ETV Bharat / state

कश्यप समाज की ये पूजा होती है खास, देवता के नाराज होने से प्रभावित होता है रोजगार

कश्यप समाज के लोग रोजगार में उन्नति और घर में सुख-शांति के लिए पूजा-अर्चना करते हैं. समाज के लोग जिससे कोसी नदी में ज्यादा पानी और मछलियां आने की कामना करते हैं.

पूजा-अर्चना करते कश्यप समाज के लोग.
author img

By

Published : Jul 16, 2019, 2:51 PM IST

रामनगर: कश्यप समाज के लोगों ने सावन से पहले दरिया बादशाह की पूजा- अर्चना की. पूजा रोजगार में उन्नति और घर में सुख-शांति के लिए की जाती है. कश्यप समाज में पूजा पाठ की ये परंपरा अतीत से चली आ रही है. पूजा में दरिया बादशाह को भोग लगाकर उपासना की जाती है.

कश्यप समाज के लोग कोसी नदी से मछलियां पकड़कर अपने परिवार का भरन पोषण करते रहे हैं. सावन से पहले समाज के लोग रोजगार में उन्नति और घर में सुख-शांति के लिए पूजा-अर्चना करते हैं. समाज के लोग कोसी नदी में ज्यादा पानी और मछलियां आने की कामना करते हैं. जिससे उनका रोजगार साल भर अच्छा चल सके. कश्यप समाज का मानना है कि ये प्रथा कई दर्शकों से उनके पूर्वजों द्वारा चलती जा रही है.

पूजा करते कश्यप समाज के लोग.

पढ़ें-ऋषिकेश: लक्ष्मणझूला पुल पूरी तरह से बंद, प्रशासन ने किया सील

अतीत की इस परंपरा को आज भी वे संजोए हुए हैं. कश्यप समाज के लोगों की मानें तो बीच में बकरे की बलि देने की जगह कान काटकर छोड़ दिया जाता था. जिसका असर यह हुआ कि कश्यप समाज का मछलियों से जुड़ा रोजगार ठप हो गया और समाज को भूखे मरने की नौबत आ गई. जिससे बुजुर्गों के कहने पर आज बकरे की बलि की प्रथा दोबारा शुरू की गई है. ताकि उनका रोजगार फिर से फल-फूल सके. हर साल होने वाली पूजा अर्चना में बकरा चढ़ाकर, हवन किया जाता है.

इस दौरान भंडारे का भी आयोजन किया जाता है. इसी के चलते रामनगर की कोसी नदी किनारे कश्यप समाज के लोगों ने एकत्र होकर दरिया बादशाह की सच्चे मन से उपासना की. जिसमें समाज के लोगों ने बढ़- चढ़ कर भाग लिया.

रामनगर: कश्यप समाज के लोगों ने सावन से पहले दरिया बादशाह की पूजा- अर्चना की. पूजा रोजगार में उन्नति और घर में सुख-शांति के लिए की जाती है. कश्यप समाज में पूजा पाठ की ये परंपरा अतीत से चली आ रही है. पूजा में दरिया बादशाह को भोग लगाकर उपासना की जाती है.

कश्यप समाज के लोग कोसी नदी से मछलियां पकड़कर अपने परिवार का भरन पोषण करते रहे हैं. सावन से पहले समाज के लोग रोजगार में उन्नति और घर में सुख-शांति के लिए पूजा-अर्चना करते हैं. समाज के लोग कोसी नदी में ज्यादा पानी और मछलियां आने की कामना करते हैं. जिससे उनका रोजगार साल भर अच्छा चल सके. कश्यप समाज का मानना है कि ये प्रथा कई दर्शकों से उनके पूर्वजों द्वारा चलती जा रही है.

पूजा करते कश्यप समाज के लोग.

