नैनीताल: सरोवर नगरी नैनीताल स्थित मां पाषाण देवी और मां नैना देवी मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. माना जाता है कि मां पाषाण देवी मंदिर में देवी के नौ रूपों के दर्शन होते हैं. जहां स्थानीय लोगों के साथ ही देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु पहुंचते हैं. लोगों का मानना है कि यहां सच्चे मन से मां की उपासना करने से हर मुराद पूरी होती है.
विशेष तौर पर नवरात्र के नौवें दिन मां पाषाण देवी और मां नैना देवी मंदिर का महत्व बढ़ जाता है. क्योंकि मां पाषाण देवी मंदिर में मां भगवती के सभी नौ स्वरूपों को एक साथ दर्शन होते हैं. जिसके दर्शन के लिए भक्तों का सुबह से ही मां पाषाण देवी मंदिर में आना शुरू हो जाता है. मां पाषाण देवी का मंदिर नैनी झील किनारे चट्टान पर कुदरती आकृति से बनी हुई हैं. जहां पिंडी रूप में माता के नौ स्वरूप मानें जाते हैं. इस मंदिर में माता को सिंदूर और चोला पहनाया जाता है.
साथ मान्यता है कि मां की पादुका नैनी झील के अंदर हैं. इसलिए झील के जल को कैलाश मानसरोवर की तरह पवित्र माना जाता है. वहीं श्रद्धालु नैनी सरोवर का जल घर ले जाते हैं. मान्यता है कि अगर जल को घर में रखे तो सुख शांति बनी रहती है. साथ ही इसके प्रयोग से किसी प्रकार की बीमारी नहीं होती. पाषाण देवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ब्रिटिश काल में एक अंग्रेज ऑफसर मंदिर के पास से गुजर रहा था और उसको मां की मूर्ति पसंद नहीं आई और उसने मां के मूर्ति को खंडित करना चाहा, जिसके बाद वे अंग्रेज ऑफसर मंदिर से आगे नहीं बढ़ सका.
जिसके बाद अंग्रेज ऑफसर को अपनी गलती का एहसास हुआ. उसने स्थानीय महिलाओं के सहयोग से माता को सिंदूर का चोला पहनाया और माफी मांगी जिसके बाद ही अंग्रेज ऑफसर मंदिर से आगे बढ़ सका. जिसके बाद से मां पाषाण देवी को सिंदूर के रुप मे चोला चढ़ाया जाता है. साथ ही प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को मां को श्रृंगार में चोला पहनाने की परंपरा भी है. नवरात्रि के दौरान माता नव दुर्गा के रूप में वैष्णव विधि से पूजा अर्चना होती है जिसमें माता को शंख से जल से स्नान कराया जाता है. मान्यता है कि मां को स्नान कराए गए पानी के प्रयोग से समस्त त्वचा रोग दूर हो जाते हैं. साथ ही बुरी आत्माओं के प्रकोप से भी बचाव होता है, जिसे लेने श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं.