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जिलिंग एस्टेट मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 5, 2024, 7:55 PM IST

Hearing in Supreme Court on Jilling Estate case जिलिंग एस्टेट मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जिलिंग एस्टेट में निर्माणकार्य किये जाने की अनुमति दी थी.

Hearing in Supreme Court on Jilling Estate case
जिलिंग एस्टेट मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

नैनीताल: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें जिलिंग एस्टेट भीमताल में निर्माणकार्य किये जाने की अंतरिम अनुमति दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गुण दोष के आधार पर तीन माह के भीतर करने के निर्देश उत्तराखण्ड हाईकोर्ट को दिए हैं.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी आर गवई व न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खण्डपीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के 23 नवम्बर 2022 के अंतरिम आदेश को रद्द करते हुए कहा कि जिलिंग एस्टेट में निर्माण की अनुमति देने से मामले की अंतिम सुनवाई होने पर क्षेत्र की स्थिति बदल सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा इस मामले में पर्यावरणीय मुद्दे भी शामिल हैं, इसलिये विवादित आदेश को रद्द किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय से आग्रह किया है कि वह याचिका पर योग्यता के आधार पर, यथासंभव तीन महीने के भीतर निर्णय ले.

पढे़ं- टिहरी झील में फ्लोटिंग हट्स रेस्टोरेंट मामले में कोर्ट में सुनवाई, लाइसेंस को लेकर मांगा जवाब

उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने भीमताल के जिलिंग एस्टेट पर हो रहे निर्माण कार्यो के खिलाफ दायर जनहित याचिका के बाद जिलिंग एस्टेट में निर्माण कार्यों पर लगी रोक को हटा दी थी. जिसे याचिकाकर्ता वीरेंद्र सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. मामले के अनुसार वीरेंद्र सिंह ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि 1980 के दशक में जिलिंग एस्टेट को संपत्ति बेची थी. वह इसकी आड़ में आस-पास के इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियां भी कर रहा है. अगर वन क्षेत्र में कोई अनधिकृत गतिविधि की जाती है तो वह शिकायत कर सकता है.

इसको लेकर याचिकाकर्ता ने पहले एनजीटी और फिर सुप्रीम कोर्ट से इसकी अपील की. शिकायत में कहा जिलिंग स्टेट के द्वारा करीब 44 विला और हेलीपैड और रिसॉर्ट कॉटेज सहित अन्य का निर्माण जिलिंग एस्टेट में किया जा रहा है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने बताया एस्टेट ने सक्षम अधिकारियों से कोई अनुमति प्राप्त किए बिना विकास गतिविधियों को करने के लिए एक जेसीबी मशीन का भी इस्तेमाल किया. स्टेट ने कभी भी पर्यावरण विभाग की अनुमति नहीं ली.

पढे़ं- शुरू हुई राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां, बीजेपी ने तैयार किया प्लान, समझिए क्या है रणनीति

कोर्ट ने कहा प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि एस्टेट ने घने वन क्षेत्र में विकास गतिविधियों को अंजाम दिया है. जिसमें 40% से अधिक घने पेड़ हैं, हम पूरे जिलिंग के नए सिरे से जांच कराना चाहते हैं. 11 फरवरी 2020 को उच्चतम न्यायालय ने रेवेन्यू व फारेस्ट विभाग से इसका सर्वे व जांच करने के आदेश दिए थे. उसके बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई.

नैनीताल: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें जिलिंग एस्टेट भीमताल में निर्माणकार्य किये जाने की अंतरिम अनुमति दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गुण दोष के आधार पर तीन माह के भीतर करने के निर्देश उत्तराखण्ड हाईकोर्ट को दिए हैं.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी आर गवई व न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खण्डपीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के 23 नवम्बर 2022 के अंतरिम आदेश को रद्द करते हुए कहा कि जिलिंग एस्टेट में निर्माण की अनुमति देने से मामले की अंतिम सुनवाई होने पर क्षेत्र की स्थिति बदल सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा इस मामले में पर्यावरणीय मुद्दे भी शामिल हैं, इसलिये विवादित आदेश को रद्द किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय से आग्रह किया है कि वह याचिका पर योग्यता के आधार पर, यथासंभव तीन महीने के भीतर निर्णय ले.

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उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने भीमताल के जिलिंग एस्टेट पर हो रहे निर्माण कार्यो के खिलाफ दायर जनहित याचिका के बाद जिलिंग एस्टेट में निर्माण कार्यों पर लगी रोक को हटा दी थी. जिसे याचिकाकर्ता वीरेंद्र सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. मामले के अनुसार वीरेंद्र सिंह ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि 1980 के दशक में जिलिंग एस्टेट को संपत्ति बेची थी. वह इसकी आड़ में आस-पास के इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियां भी कर रहा है. अगर वन क्षेत्र में कोई अनधिकृत गतिविधि की जाती है तो वह शिकायत कर सकता है.

इसको लेकर याचिकाकर्ता ने पहले एनजीटी और फिर सुप्रीम कोर्ट से इसकी अपील की. शिकायत में कहा जिलिंग स्टेट के द्वारा करीब 44 विला और हेलीपैड और रिसॉर्ट कॉटेज सहित अन्य का निर्माण जिलिंग एस्टेट में किया जा रहा है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने बताया एस्टेट ने सक्षम अधिकारियों से कोई अनुमति प्राप्त किए बिना विकास गतिविधियों को करने के लिए एक जेसीबी मशीन का भी इस्तेमाल किया. स्टेट ने कभी भी पर्यावरण विभाग की अनुमति नहीं ली.

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कोर्ट ने कहा प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि एस्टेट ने घने वन क्षेत्र में विकास गतिविधियों को अंजाम दिया है. जिसमें 40% से अधिक घने पेड़ हैं, हम पूरे जिलिंग के नए सिरे से जांच कराना चाहते हैं. 11 फरवरी 2020 को उच्चतम न्यायालय ने रेवेन्यू व फारेस्ट विभाग से इसका सर्वे व जांच करने के आदेश दिए थे. उसके बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई.

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