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कारगिल विजय: हल्द्वानी के वीर की शहादत को नहीं मिला सम्मान, जानें- कैसा है परिवार का हाल

आजादी के बाद से आज तक उत्तराखंड के वीर सपूत देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने के लिए हमेशा आगे रहे. वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध में देवभूमि के 75 जांबाजों ने देश की रक्षा करते हुए बलिदान दिया था.

कारगिल विजय दिवस
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Published : Jul 25, 2020, 5:00 PM IST

Updated : Jul 26, 2020, 2:05 PM IST

हल्द्वानी: देवभूमि उत्तराखंड को वीर सपूतों की भूमि ऐसे ही नहीं कहा जाता है. इस पावन माटी में कई ऐसे जांबाजों ने जन्म लिया है, जिन्होंने देश रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर दिए. यहां वीरता और शौर्य की कहानी गांव-गांव में देखने को मिल सकती है. कारगिल युद्ध में भी देवभूमि के वीर जवानों ने अहम भूमिका निभाई थी. कारगिल युद्ध देवभूमि के जांबाज जवानों के किस्सों से भरा पड़ा है. कारगिल युद्ध में उत्तराखंड में 75 जवान शहीद हुए थे. उन्हीं वीरों में से एक थे सूबेदार गोविंद सिंह पपोला, जो कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे.

हल्द्वानी के वीर की शहादत को नहीं मिला सम्मान.

आज से 21 साल पहले (साल 1999) कारगिल युद्ध में उत्तराखंड की कुमाऊं और गढ़वाल रेजीमेंट के पाकिस्तानी घुसपैठयों को मुंहतोड़ जवाब दिया था. कुमाऊं और गढ़वाल रेजीमेंट जवान ने बड़ी बहादुरी से न सिर्फ पाकिस्तानी घुसपैठियों का सामना किया किया था, बल्कि उन्हें देश की सीमा से बाहर भी किया था.

पढ़ें- देशभक्ति गीत गुनगुनाते शहीद देव बहादुर का पुराना वीडियो वायरल

कारगिल युद्ध में कुमाऊं रेजीमेंट 12 और गढ़वाल रेजीमेंट के 54 जवानों ने अपनी शहादत दी थी. बात नैनीताल जिले की करें तो यहां के पांच जवान कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. इसी में एक थे हल्द्वानी के सूबेदार गोविंद सिंह पपोला. सूबेदार पपोला पाकिस्तानी आतंकियों से लोहा लेते हुए कारगिल में शहीद हो गए थे.

शहीद पपोला का परिवार को बिन्दुखत्ता में रहता है. उनकी पत्नी प्रेमा पपोला आज भी उन दिनों को याद करके भावुक हो जाती हैं. प्रेमा का कहना है कि पति की शहादत पर उन्हें गर्व है पपोला अपने साथियों के साथ युद्ध क्षेत्र में जा रहे थे, तभी पाकिस्तानी के तरफ से उनके वाहन पर हमला किया गया था, जिसमें सुबेदार पपोला शहीद हो गए थे.

पढ़ें- श्रीदेव सुमन को 76वीं शहादत दिवस पर किया याद, दी श्रद्धांजलि

सुबेदार पपोला की शहादत के बाद सरकार ने कई घोषणाएं की थी, जो आजतक अधूरी हैं. प्रेमा पपोला ने कहा कि आज उनका उनका परिवार संपन्न हैं. शहादत के समय सरकार ने इंटर कॉलेज का नाम उनके पति के नाम पर रखने की घोषणा की थी, जो आजतक पूरी नहीं हुई. इसके अलावा सरकार ने शहीद के परिवार को पेट्रोल पंप देने की बात भी कही थी, लेकिन घर की हालत ठीक नहीं होने के चलते प्रेमा पपोला मना कर दिया था. सरकार के शहीद पपोला के परिवार को दिल्ली में एक मकान भी दिला था, लेकिन वो भी आधा अधूरा, जिसमें परिवार को ही नुकसान उठाना पड़ा.

