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रेशम उत्पादन से किसान हो सकते हैं मालामाल, बिना लागत के 20 साल तक करें खेती

किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन का भी काम कर सकता है. विभाग द्वारा रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों को 300 शहतूत के पेड़ निशुल्क दिए जाते हैं. साथ ही बहुत कम दरों में रेशम के कीट भी उपलब्ध कराए जाते हैं. एक बार पेड़ लग जाने के बाद उसको 20 साल तक उपयोग में लाया जा सकता है.

रेशम की किस्में
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Published : May 15, 2019, 1:16 PM IST

हल्द्वानी: उत्तराखंड को बागवानी और जड़ी बूटियों का प्रदेश भी कहा जाता है. लेकिन अब प्रदेश का किसान रेशम के उत्पादन की ओर आगे बढ़ रहा है. किसान बगवानी के साथ-साथ अब रेशम उत्पादन में भी दिलचस्पी लेने लगे हैं. वहीं रेशम विभाग भी किसानों को कई योजनाओं के माध्यम से रेशम उत्पादन के लिए जागरूक कर रहा है.

किसानों की आय को बढ़ाने के लिए रेशम विभाग किसानों को प्रणाम परी की खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है. उप निदेशक रेशम विभाग अरविंद लालोरिया का कहना है कि रेशम उत्पादन किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए मुख्य साधन हो सकता है. रेशम उत्पादन के लिए किसानों को किसी तरह के इन्वेस्टमेंट की जरूरत भी नहीं है.

किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन का भी काम कर सकता है. विभाग द्वारा रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों को 300 शहतूत के पेड़ निशुल्क दिए जाते हैं. साथ ही बहुत कम दरों में रेशम के कीट भी उपलब्ध कराए जाते हैं. एक बार पेड़ लग जाने के बाद उसको 20 साल तक उपयोग में लाया जा सकता है.

अरविंद लालोरिया का कहना है कि रेशम का उत्पादन साल में दो बार किया जा सकता है. रेशम उत्पादन के लिए मार्च और सितंबर का महीना सबसे अनुकूल रहता है. रेशम का उत्पादन मात्र 28 से 30 दिनों में किया जा सकता है. उनका कहना है कि रेशम कीट की जिन्दगी सिर्फ 30 दिनों की ही होती है.

रेशम उत्पादन के लिए आगे बढ़ रहे हैं किसान

विभाग द्वारा 10 दिन का कीट (यानी रेशम का कीड़ा) किसानों को दिया जाता है और मात्र 18 दिन किसान को इस कीट को पालना पड़ता है. जिसके बाद रेशम तैयार हो जाते हैं.
विभाग का कहना है कि एक किसान अगर रेशम उत्पादन का काम करता है तो अन्य खेती के साथ किसान साल में 15 हजार से 20 हजार तक की अतिरिक्त आमदनी कर सकता है.

उन्होंने बताया कि 2017-18 में उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में 2000 किसान रेशम उत्पादन से जुड़े हुए थे. जो बढ़कर इस साल 2340 हो गये हैं. उधम सिंह नगर में 989 किसान रेशम उत्पादन से जुड़े हैं जबकि नैनीताल जिले में 825 उत्पादक रेशम का उत्पादन कर रहे हैं.

3 प्रजाति के रेशम तैयार किए जाते हैं
उत्तराखंड में तीन प्रजाति के रेशम तैयार किए जाते हैं. सबसे ज्यादा शाहतूती रेशम का उत्पादन होता है. अरंडी रेशम का उत्पादन उधम सिंह नगर में सबसे ज्यादा किया जाता है. वहीं ओक टसर रेशम का उत्पादन पहाड़ों में मणिपुरी बास से किया जाता है.

फिलहाल रेशम उत्पादन के लिए सरकार किसानों को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही है. जिसके तहत किसानों को सब्सिडी भी उपलब्ध करवाया जा रहा है.

हल्द्वानी: उत्तराखंड को बागवानी और जड़ी बूटियों का प्रदेश भी कहा जाता है. लेकिन अब प्रदेश का किसान रेशम के उत्पादन की ओर आगे बढ़ रहा है. किसान बगवानी के साथ-साथ अब रेशम उत्पादन में भी दिलचस्पी लेने लगे हैं. वहीं रेशम विभाग भी किसानों को कई योजनाओं के माध्यम से रेशम उत्पादन के लिए जागरूक कर रहा है.

किसानों की आय को बढ़ाने के लिए रेशम विभाग किसानों को प्रणाम परी की खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है. उप निदेशक रेशम विभाग अरविंद लालोरिया का कहना है कि रेशम उत्पादन किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए मुख्य साधन हो सकता है. रेशम उत्पादन के लिए किसानों को किसी तरह के इन्वेस्टमेंट की जरूरत भी नहीं है.

किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन का भी काम कर सकता है. विभाग द्वारा रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों को 300 शहतूत के पेड़ निशुल्क दिए जाते हैं. साथ ही बहुत कम दरों में रेशम के कीट भी उपलब्ध कराए जाते हैं. एक बार पेड़ लग जाने के बाद उसको 20 साल तक उपयोग में लाया जा सकता है.

अरविंद लालोरिया का कहना है कि रेशम का उत्पादन साल में दो बार किया जा सकता है. रेशम उत्पादन के लिए मार्च और सितंबर का महीना सबसे अनुकूल रहता है. रेशम का उत्पादन मात्र 28 से 30 दिनों में किया जा सकता है. उनका कहना है कि रेशम कीट की जिन्दगी सिर्फ 30 दिनों की ही होती है.

