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'रातों-रात नहीं हटाए जा सकते 50 हजार लोग', 4 हजार घरों को तोड़ने पर 'सुप्रीम' रोक!

सुप्रीम कोर्ट ने हल्द्वानी अतिक्रमण मामले में बड़ी राहत दी है. हल्द्वानी में अतिक्रमण पर फिलहाल बुलडोजर नहीं चलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. अभी फिलहाल के लिए हल्द्वानी में रेलवे की उस जगह पर बुलडोजर नहीं चलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगाते हुए उत्तराखंड सरकार और भारतीय रेलवे से जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले की सुनवाई अब 7 फरवरी को होगी.

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Published : Jan 5, 2023, 1:19 PM IST

Updated : Jan 5, 2023, 4:44 PM IST

वनभूलपुरा पर सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बाद सीएम धामी की प्रतिक्रिया

देहरादून/दिल्ली: उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं होगी. इसके अलावा कोर्ट ने राज्य सरकार और रेलवे को नोटिस जारी किया है. इस मामले में अब 7 फरवरी को सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में करीब आधा घंटा बहस चली. बहस की शुरुआत में अतिक्रमण हटाने के खिलाफ याचिका दायर करने वाले वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि लोगों को कोई अवसर नहीं दिया गया. कोर्ट ने कहा कि आप मात्र सात दिनों में घर खाली करने के लिए कैसे कह सकते हैं. इसके लिए कोई समाधान ढूंढना पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले की सुनवाई अब 7 फरवरी को होगी.

सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ: जस्टिस कौल ने कहा कि हमें एक व्यावहारिक समाधान खोजना होगा. कई कोण हैं, भूमि की प्रकृति, प्रदत्त अधिकारों की प्रकृति इन पर विचार करना होगा. हमने यह कहकर शुरू किया कि हम आपकी ज़रूरत को समझते हैं लेकिन उस ज़रूरत को कैसे पूरा करें. इस पर एएसजी ने कहा कि हमने उचित प्रक्रिया का पालन किया है. इस पर न्यायाधीश कौल ने कहा कि कोई उपाय खोजना होगा. एएसजी ने कहा कि हम किसी भी पुनर्वास के आड़े नहीं आ रहे हैं.

जस्टिस कौल ने कहा कि लोगों का रातों-रात उखड़ना नहीं हो सकता. हम मानते हैं कि वर्चुअल व्यवस्था जरूरी है. जिन लोगों का अधिकार नहीं है, उन्हें पुनर्वास योजना के साथ हटाना होगा. व्यक्तियों का पुनर्वास आवश्यक है. इसके बाद जस्टिस कौल ने कहा कि फिलहाल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक रहेगी.

फैसले के बाद क्या बोले सीएम धामी: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीएम धामी का बयान भी सामने आया है. सीएम धामी ने कहा हमने पहले भी कहा है कि यह रेलवे की जमीन है. हम कोर्ट के आदेश के अनुसार ही आगे बढ़ेंगे.
पढ़ें- क्या हल्द्वानी में टूटेंगे 4 हजार से ज्यादा घर? मिलेगी राहत या आएगी आफत, SC में सुनवाई आज

सुनवाई के दौरान कोर्ट की टिप्पणी: जस्टिस संजय किशन कौल और एएस ओका की बेंच ने रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने के तरीके को अस्वीकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेशों पर रोक रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हमने कार्रवाई पर रोक नहीं लगाई है और केवल उच्च न्यायालय के निर्देशों पर रोक लगाई गई है. कोर्ट ने यह भी कहा कि विवादित भूमि पर आगे कोई निर्माण या विकास नहीं होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यह आदेश इसलिए पारित किया है, क्योंकि अतिक्रमण उन जगहों से हटाया जाना है, जो कई दशकों से प्रभावित लोगों के कब्जे में है, कई लोग 60 सालों से भूमि पर रह रहे हैं, इसलिए पुनर्वास के लिए उपाय किए जाने चाहिए. क्योंकि इस मुद्दे में मानवीय दृष्टिकोण शामिल है.

सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि इस मामले में हमें यह तथ्य परेशान कर रहा है कि उनका क्या होगा जिन्होंने नीलामी में जमीन को खरीदा और 1947 के बाद से रहे हैं. आप जमीन का अधिग्रहण कर सकते हैं लेकिन अब क्या करें. लोग 60-70 साल से रह रहे हैं, उनके पुनर्वास की जरूरत है.

जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि अतिक्रमण के जिन मामलों में लोगों के पास कोई अधिकार नहीं था, उस स्थिति में सरकारों ने अक्सर प्रभावितों का पुनर्वास किया है. इस केस में कुछ लोगों के पास कागजात भी हैं, ऐसे में आपको एक समाधान खोजना होगा, इस मुद्दे का एक मानवीय पहलू भी है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रातों-रात 50 हजार लोगों को उजाड़ा नहीं जा सकता, ऐसे लोगों का हटाया जाना चाहिए जिनका भूमि पर कोई अधिकार नहीं है और रेलवे की आवश्यकता को पहचानते हुए उन लोगों के पुनर्वास की आवश्यकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद उत्तराखंड सरकार और भारतीय रेलवे को नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी. यानी तब तक बुलडोजर चलने पर रोक लग गया है. भारतीय रेलवे की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी पेश हुए और उन्होंने अपनी दलील में कहा कि सब कुछ नियत प्रक्रिया का पालन करके किया गया है और विवादित भूमि रेलवे की है.

स्थानीय लोगों की पेश हुए वकील ने यह तर्क दिया गया कि भाजपा शासित उत्तराखंड सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष उनके मामले को ठीक से नहीं रखा, जिसके परिणामस्वरूप हाई कोर्ट ने रेलवे के पक्ष में फैसला सुनाया. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि जमीन का कब्जा याचिकाकर्ताओं के पास आजादी के पहले से है और सरकारी पट्टे भी उनके पक्ष में निष्पादित किए गए हैं.

जानें पूरा मामला: नैनीताल जिले के हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर करीब चार हजार से ज्यादा घर बने हुए है. जिन्हें हटाने के लिए रेलवे ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपने आदेश में रेलवे को इन घरों को खाली कराने का आदेश दिया था. रेलवे ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर अतिक्रणकारियों को सार्वजनिक नोटिस जारी किया था. इसमें हल्द्वानी रेलवे स्टेशन से 2.19 किमी दूर तक अतिक्रमण हटाया जाना है. खुद अतिक्रमण हटाने के लिए सात दिन का समय दिया गया था.

रेलवे की तरफ से जारी नोटिस में कहा गया था कि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन 82.900 किमी से 87.710 किमी के बीच रेलवे की भूमि पर सभी अनाधिकृत कब्जों को तोड़ा जाएगा. सात दिन के अंदिर अतिक्रमकारी खुद अपना कब्जा हटा लें, वरना हाईकोर्ट के आदेशानुसार अतिक्रमण को तोड़ा दिया जाएगा.
पढ़ें- वनभूलपुरा के शाहीन बाग बनने से पहले सरकार चलाए बुलडोजर- स्वामी आनंद स्वरूप

उत्तराखंड हाईकोर्ट के इस आदेश को बीते सोमवार दो जनवरी को हल्द्वानी के शराफत खान समेत 11 लोगों की याचिका वरिष्ठ वकील अधिवक्तता सलमान खुर्शीद की ओर से दाखिल की गई थी, जिस पर आज पांच जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी.

वनभूलपुरा पर सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बाद सीएम धामी की प्रतिक्रिया

देहरादून/दिल्ली: उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं होगी. इसके अलावा कोर्ट ने राज्य सरकार और रेलवे को नोटिस जारी किया है. इस मामले में अब 7 फरवरी को सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में करीब आधा घंटा बहस चली. बहस की शुरुआत में अतिक्रमण हटाने के खिलाफ याचिका दायर करने वाले वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि लोगों को कोई अवसर नहीं दिया गया. कोर्ट ने कहा कि आप मात्र सात दिनों में घर खाली करने के लिए कैसे कह सकते हैं. इसके लिए कोई समाधान ढूंढना पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले की सुनवाई अब 7 फरवरी को होगी.

सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ: जस्टिस कौल ने कहा कि हमें एक व्यावहारिक समाधान खोजना होगा. कई कोण हैं, भूमि की प्रकृति, प्रदत्त अधिकारों की प्रकृति इन पर विचार करना होगा. हमने यह कहकर शुरू किया कि हम आपकी ज़रूरत को समझते हैं लेकिन उस ज़रूरत को कैसे पूरा करें. इस पर एएसजी ने कहा कि हमने उचित प्रक्रिया का पालन किया है. इस पर न्यायाधीश कौल ने कहा कि कोई उपाय खोजना होगा. एएसजी ने कहा कि हम किसी भी पुनर्वास के आड़े नहीं आ रहे हैं.

जस्टिस कौल ने कहा कि लोगों का रातों-रात उखड़ना नहीं हो सकता. हम मानते हैं कि वर्चुअल व्यवस्था जरूरी है. जिन लोगों का अधिकार नहीं है, उन्हें पुनर्वास योजना के साथ हटाना होगा. व्यक्तियों का पुनर्वास आवश्यक है. इसके बाद जस्टिस कौल ने कहा कि फिलहाल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक रहेगी.