प्रेमा पपोला ने कहा कि ने सरकार के कुछ नहीं चाहती है, लेकिन उनकी एक मांग है कि समय-समय पर सरकार शहीदों और उनके परिवारों को याद करती रहे है. ये ही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

हल्द्वानी: देवभूमि उत्तराखंड को वीर सपूतों की भूमि ऐसे ही नहीं कहा जाता है. इस पावन माटी में कई ऐसे जांबाजों ने जन्म लिया है, जिन्होंने देश रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर दिए. यहां वीरता और शौर्य की कहानी गांव-गांव में देखने को मिल सकती है. कारगिल युद्ध में भी देवभूमि के वीर जवानों ने अहम भूमिका निभाई थी. कारगिल युद्ध देवभूमि के जांबाज जवानों के किस्सों से भरा पड़ा है. कारगिल युद्ध में उत्तराखंड में 75 जवान शहीद हुए थे. उन्हीं वीरों में से एक थे सूबेदार गोविंद सिंह पपोला, जो कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे.

हल्द्वानी के वीर की शहादत को नहीं मिला सम्मान.

आज से 21 साल पहले (साल 1999) कारगिल युद्ध में उत्तराखंड की कुमाऊं और गढ़वाल रेजीमेंट के पाकिस्तानी घुसपैठयों को मुंहतोड़ जवाब दिया था. कुमाऊं और गढ़वाल रेजीमेंट जवान ने बड़ी बहादुरी से न सिर्फ पाकिस्तानी घुसपैठियों का सामना किया किया था, बल्कि उन्हें देश की सीमा से बाहर भी किया था.

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कारगिल युद्ध में कुमाऊं रेजीमेंट 12 और गढ़वाल रेजीमेंट के 54 जवानों ने अपनी शहादत दी थी. बात नैनीताल जिले की करें तो यहां के पांच जवान कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. इसी में एक थे हल्द्वानी के सूबेदार गोविंद सिंह पपोला. सूबेदार पपोला पाकिस्तानी आतंकियों से लोहा लेते हुए कारगिल में शहीद हो गए थे.

शहीद पपोला का परिवार को बिन्दुखत्ता में रहता है. उनकी पत्नी प्रेमा पपोला आज भी उन दिनों को याद करके भावुक हो जाती हैं. प्रेमा का कहना है कि पति की शहादत पर उन्हें गर्व है पपोला अपने साथियों के साथ युद्ध क्षेत्र में जा रहे थे, तभी पाकिस्तानी के तरफ से उनके वाहन पर हमला किया गया था, जिसमें सुबेदार पपोला शहीद हो गए थे.

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सुबेदार पपोला की शहादत के बाद सरकार ने कई घोषणाएं की थी, जो आजतक अधूरी हैं. प्रेमा पपोला ने कहा कि आज उनका उनका परिवार संपन्न हैं. शहादत के समय सरकार ने इंटर कॉलेज का नाम उनके पति के नाम पर रखने की घोषणा की थी, जो आजतक पूरी नहीं हुई. इसके अलावा सरकार ने शहीद के परिवार को पेट्रोल पंप देने की बात भी कही थी, लेकिन घर की हालत ठीक नहीं होने के चलते प्रेमा पपोला मना कर दिया था. सरकार के शहीद पपोला के परिवार को दिल्ली में एक मकान भी दिला था, लेकिन वो भी आधा अधूरा, जिसमें परिवार को ही नुकसान उठाना पड़ा.

प्रेमा पपोला ने कहा कि ने सरकार के कुछ नहीं चाहती है, लेकिन उनकी एक मांग है कि समय-समय पर सरकार शहीदों और उनके परिवारों को याद करती रहे है. ये ही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

Last Updated : Jul 26, 2020, 2:05 PM IST
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