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पहाड़ के लिए वरदान ऑर्गेनिक सेब, युवा काश्तकारों को मिल रही मनचाही कीमत

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Published : Aug 9, 2020, 1:42 PM IST

Updated : Aug 9, 2020, 3:19 PM IST

पहाड़ों में इंडो डच तकनीक से विकसित किए गए सेब की बागवानी युवाओं के लिए लाभदायक साबित हो रही है. इस ऑर्गेनिक सेब की बागवानी कर युवा काश्तकारों को काफी अच्छा मुनाफा हो रहा है.

ऑर्गेनिक सेब
ऑर्गेनिक सेब

हल्द्वानी: नैनीताल जिले में फल पट्टी के नाम से प्रख्यात रामगढ़, धनचुली, भीमताल, नाथुवाखान और मुक्तेश्वर अपने फलों के लिए अलग पहचान रखते हैं. सर्दियों से यहां सेब, खुमानी, पुलम, नाशपाती आदि की पारंपरिक खेती की जाती है. पिछले कुछ सालों से यहां के फल उद्योग का स्तर गिर गया था, लेकिन अब यहां के युवा किसान सेब की ऑर्गेनिक बागवानी कर हिमाचली सेब को टक्कर दे रहे हैं.

मुक्तेश्वर के रहने वाले युवा काश्तकार गौरव शर्मा ने बताया कि पहाड़ के युवा खेतीबाड़ी छोड़ नौकरी करने के लिए पहाड़ से पलायन कर रहे हैं. ऐसे में वो एक एकड़ से भी कम खेत में सेब की ऑर्गेनिक बागवानी कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. गौरव ने बताया कि उन्होंने ऑर्गेनिक हाई डेंसिटी एप्पल ऑर्चर्ड लगाया है. इंडो डच तकनीक से 8 वैरायटियों का उत्पादन शुरू कर दिया है. युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने के लिए गौरव शर्मा का प्रयास मील का पत्थर साबित हो सकता है.

पहाड़ के लिए वरदान ऑर्गेनिक सेब.

सेब की खेती पहाड़ से पलायन रोने में मददगार

गौरव ने बताया कि सेब के पौधे लगाने के महज 13 महीने में सेब की बेहतरीन बागवानी कर रोजगार को अपनाने का काम कर रहे हैं. आमतौर पर फलदार वृक्ष का पौधा लगाने के बाद वो 8 साल में फल देता है, लेकिन इस खेती से डेढ़ से दो साल में फल मिलने शुरू हो जाता हैं. उन्होंने बताया कि पहाड़ में छोटी जोत के किसान इस तरह की बागवानी को कर सकते हैं. ऑर्गेनिक सेब की बागवानी उत्तराखंड से युवाओं का पलायन रोकने में एक कारगर साबित हो सकती है. उन्होंने बताया कि महज 13 महीने में एक सेब के पेड़ से 5 किलो फल प्राप्त होता है. यहां के काश्तकारों को सेब की कीमत ₹150 से ₹200 प्रति किलो तक मिल रही है.

क्या है हाई डेंसिटी एप्पल ऑर्चर्ड?

  • सेब के ये पेड़ रुट स्टॉक जो उच्च तकनीक के पौधे होते हैं.
  • ये पौधे स्कार्टलेट, स्पर 2, रेड कॉर्न, सुपर चीफ, ग्रीनी स्मिथ, रेड स्पर डेलिशियस और रेडलम गाला प्रजाति के लगाए जाते हैं.
  • इन पेड़ों के सपोर्ट के लिये तार और पोल लगाए जाते हैं.
  • इनकी अधिकतम दूरी 3 फीट होती है, जबकि पेड़ों की अधिकतम ऊंचाई 8 फीट होती है.
  • ये पेड़ दूसरे साल में ही फल देना शुरू कर देते हैं.
  • ये सभी प्रजातियां न्यूजीलैंड, हॉलैंड, जर्मनी और इटली में भी प्रचलित है.
  • इन सेब की प्रजाति को सोलर फेंसिंग और हेल नेट का प्रयोग किया जाता है.
  • सोलर फेंसिंग में हूटर का भी प्रयोग किया जाता है जिससे जंगली जानवर उसकी आवाज सुनकर नहीं आते हैं.

पढ़ें- हल्द्वानी: लोकपाल नियुक्ति पर संजीव चतुर्वेदी ने केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब

उत्तराखंड के सेब को मिलेगी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान- मनोज साह

हल्द्वानी मंडी समिति के अध्यक्ष मनोज साह के मुताबिक नैनीताल जनपद के युवा काश्तकार अब हिमाचल की तर्ज पर सेब की बागवानी के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि सेब को स्टोर करने के लिए हल्द्वानी मंडी परिषद द्वारा जल्द ही कोल्ड स्टोर की व्यवस्था कराई जाएगी, जिससे कि उत्तराखंड के सेब को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सके. उन्होंने कहा कि सेब की इंडो डच तकनीक के बारे में वो शासन-प्रशासन को अवगत कराएंगे, जिससे जिले में किसान आत्मनिर्भर बन सके.

मनोज साह के मुताबिक इंडो डच तकनीक से विकसित किए गए सेब के गाला, डेलिशियस (सुपर चीफ) समेत कुल 8 वैरायटी के पौधे तैयार किए गए हैं, जिसमें 100 प्रतिशत सर्टिफाइड ऑर्गेनिक एप्पल फार्मिंग है. उन्होंने बताया कि एक नाली में 60 से 70 सेब के पेड़ लग सकते हैं. सेब से पेड़ में शुरूआती दौर में करीब 5 किलो सेब निकलता है. उस हिसाब से एक नाली में काश्तकार को करीब 1 लाख रुपये तक का फायदा हो सकता है. राज्य सरकार का पहाड़ के युवाओं को स्वरोजगार से जोड़कर 'आत्मनिर्भर' बनाने का प्रयास तभी साकार होगा जब गौरव शर्मा जैसे सफल काश्तकारों की कहानी सबसे सामने लाई जाएगी.

हल्द्वानी: नैनीताल जिले में फल पट्टी के नाम से प्रख्यात रामगढ़, धनचुली, भीमताल, नाथुवाखान और मुक्तेश्वर अपने फलों के लिए अलग पहचान रखते हैं. सर्दियों से यहां सेब, खुमानी, पुलम, नाशपाती आदि की पारंपरिक खेती की जाती है. पिछले कुछ सालों से यहां के फल उद्योग का स्तर गिर गया था, लेकिन अब यहां के युवा किसान सेब की ऑर्गेनिक बागवानी कर हिमाचली सेब को टक्कर दे रहे हैं.

मुक्तेश्वर के रहने वाले युवा काश्तकार गौरव शर्मा ने बताया कि पहाड़ के युवा खेतीबाड़ी छोड़ नौकरी करने के लिए पहाड़ से पलायन कर रहे हैं. ऐसे में वो एक एकड़ से भी कम खेत में सेब की ऑर्गेनिक बागवानी कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. गौरव ने बताया कि उन्होंने ऑर्गेनिक हाई डेंसिटी एप्पल ऑर्चर्ड लगाया है. इंडो डच तकनीक से 8 वैरायटियों का उत्पादन शुरू कर दिया है. युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने के लिए गौरव शर्मा का प्रयास मील का पत्थर साबित हो सकता है.

पहाड़ के लिए वरदान ऑर्गेनिक सेब.

सेब की खेती पहाड़ से पलायन रोने में मददगार

गौरव ने बताया कि सेब के पौधे लगाने के महज 13 महीने में सेब की बेहतरीन बागवानी कर रोजगार को अपनाने का काम कर रहे हैं. आमतौर पर फलदार वृक्ष का पौधा लगाने के बाद वो 8 साल में फल देता है, लेकिन इस खेती से डेढ़ से दो साल में फल मिलने शुरू हो जाता हैं. उन्होंने बताया कि पहाड़ में छोटी जोत के किसान इस तरह की बागवानी को कर सकते हैं. ऑर्गेनिक सेब की बागवानी उत्तराखंड से युवाओं का पलायन रोकने में एक कारगर साबित हो सकती है. उन्होंने बताया कि महज 13 महीने में एक सेब के पेड़ से 5 किलो फल प्राप्त होता है. यहां के काश्तकारों को सेब की कीमत ₹150 से ₹200 प्रति किलो तक मिल रही है.

क्या है हाई डेंसिटी एप्पल ऑर्चर्ड?

  • सेब के ये पेड़ रुट स्टॉक जो उच्च तकनीक के पौधे होते हैं.
  • ये पौधे स्कार्टलेट, स्पर 2, रेड कॉर्न, सुपर चीफ, ग्रीनी स्मिथ, रेड स्पर डेलिशियस और रेडलम गाला प्रजाति के लगाए जाते हैं.
  • इन पेड़ों के सपोर्ट के लिये तार और पोल लगाए जाते हैं.
  • इनकी अधिकतम दूरी 3 फीट होती है, जबकि पेड़ों की अधिकतम ऊंचाई 8 फीट होती है.
  • ये पेड़ दूसरे साल में ही फल देना शुरू कर देते हैं.
  • ये सभी प्रजातियां न्यूजीलैंड, हॉलैंड, जर्मनी और इटली में भी प्रचलित है.
  • इन सेब की प्रजाति को सोलर फेंसिंग और हेल नेट का प्रयोग किया जाता है.
  • सोलर फेंसिंग में हूटर का भी प्रयोग किया जाता है जिससे जंगली जानवर उसकी आवाज सुनकर नहीं आते हैं.

पढ़ें- हल्द्वानी: लोकपाल नियुक्ति पर संजीव चतुर्वेदी ने केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब

उत्तराखंड के सेब को मिलेगी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान- मनोज साह

हल्द्वानी मंडी समिति के अध्यक्ष मनोज साह के मुताबिक नैनीताल जनपद के युवा काश्तकार अब हिमाचल की तर्ज पर सेब की बागवानी के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि सेब को स्टोर करने के लिए हल्द्वानी मंडी परिषद द्वारा जल्द ही कोल्ड स्टोर की व्यवस्था कराई जाएगी, जिससे कि उत्तराखंड के सेब को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सके. उन्होंने कहा कि सेब की इंडो डच तकनीक के बारे में वो शासन-प्रशासन को अवगत कराएंगे, जिससे जिले में किसान आत्मनिर्भर बन सके.

मनोज साह के मुताबिक इंडो डच तकनीक से विकसित किए गए सेब के गाला, डेलिशियस (सुपर चीफ) समेत कुल 8 वैरायटी के पौधे तैयार किए गए हैं, जिसमें 100 प्रतिशत सर्टिफाइड ऑर्गेनिक एप्पल फार्मिंग है. उन्होंने बताया कि एक नाली में 60 से 70 सेब के पेड़ लग सकते हैं. सेब से पेड़ में शुरूआती दौर में करीब 5 किलो सेब निकलता है. उस हिसाब से एक नाली में काश्तकार को करीब 1 लाख रुपये तक का फायदा हो सकता है. राज्य सरकार का पहाड़ के युवाओं को स्वरोजगार से जोड़कर 'आत्मनिर्भर' बनाने का प्रयास तभी साकार होगा जब गौरव शर्मा जैसे सफल काश्तकारों की कहानी सबसे सामने लाई जाएगी.

Last Updated : Aug 9, 2020, 3:19 PM IST
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