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Shardiya Navratri 2022: पहले दिन होगी मां शैलपुत्री की पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि - ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी

कल से शारदीय नवरात्रि 2022 की शुरुआत हो रही है. पहले दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में मां शैलपुत्री की पूजा होगी. पहले दिन ही कलश स्थापना की होगी. ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी से जानिए पूजा का कलश स्थाना का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि.

Shardiya Navratri 2022
शारदीय नवरात्रि 2022
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Published : Sep 26, 2022, 4:02 AM IST

हल्द्वानी: आज शारदीय नवरात्रि का पहला दिन है. नवरात्रि में 9 दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है. मान्यता है कि नौ दिन तक देवी दुर्गा के 9 रूपों की पूजा करने से अलग-अलग विशेष लाभ मिलते हैं. शारदीय नवरात्रि के पहले दिन यानी कि अश्विन प्रतिपदा तिथि पर मां शैलपुत्री (Maa shailputri) की पूजा का विधान है. मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की संतान हैं. शैल अर्थात अडिग (दृढ़ता) का प्रतीक हैं. मां दुर्गा से संपर्क साधने के लिए जातक का विश्वास भी अडिग होना चाहिए, तभी भक्ति का फल मिलता है. मां शैलपुत्री सभी पशु-पक्षियों, जीव की रक्षक मानी जाती हैं.

शारदीय नवरात्रि 2022 (Sharadiya Navratri 2022) की शुरुआत आज से होने जा रही है, जो 5 अक्टूबर तक मनाई जाएगी. इस बार नवरात्रि पूरे नौ दिन के रहेंगे. तीन अक्टूबर को अष्टमी व चार को नवमी पूजन होगा. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है.

ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी से जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि.

हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है, हिंदू मान्यता के अनुसार वर्ष में चार नवरात्रि आती हैं लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि की विशेष महत्व है. इस बार नवरात्रि बृहस्पति और चंद्रमा की स्थिति से नवरात्र गजकेसरी योग में प्रारंभ हो रहे हैं. इसलिए सभी देशवासियों के लिए लाभ देने वाला रहेगा.

ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी (Astrologer Dr Naveen Chandra Joshi) के मुताबिक कलश स्थापना के साथ पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाएगी. इस साल मां दुर्गा हाथी की सवारी पर पृथ्वी लोक में पधारेंगी.

कलश स्थापना मुहूर्त: ज्योतिष के अनुसार 26 सितंबर से नवरात्रि प्रारंभ हो रही है, जहां प्रथम दिन कलश, घट स्थापन की जाएगी. कलश स्थापन के लिए प्रातः काल कन्या लग्न में शुभ मुहूर्त सुबह 8 बजकर 34 मिनट से लेकर 12 बजकर 36 मिनट तक हस्त नक्षत्र ब्रह्म योग में कलश स्थापन का अति विशेष मुहूर्त बन रहा है. इसके अलावा आप अभिजीत मुहूर्त में भी कलश स्थापना कर सकते हैं.

कलश स्थापित करने की दिशा और स्थान: नवरात्रि में मां भगवती के मूर्ति के अलावा मिट्टी, पीतल और तांबा के कलश में नारियल से मां भगवती रूपी कलश की स्थापना कर सकते हैं. सुबह उठकर निवृत्त होकर कलश को उत्तर या फिर उत्तर पूर्व दिशा में रखें, जहां कलश बैठाना हो, उस स्थान पर पहले गंगाजल के छिड़ककर उस जगह को पवित्र कर लें. इस स्थान पर दो इंच तक मिट्टी में रेत और सप्तमृतिका मिलाकर एक सार बिछा लें. कलश पर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और सिंदूर का टीक लगाएं. विधि विधान से मां भगवती के कलश का स्थापना करें.
पढ़ें- नानकमत्ता का नाम श्री नानकमत्ता साहिब होगा, CM धामी का ऐलान

नौ रूपों में होगी मां भगवती की आराधना: नवरात्र में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. ये सभी मां के नौ स्वरूप हैं. प्रथम दिन घट स्थापना होती है, शैलपुत्री को प्रथम देवी के रूप में पूजा जाता है.

नवरात्र में पहले दिन मां शैलपुत्री देवी को देसी घी, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी देवी को शक्कर, सफेद मिठाई, मिश्री और फल, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा देवी को मिठाई और खीर, चौथे दिन मां कुष्मांडा देवी को मालपुआ, पांचवें दिन मां स्कंदमाता देवी को केला, छठवें दिन मां कात्यायनी देवी को शहद, सातवें दिन मां कालरात्रि देवी को गुड़, आठवें दिन मां महागौरी देवीको नारियल, नौवें दिन मां सिद्धिदात्री देवी अनार और तिल का भोग लगाने से मां शीघ्र प्रसन्न होती हैं. नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्रत और पूजा का विशेष महत्व बताया गया है.