रेशम उत्पादन के लिए आगे बढ़ रहे हैं किसान

विभाग द्वारा 10 दिन का कीट (यानी रेशम का कीड़ा) किसानों को दिया जाता है और मात्र 18 दिन किसान को इस कीट को पालना पड़ता है. जिसके बाद रेशम तैयार हो जाते हैं.
विभाग का कहना है कि एक किसान अगर रेशम उत्पादन का काम करता है तो अन्य खेती के साथ किसान साल में 15 हजार से 20 हजार तक की अतिरिक्त आमदनी कर सकता है.

उन्होंने बताया कि 2017-18 में उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में 2000 किसान रेशम उत्पादन से जुड़े हुए थे. जो बढ़कर इस साल 2340 हो गये हैं. उधम सिंह नगर में 989 किसान रेशम उत्पादन से जुड़े हैं जबकि नैनीताल जिले में 825 उत्पादक रेशम का उत्पादन कर रहे हैं.

3 प्रजाति के रेशम तैयार किए जाते हैं
उत्तराखंड में तीन प्रजाति के रेशम तैयार किए जाते हैं. सबसे ज्यादा शाहतूती रेशम का उत्पादन होता है. अरंडी रेशम का उत्पादन उधम सिंह नगर में सबसे ज्यादा किया जाता है. वहीं ओक टसर रेशम का उत्पादन पहाड़ों में मणिपुरी बास से किया जाता है.

फिलहाल रेशम उत्पादन के लिए सरकार किसानों को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही है. जिसके तहत किसानों को सब्सिडी भी उपलब्ध करवाया जा रहा है.

Intro:स्लग- रेशम उत्पादन से जुड़े सैकड़ों किसान
रिपोर्टर -भावनाथ पंडित/ हल्द्वानी
एंकर-उत्तराखंड को बागवानी औऱ जड़ी बूटियों का प्रदेश कहा जाता है लेकिन अब यहां के किसान रेशम के उत्पादन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। उत्तराखंड के किसान बगवानी के साथ साथ अब रेशम उत्पादन में भी दिलचस्पी ले रहे हैं। रेशम विभाग भी अब इन किसानों को कई योजनाओं के माध्यम से किसानों को रेशम उत्पादन के लिए जागरूक भी कर रहा है।



Body:किसानों को आय को बढ़ाने के लिए रेशम विभाग किसानों को प्रणाम परी की खेती के साथ साथ रेशम उत्पादन के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है। उप निदेशक रेशम विभाग अरविंद लालोरिया का कहना है कि रेशम उत्पादन किसानों की आय में बढ़ोतरी के लिए मुख्य साधन हो सकता है। रेशम उत्पादन के लिए किसानों को किसी तरह का इन्वेस्टमेंट की जरूरत नहीं है। किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन का भी काम कर सकता है विभाग द्वारा रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों को निशुल्क 300 शहतूत के पेड़ निशुल्क दिया जाता है साथी ही बहुत कम दरों में रेशम के कीट भी उपलब्ध कराए जाते हैं। एक बार पेड़ लग जाने के बाद उसको 20 साल तक उपयोग में लाया जा सकता है।
अरविंद लालोरिया का कहना है कि रेशम का उत्पादन साल में दो बार किया जा सकता है। रेशम उत्पादन के लिए मार्च ओर सितंबर का महीना सबसे अनुकूल मौसम होता है। रेशम का उत्पादन मात्र 28 से 30 दिन में किया जाता है। उनका कहना है कि रेशम कीट की ज़िन्दगी मात्र 30 दिन होती है ।विभाग द्वारा 10 दिन का किट ( यानी रेशम का कीड़ा) किसानों को दिया जाता है और मात्र 18 दिन किसान को इस किट को पालना पड़ता है। जिसके बाद रेशम तैयार हो जाते हैं ।

विभाग का कहना है कि एक किसान अगर रेशम उत्पादन का काम करता है तो अन्य खेती के साथ किसान साल में 15 हजार से 20 हजार तक की आमदनी अलग से कर सकता है।

उन्होंने बताया कि 2017-18 उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में 2000 किसान रेशम उत्पादन से जुड़े हुए थे जो बढ़कर इस वर्ष 2340 हो गया है। उधम सिंह नगर में 989 किसान रेशम उत्पादन से जुड़े हैं जबकि नैनीताल जिले में 825 उत्पादक रेशम का उत्पादन कर रहे हैं।

3 प्रजाति के रेशम तैयार किए जाते हैं




Conclusion:उत्तराखंड में तीन प्रजाति के रेशम तैयार किए जाते हैं सबसे ज्यादा शाहतूती रेशम का उत्पादन होता है जबकि अरंडी रेशम का उत्पादन उधम सिंह नगर में सबसे ज्यादा है। जबकि ओक टसर रेशम का उत्पादन मणिपुरी बास से किया जाता है जो पहाड़ों में किया जाता है।
फिलहाल रेशम उत्पादन के लिए सरकार किसानों को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं भी चला रही है जिसके तहत किसानों को सब्सिडी भी उपलब्ध कराया जा रहा है।

बाइट- अरविंद लालोरिया उपनिदेशक रेशम विभाग हल्द्वानी
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