ने एक दूसरे को नये वर्ष की शुभकामनाएं दी. तिब्बती समुदाय ने पूजा अर्चना कर विश्व शांति और दलाई लामा की दीर्घायु की कामना की. लोसर के मौके पर तिब्बती समुदाय की महिलाओं और पुरूषों ने पारंपरिक परिधानों में मंगल गीत गाये.

नैनीताल में लोसर का जश्न तीन दिनों तक चला और आज मठ में अंतिम दिन पूजा अर्चना की गई. आज ही के दिन तिब्बती समुदाय द्वारा रंग बिरंगे झंडे लगाए जाते हैं, जो 5 रंग के होते है. हरा झंडा हरियाली का प्रतीक माना जाता है, जबकि सफेद रंग शांति, नीला रंग जल का, पीला रंग जमीन का और लाल रंग आग का प्रतीक माना जाता है. इन झंडों में मंत्र लिखे होते हैं. माना जाता है की हवा के बहाव से जितनी बार लहराते हैं. उतनी ही ज्यादा विश्व में शांति आएगी.

तिब्बती समुदाय का नया साल लोसर.

लोसर शब्द का अर्थ तिब्बती भाषा में नया साल है. तिब्बती समुदाय के लोग लोसर को मुख्य रूप से भारत में 3 दिनों तक मनाते हैं. तिब्बती समुदाय के छिरिंग बताते हैं कि तिब्बत में लोसर को 15 दिनों तक आयोजित किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं. भारत में भी पहले 15 दिनों तक इस पर्व को आयोजित किया जाता था.
पढ़ें- बदरीनाथ हाईवे पर बन गया बर्फ का पहाड़ !, रोड साफ करने में BRO को छूट रहे पसीने

बदलते समय के साथ-साथ भारत में लोसर मनाने के तरीके में बदलाव आया और यहां अब 3 दिनों तक लोसर का पर्व आयोजित किया जाता है, जिसमें पहले दिन तिब्बती समुदाय के लोग मठों में जाकर पूजा अर्चना करते हैं. इस पर्व को लोग अपने परिवार के साथ घरों में मनाते हैं. दूसरे दिन रिश्तेदारों एवं पड़ोसियों के घर जाकर नए वर्ष की बधाई दी जाती है. तीसरे दिन (गोमफा) मठों में आकर सभी तिब्बती समुदाय के लोग सामूहिक रूप से पूजा अर्चना करते हैं और विश्व शांति की कामना करते है. इस दौरान आटे की होली खेली जाती है.

उत्तरकाशी में भी लोसर की धूम: उत्तरकाशी के डुंडा बीरपुर गांव में आटे की होली और घरों पर नए झंडे लगाने के साथ जाड़ भोटिया समुदाय का लोसर पर्व संपन्न हुआ. वहीं रिंगाली देवी मंदिर परिसर में पारंपरिक परिधानों में सजी जाड़ भोटिया समुदाय की महिलाओं की भजन संध्या और नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा. विश्वनाथ मंदिर के महंत अजय पुरी ने वीरपुर पहुंचकर समुदाय के लोगों को लोसर की शुभकामनाएं दी. बौद्ध पंचांग के अनुसार नए साल के स्वागत में जाड़ भोटिया समुदाय द्वारा लोसर पर्व मनाया जाता है.

आटे की अद्भुत होली: शनिवार सुबह से ही डुंडा बीरपुर गांव में हुल्यार सड़कों पर उतर आए. एक-दूसरे को आटा लगाकर उन्होंने अनूठी होली खेली. इस दौरान सिर्फ जाड़-भोटिया समुदाय के लोग होली के रंग में सराबोर नजर आए. इसी के साथ सुख समृद्धि की कामना के साथ घरों पर मंत्र लिखे नए झंडे चढ़ाए गए. लोसर पर्व के समापन पर घरों में मेहमानों की विशेष आवाभगत की गई.

रिंगाली देवी की पूजा: वहीं जाड़ समुदाय के लोग रिंगाली देवी के मंदिर में एकत्र हुए. यहां रिंगाली देवी की पूजा-अर्चना करने के साथ ही हरियाली और प्रसाद चढ़ाया गया. पारंपरिक परिधानों में सजी समुदाय की महिलाओं ने भजन संध्या की प्रस्तुति से भक्ति पूर्ण माहौल बना दिया. इसके बाद समुदाय के लोगों ने रिंगाली देवी की डोली के साथ रांसो एवं तांदी नृत्य कर अपनी समृद्ध संस्कृति की झलक प्रस्तुत की. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि विश्वनाथ मंदिर महंत अजय पुरी ने कहा कि पारंपरिक मेले एवं अनुष्ठान हमारी समृद्ध संस्कृति की पहचान हैं. इनका संरक्षण हम सभी की जिम्मेदारी है.

इस मौके पर सेवकराम भण्डारी, पूर्व प्रधान नारायण सिंह नेगी, जसपाल रावत, भवान सिंह राणा, रणजौर भण्डारी, एसडीएम बंसीलाल राणा, गोपाल नेगी व गोपाल भण्डारी, नकुल भोटिया, अशोक खांपा, मदन खांपा, कपूर खांपा व सुभाष खांपा आदि ने बताया कि हर वर्ष बौद्ध पंचांग के शुभारंभ पर लोसर पर्व आयोजन किया जाता है. चार दिनों तक चलने वाला यह त्योहार दीपावली, दशहरा एवं होली के रंगों को संजोए हुए हैं.