फैसले के बाद क्या बोले सीएम धामी: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीएम धामी का बयान भी सामने आया है. सीएम धामी ने कहा हमने पहले भी कहा है कि यह रेलवे की जमीन है. हम कोर्ट के आदेश के अनुसार ही आगे बढ़ेंगे.
पढ़ें- क्या हल्द्वानी में टूटेंगे 4 हजार से ज्यादा घर? मिलेगी राहत या आएगी आफत, SC में सुनवाई आज

सुनवाई के दौरान कोर्ट की टिप्पणी: जस्टिस संजय किशन कौल और एएस ओका की बेंच ने रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने के तरीके को अस्वीकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेशों पर रोक रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हमने कार्रवाई पर रोक नहीं लगाई है और केवल उच्च न्यायालय के निर्देशों पर रोक लगाई गई है. कोर्ट ने यह भी कहा कि विवादित भूमि पर आगे कोई निर्माण या विकास नहीं होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यह आदेश इसलिए पारित किया है, क्योंकि अतिक्रमण उन जगहों से हटाया जाना है, जो कई दशकों से प्रभावित लोगों के कब्जे में है, कई लोग 60 सालों से भूमि पर रह रहे हैं, इसलिए पुनर्वास के लिए उपाय किए जाने चाहिए. क्योंकि इस मुद्दे में मानवीय दृष्टिकोण शामिल है.

सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि इस मामले में हमें यह तथ्य परेशान कर रहा है कि उनका क्या होगा जिन्होंने नीलामी में जमीन को खरीदा और 1947 के बाद से रहे हैं. आप जमीन का अधिग्रहण कर सकते हैं लेकिन अब क्या करें. लोग 60-70 साल से रह रहे हैं, उनके पुनर्वास की जरूरत है.

जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि अतिक्रमण के जिन मामलों में लोगों के पास कोई अधिकार नहीं था, उस स्थिति में सरकारों ने अक्सर प्रभावितों का पुनर्वास किया है. इस केस में कुछ लोगों के पास कागजात भी हैं, ऐसे में आपको एक समाधान खोजना होगा, इस मुद्दे का एक मानवीय पहलू भी है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रातों-रात 50 हजार लोगों को उजाड़ा नहीं जा सकता, ऐसे लोगों का हटाया जाना चाहिए जिनका भूमि पर कोई अधिकार नहीं है और रेलवे की आवश्यकता को पहचानते हुए उन लोगों के पुनर्वास की आवश्यकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद उत्तराखंड सरकार और भारतीय रेलवे को नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी. यानी तब तक बुलडोजर चलने पर रोक लग गया है. भारतीय रेलवे की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी पेश हुए और उन्होंने अपनी दलील में कहा कि सब कुछ नियत प्रक्रिया का पालन करके किया गया है और विवादित भूमि रेलवे की है.

स्थानीय लोगों की पेश हुए वकील ने यह तर्क दिया गया कि भाजपा शासित उत्तराखंड सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष उनके मामले को ठीक से नहीं रखा, जिसके परिणामस्वरूप हाई कोर्ट ने रेलवे के पक्ष में फैसला सुनाया. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि जमीन का कब्जा याचिकाकर्ताओं के पास आजादी के पहले से है और सरकारी पट्टे भी उनके पक्ष में निष्पादित किए गए हैं.

जानें पूरा मामला: नैनीताल जिले के हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर करीब चार हजार से ज्यादा घर बने हुए है. जिन्हें हटाने के लिए रेलवे ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपने आदेश में रेलवे को इन घरों को खाली कराने का आदेश दिया था. रेलवे ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर अतिक्रणकारियों को सार्वजनिक नोटिस जारी किया था. इसमें हल्द्वानी रेलवे स्टेशन से 2.19 किमी दूर तक अतिक्रमण हटाया जाना है. खुद अतिक्रमण हटाने के लिए सात दिन का समय दिया गया था.

रेलवे की तरफ से जारी नोटिस में कहा गया था कि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन 82.900 किमी से 87.710 किमी के बीच रेलवे की भूमि पर सभी अनाधिकृत कब्जों को तोड़ा जाएगा. सात दिन के अंदिर अतिक्रमकारी खुद अपना कब्जा हटा लें, वरना हाईकोर्ट के आदेशानुसार अतिक्रमण को तोड़ा दिया जाएगा.
पढ़ें- वनभूलपुरा के शाहीन बाग बनने से पहले सरकार चलाए बुलडोजर- स्वामी आनंद स्वरूप

उत्तराखंड हाईकोर्ट के इस आदेश को बीते सोमवार दो जनवरी को हल्द्वानी के शराफत खान समेत 11 लोगों की याचिका वरिष्ठ वकील अधिवक्तता सलमान खुर्शीद की ओर से दाखिल की गई थी, जिस पर आज पांच जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी.

Last Updated : Jan 5, 2023, 4:44 PM IST
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