हल्द्वानी: आज शारदीय नवरात्रि का पहला दिन है. नवरात्रि में 9 दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है. मान्यता है कि नौ दिन तक देवी दुर्गा के 9 रूपों की पूजा करने से अलग-अलग विशेष लाभ मिलते हैं. शारदीय नवरात्रि के पहले दिन यानी कि अश्विन प्रतिपदा तिथि पर मां शैलपुत्री (Maa shailputri) की पूजा का विधान है. मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की संतान हैं. शैल अर्थात अडिग (दृढ़ता) का प्रतीक हैं. मां दुर्गा से संपर्क साधने के लिए जातक का विश्वास भी अडिग होना चाहिए, तभी भक्ति का फल मिलता है. मां शैलपुत्री सभी पशु-पक्षियों, जीव की रक्षक मानी जाती हैं.

शारदीय नवरात्रि 2022 (Sharadiya Navratri 2022) की शुरुआत आज से होने जा रही है, जो 5 अक्टूबर तक मनाई जाएगी. इस बार नवरात्रि पूरे नौ दिन के रहेंगे. तीन अक्टूबर को अष्टमी व चार को नवमी पूजन होगा. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है.

ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी से जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि.

हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है, हिंदू मान्यता के अनुसार वर्ष में चार नवरात्रि आती हैं लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि की विशेष महत्व है. इस बार नवरात्रि बृहस्पति और चंद्रमा की स्थिति से नवरात्र गजकेसरी योग में प्रारंभ हो रहे हैं. इसलिए सभी देशवासियों के लिए लाभ देने वाला रहेगा.

ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी (Astrologer Dr Naveen Chandra Joshi) के मुताबिक कलश स्थापना के साथ पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाएगी. इस साल मां दुर्गा हाथी की सवारी पर पृथ्वी लोक में पधारेंगी.

कलश स्थापना मुहूर्त: ज्योतिष के अनुसार 26 सितंबर से नवरात्रि प्रारंभ हो रही है, जहां प्रथम दिन कलश, घट स्थापन की जाएगी. कलश स्थापन के लिए प्रातः काल कन्या लग्न में शुभ मुहूर्त सुबह 8 बजकर 34 मिनट से लेकर 12 बजकर 36 मिनट तक हस्त नक्षत्र ब्रह्म योग में कलश स्थापन का अति विशेष मुहूर्त बन रहा है. इसके अलावा आप अभिजीत मुहूर्त में भी कलश स्थापना कर सकते हैं.

कलश स्थापित करने की दिशा और स्थान: नवरात्रि में मां भगवती के मूर्ति के अलावा मिट्टी, पीतल और तांबा के कलश में नारियल से मां भगवती रूपी कलश की स्थापना कर सकते हैं. सुबह उठकर निवृत्त होकर कलश को उत्तर या फिर उत्तर पूर्व दिशा में रखें, जहां कलश बैठाना हो, उस स्थान पर पहले गंगाजल के छिड़ककर उस जगह को पवित्र कर लें. इस स्थान पर दो इंच तक मिट्टी में रेत और सप्तमृतिका मिलाकर एक सार बिछा लें. कलश पर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और सिंदूर का टीक लगाएं. विधि विधान से मां भगवती के कलश का स्थापना करें.
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नौ रूपों में होगी मां भगवती की आराधना: नवरात्र में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. ये सभी मां के नौ स्वरूप हैं. प्रथम दिन घट स्थापना होती है, शैलपुत्री को प्रथम देवी के रूप में पूजा जाता है.

नवरात्र में पहले दिन मां शैलपुत्री देवी को देसी घी, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी देवी को शक्कर, सफेद मिठाई, मिश्री और फल, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा देवी को मिठाई और खीर, चौथे दिन मां कुष्मांडा देवी को मालपुआ, पांचवें दिन मां स्कंदमाता देवी को केला, छठवें दिन मां कात्यायनी देवी को शहद, सातवें दिन मां कालरात्रि देवी को गुड़, आठवें दिन मां महागौरी देवीको नारियल, नौवें दिन मां सिद्धिदात्री देवी अनार और तिल का भोग लगाने से मां शीघ्र प्रसन्न होती हैं. नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्रत और पूजा का विशेष महत्व बताया गया है.

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