नैनीताल: तिब्बती समुदाय विश्वभर में आज अपने नए साल यानी लोसर का जश्न मना रहा है. नैनीताल में भी तिब्बती समुदाय ने सुख निवास स्थित बौद्ध मठ में लोसर का जश्न मनाया. इस दौरान समुदाय के लोगों ने मठ में पूजा अर्चना की. तीन दिन तक चले लोसर के जश्न में लोगों ने एक दूसरे को नये वर्ष की शुभकामनाएं दी. तिब्बती समुदाय ने पूजा अर्चना कर विश्व शांति और दलाई लामा की दीर्घायु की कामना की. लोसर के मौके पर तिब्बती समुदाय की महिलाओं और पुरूषों ने पारंपरिक परिधानों में मंगल गीत गाये.

नैनीताल में लोसर का जश्न तीन दिनों तक चला और आज मठ में अंतिम दिन पूजा अर्चना की गई. आज ही के दिन तिब्बती समुदाय द्वारा रंग बिरंगे झंडे लगाए जाते हैं, जो 5 रंग के होते है. हरा झंडा हरियाली का प्रतीक माना जाता है, जबकि सफेद रंग शांति, नीला रंग जल का, पीला रंग जमीन का और लाल रंग आग का प्रतीक माना जाता है. इन झंडों में मंत्र लिखे होते हैं. माना जाता है की हवा के बहाव से जितनी बार लहराते हैं. उतनी ही ज्यादा विश्व में शांति आएगी.

तिब्बती समुदाय का नया साल लोसर.

लोसर शब्द का अर्थ तिब्बती भाषा में नया साल है. तिब्बती समुदाय के लोग लोसर को मुख्य रूप से भारत में 3 दिनों तक मनाते हैं. तिब्बती समुदाय के छिरिंग बताते हैं कि तिब्बत में लोसर को 15 दिनों तक आयोजित किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं. भारत में भी पहले 15 दिनों तक इस पर्व को आयोजित किया जाता था.
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बदलते समय के साथ-साथ भारत में लोसर मनाने के तरीके में बदलाव आया और यहां अब 3 दिनों तक लोसर का पर्व आयोजित किया जाता है, जिसमें पहले दिन तिब्बती समुदाय के लोग मठों में जाकर पूजा अर्चना करते हैं. इस पर्व को लोग अपने परिवार के साथ घरों में मनाते हैं. दूसरे दिन रिश्तेदारों एवं पड़ोसियों के घर जाकर नए वर्ष की बधाई दी जाती है. तीसरे दिन (गोमफा) मठों में आकर सभी तिब्बती समुदाय के लोग सामूहिक रूप से पूजा अर्चना करते हैं और विश्व शांति की कामना करते है. इस दौरान आटे की होली खेली जाती है.

उत्तरकाशी में भी लोसर की धूम: उत्तरकाशी के डुंडा बीरपुर गांव में आटे की होली और घरों पर नए झंडे लगाने के साथ जाड़ भोटिया समुदाय का लोसर पर्व संपन्न हुआ. वहीं रिंगाली देवी मंदिर परिसर में पारंपरिक परिधानों में सजी जाड़ भोटिया समुदाय की महिलाओं की भजन संध्या और नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा. विश्वनाथ मंदिर के महंत अजय पुरी ने वीरपुर पहुंचकर समुदाय के लोगों को लोसर की शुभकामनाएं दी. बौद्ध पंचांग के अनुसार नए साल के स्वागत में जाड़ भोटिया समुदाय द्वारा लोसर पर्व मनाया जाता है.

आटे की अद्भुत होली: शनिवार सुबह से ही डुंडा बीरपुर गांव में हुल्यार सड़कों पर उतर आए. एक-दूसरे को आटा लगाकर उन्होंने अनूठी होली खेली. इस दौरान सिर्फ जाड़-भोटिया समुदाय के लोग होली के रंग में सराबोर नजर आए. इसी के साथ सुख समृद्धि की कामना के साथ घरों पर मंत्र लिखे नए झंडे चढ़ाए गए. लोसर पर्व के समापन पर घरों में मेहमानों की विशेष आवाभगत की गई.

रिंगाली देवी की पूजा: वहीं जाड़ समुदाय के लोग रिंगाली देवी के मंदिर में एकत्र हुए. यहां रिंगाली देवी की पूजा-अर्चना करने के साथ ही हरियाली और प्रसाद चढ़ाया गया. पारंपरिक परिधानों में सजी समुदाय की महिलाओं ने भजन संध्या की प्रस्तुति से भक्ति पूर्ण माहौल बना दिया. इसके बाद समुदाय के लोगों ने रिंगाली देवी की डोली के साथ रांसो एवं तांदी नृत्य कर अपनी समृद्ध संस्कृति की झलक प्रस्तुत की. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि विश्वनाथ मंदिर महंत अजय पुरी ने कहा कि पारंपरिक मेले एवं अनुष्ठान हमारी समृद्ध संस्कृति की पहचान हैं. इनका संरक्षण हम सभी की जिम्मेदारी है.

इस मौके पर सेवकराम भण्डारी, पूर्व प्रधान नारायण सिंह नेगी, जसपाल रावत, भवान सिंह राणा, रणजौर भण्डारी, एसडीएम बंसीलाल राणा, गोपाल नेगी व गोपाल भण्डारी, नकुल भोटिया, अशोक खांपा, मदन खांपा, कपूर खांपा व सुभाष खांपा आदि ने बताया कि हर वर्ष बौद्ध पंचांग के शुभारंभ पर लोसर पर्व आयोजन किया जाता है. चार दिनों तक चलने वाला यह त्योहार दीपावली, दशहरा एवं होली के रंगों को संजोए हुए हैं.

Last Updated : Mar 5, 2022, 4:54 PM IST
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