हल्द्वानीः आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा से सर्दी की शुरुआत हो जाती है. वैसे तो पूर्णिमा मनाया जाना शुभ माना जाता है. लेकिन, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का विशेष महत्व माना जाता है.
शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. ऐसे में शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी और महागौरी की पूजा का विशेष महत्व है. इस साल यह पूर्णिमा 19 अक्टूबर दिन मंगलवार को शाम 8:45 बजे से शुरू होकर 20 अक्टूबर सूर्यास्त तक रहेगा. ऐसे में मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन रात्रि अमृत वर्षा होती है. इस दिन खीर बनाकर चांदी की कटोरी में चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है. मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में पड़ने से यह कई गुणकारी और लाभकारी हो जाती है, जो खाने से रोग नाशक के साथ-साथ सभी कष्टों को दूर करने वाला होता है.
ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक इस बार कोजागरी पूर्णिमा 19 अक्टूबर मंगलवार शाम 8:45 बजे से शरद पूर्णिमा शुरू होकर 20 अक्टूबर सूर्यास्त तक रहेगा. 19 अक्टूबर रात्रि शरद पूर्णिमा का विशेष योग्य बन रहा है. शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सबसे खास माना जाता है. इस दिन चंद्र पूजा का भी विशेष महत्व है.
स्नान-दान का विशेष महत्वः पौराणिक मान्यता के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन ही महालक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, जो भी भक्त शरद पूर्णिमा पर श्रद्धा से महालक्ष्मी की आराधना करता है उसपर महालक्ष्मी की कृपा बरसती है. शरद पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा के साथ-साथ उस दिन दान पुण्य करने का भी विशेष महत्व है. 20 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का स्नान-दान का विशेष महत्व रहेगा.
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चंद्रमा की किरणें करती हैं अमृत वर्षाः ज्योतिषाचार्य नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होती है. उस दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणें अमृत की वर्षा करती है. शरद पूर्णिमा की रात्रि को चांदी के कटोरी में खीर को पूरी रात चंद्रमा के सामने रखने के बाद सुबह उसे ग्रहण करने से सभी तरह के रोगों से मुक्ति के साथ-साथ फलदाई रहता है.
बुधवार को रखा जाएगा व्रतः ज्योतिषाचार्य नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक 20 अक्टूबर बुधवार को शरद पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा. जहां विधि विधान से स्नान दान के साथ-साथ महालक्ष्मी की पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सदा के लिए लक्ष्मी धनलक्ष्मी के रूप में उस घर में विराजमान होती है.