हल्द्वानी: श्रीलंका टापू नाम सुनते ही आपके जहन में पड़ोसी देश श्रीलंका की याद आ जाती होगी. लेकिन उत्तराखंड के नैनीताल जिले में एक ऐसा गांव है, जिसका नाम श्रीलंका टापू है. श्रीलंका टापू गांव दो नदियों के बीच में बसा है, जो हल्द्वानी से 30 किलोमीटर दूर बिंदुखत्ता के गौलापार नदी पार है. जहां के ग्रामीण खेती और पशुपालन पर निर्भर हैं. आलम यह है कि बरसात में इस गांव का दुनिया से संपर्क कट जाता है.
वहीं आपदा के दृष्टिगत जिला प्रशासन ने श्रीलंका टापू गांव में अस्थाई हेलीपैड तैयार किया है. जिससे बाढ़ के दौरान ग्रामीणों को हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू किया जा सके. उप जिलाधिकारी मनीष कुमार ने बताया कि श्रीलंका टापू गांव का उन्होंने दौरा कर वहां की व्यवस्थाओं का जायजा लिया, जहां तीन महीने का अतिरिक्त राशन पहुंचा दिया गया है. इसके अलावा बरसात के दौरान डॉक्टरों की टीम द्वारा बीमारियों से बचने के लिए दवाइयां भी उपलब्ध कराई गई हैं. इसके अलावा आपदा की संभावना को देखते हुए अस्थाई हेलीपैड भी तैयार कर दिया गया है. जिससे बाढ़ के दौरान ग्रामीणों को सुरक्षित रेस्क्यू किया जा सके.
इसके अलावा एसडीएम तहसीलदार और पटवारी का नंबर भी ग्रामीणों को उपलब्ध कराया गया है. जिससे बाढ़ के दौरान ग्रामीण इसकी सूचना दे सके. गौरतलब है कि श्रीलंका टापू गांव में करीब 400 लोग निवास करते हैं. जहां ग्रामीणों का मुख्य साधन खेती और पशुपालन है. गांव दो नदियों के बीच में बसा है, जिसके चलते गांव तक कोई सड़क मार्ग है, ना ही विद्युत की कोई व्यवस्था है. यहां तक की गांव में हॉस्पिटल और बच्चों के पढ़ाई के लिए स्कूल तक नहीं है. बताया जाता है कि 12 और 13 अक्टूबर 1985 को गौला नदी में भयंकर बाढ़ आई थी. नदी के दिशा बदलने से बिंदुखत्ता, खुरियाखत्ता गांव दो भागों में बांट गया, जिससे बीच में टापू बन गया. बाद में लोगों ने उस गांव का नाम श्रीलंका टापू रख दिया.