रामनगर: सरकार द्वारा जारी की गई नई शिक्षा नीति 2020 के खिलाफ विभिन्न शिक्षक संगठनों ने संयुक्त रूप से मोर्चा खोल दिया है. शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों ने उपजिलाधिकारी, ब्लॉक प्रमुख, नगर पालिका अध्यक्ष, सांसद प्रतिनिधि के साथ-साथ अनेक जनप्रतिनिधियों के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेज शिक्षा नीति में बदलाव की मांग की.
ज्ञापन देते हुए शिक्षक संगठन के मंडलीय अध्यक्ष नवेन्दु मठपाल ने कहा कि नई शिक्षा नीति को भारतीय संविधान के समानता, पंथनिरपेक्षता, समाजवाद, सामाजिक न्याय और वैज्ञानिक चेतना के मापदंडों के अनुरूप बनाया जाए. इसके साथ ही सरकारी शिक्षा के निजीकरण, व्यवसायीकरण पर पूर्ण रोक लगाए जाए.
मठपाल ने कहा पुरानी पेंशन को बहाल कर रिटायरमेंट की उम्र को 60 वर्ष ही रखे जाने की वकालत भी की गई. शिक्षा पर सकल बजट का 10 प्रतिशत वास्तव में खर्च करने, कांप्लेक्स स्कूल की अवधारणा पर रोक लगाने, प्राथमिक शिक्षा के ढांचे को यथावत रखते हुए सभी स्तरों के साथ-साथ प्री-प्राइमरी स्तर पर भी पूर्णकालिक शिक्षकों की भर्ती की भी मांग रखी गई. साथ ही आशंका भी व्यक्त की गई कि सरकारी, प्राइवेट स्कूलों के पेयर (जोड़ा) बनाने से सरकारी स्कूलों के संसाधनों पर प्राइवेट संस्थाओं का वर्चस्व हो जाएगा. शिक्षण मातृभाषा में कराए जाने के साथ बतौर विषय जूनियर स्तर तक उत्तराखंड की भाषा कुमाऊंनी और गढ़वाली आदि को स्कूल के सिलेबस में शामिल किए जाने की मांग भी की गई.
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इसके अलावा ज्ञापन में कम से कम इंटर कक्षाओं तक सरकार द्वारा वित्त पोषित पूरी तरह मुफ्त समान शिक्षा व्यवस्था लागू करने की मांग भी की गई. सरकारी स्कूल के पांच किलोमीटर के दायरे में किसी भी निजी विद्यालय को न खोलने, राज्य सरकार द्वारा संचालित सभी सरकारी स्कूलों में केंद्रीय विद्यालयों जैसी सुविधाएं मुहैया करवाई जाए. राज्य सरकार से वेतन या अन्य सुविधा पाने वाले कर्मचारियों के बच्चों का सिर्फ सरकारी स्कूल में ही दाखिला करवाना अनिवार्य किया जाये. जो बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़े हैं उनको उच्च शिक्षण संस्थान और नौकरी आदि में प्राथमिकता दिए जाए.
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उपजिलाधिकारी विजय नाथ शुक्ल ने आश्वस्त किया कि शिक्षक मंडलों द्वारा जो भी ज्ञापन सौंपा गया है उसको वे जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को भेजेंगे