पढ़ें-ऋषिकेश: लक्ष्मणझूला पुल पूरी तरह से बंद, प्रशासन ने किया सील

अतीत की इस परंपरा को आज भी वे संजोए हुए हैं. कश्यप समाज के लोगों की मानें तो बीच में बकरे की बलि देने की जगह कान काटकर छोड़ दिया जाता था. जिसका असर यह हुआ कि कश्यप समाज का मछलियों से जुड़ा रोजगार ठप हो गया और समाज को भूखे मरने की नौबत आ गई. जिससे बुजुर्गों के कहने पर आज बकरे की बलि की प्रथा दोबारा शुरू की गई है. ताकि उनका रोजगार फिर से फल-फूल सके. हर साल होने वाली पूजा अर्चना में बकरा चढ़ाकर, हवन किया जाता है.

इस दौरान भंडारे का भी आयोजन किया जाता है. इसी के चलते रामनगर की कोसी नदी किनारे कश्यप समाज के लोगों ने एकत्र होकर दरिया बादशाह की सच्चे मन से उपासना की. जिसमें समाज के लोगों ने बढ़- चढ़ कर भाग लिया.

Intro:summary- कश्यप समाज अथवा मछुआरे जाती के लोग अपने रोजगार की उन्नति और घर में सुख शांति के लिए नदी किनारे हर वर्ष अषाढ़ माह के प्रथम सप्ताह दरिया बादशाह नामक पूजा करते हैं सदियों से इस समाज के लोग इस पूजा की प्रथा बनाये हुए हैं। इस पूजा में दरिया बादशाह को बलि और पकवानों का भोग लगाया जाता है।

intro- रामनगर में वर्षों से होती चली आ रही है एक अनोखी पूजा जिसे एक समाज अपनी रोजी-रोटी और घर में सुख शांति बनी रहे इसके लिए नदी किनारे की जाती है दरिया बादशाह नामक पूजा।


Body:vo.- रामनगर में रहने वाला कश्यप समाज अथवा मछुआरे जाति के लोग नदी में पानी की कभी कमी ना हो और नदी में रहने वाली मछलियों की पैदावार में कमी ना आए इसके लिए दरिया बादशाह की पूजा की जाती है। दरिया बादशाह को प्रसन्न करने के लिए अषाढ़ माह के प्रथम सप्ताह में नदी किनारे जाकर पूजा-अर्चना की जाती है। इस पूजा में दरिया बादशाह को भोग लगाने के लिए भोजन के साथ मिठाई भी बनाई जाती है और बकरे की बलि भी दी जाती है। इस पूजा का मकसद नदी में पानी और मछलियो की कभी कमी न हो सके और मछुआरे जाती का मछलियां पकड़ने का कारोबार निरंतर चलता रहे और घर परिवार में सुख शांति बनी रहे वर्ष भर में एक बार दरिया बादशाह की पूजा की जाती है। कश्यप समाज का मानना है कि यहां प्रथा कई दर्शकों से उनके पुरखों द्वारा चलती जा रही है। पुरखों की प्रथम प्रथा को वह निभा रहे हैं और उनके बाद नई पीढ़ी इस प्रथा को कायम रखेगी। कश्यप समाज के लोगों की माने तो बीच में बकरे की बलि देने की जगह कान काट कर छोड़ दिया जाता था जिसका असर यह हुआ कि कश्यप समाज का मछलियों से जुड़ा रोजगार ठप हो गया और कश्यप समाज को भूखों मरने की नौबत आ गई। जिससे बाद पुराने बुजुर्गों ने कहने पर आज बकरे की बलि दी गई है ताकि उनका रोजगार फिर से फल-फूल सके। इन लोगों का मानना है कि बकरे की बलि देने से दरिया बादशाह खुश होते हैं। इसी के चलते रामनगर की कोसी नदी किनारे कश्यप समाज के लोगों ने एकत्र होकर बली और पूजा अर्चना कर दरिया बादशाह को प्रसन्न रखने का प्रयास किया।

byte-1- हेतराम कश्यप (मछुआरा)
byte-2- चंद्रसेन कश्यप (चौधरी,कश्यप समाज)




Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.