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जमीन में रखी मां शीतला की मूर्ति को उठा नहीं पाए थे ग्रामीण, आस्था पर चमत्कार पड़ा भारी - , worship of Chandraghanta

देवभूमि के मंदिरों में देवी के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा हो रही है. ऐसा ही एक मां शीतला देवी का मंदिर है, जहां सुबह से ही भक्त मां की आराधना कर रहे हैं. मां शीतला की जो भी सच्चे मन से आराधना करता है, मां उसकी हर मनोकामना पूरी करती हैं.

मां चंद्रघंटा
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Published : Oct 1, 2019, 10:59 AM IST

Updated : Oct 1, 2019, 7:13 PM IST

हल्द्वानी: नैनीताल जिले के काठगोदाम की ऊंची पहाड़ियों पर स्थित मां शीतला देवी का पौराणिक मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. वैसे तो यहां श्रद्धालुओं की भीड़ हमेशा रहती है, लेकिन नवरात्रि में इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है. नवरात्रि में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचकर मां शीतला का आशीर्वाद लेकर अपने परिवार की सुख शांति की कामना करते हैं.

कहा जाता है कि साल 1892 में हल्द्वानी-अल्मोड़ा मोटर मार्ग के निर्माण से पहले बदरीनाथ, केदारनाथ और जागेश्वर की यात्रा करने वाले सभी यात्री काठगोदाम होते हुए जाते थे. उस समय कोई वाहन नहीं होता था. घोड़ा, खच्चरों के माध्यम से लोग यात्रा करते थे. यात्रा के दौरान आने वाले सभी श्रद्धालु और यात्री मंदिर के पीछे बने बाजार में विश्राम करते थे. यह बाजार तत्कालीन चंद राजा द्वारा लगाया जाता था.

नवरात्रि का आज तीसरा दिन, मां चंद्र घंटा की हो रही पूजा

बात साल 1892 की है, जब भीमताल क्षेत्र के पांडे गांव के लोग अपने गांव में मां शीतला देवी की मूर्ति स्थापना करने के लिए बनारस से मां शीतला देवी की मूर्ति लाए. मां शीतला देवी की मूर्ति को हरिद्वार में स्नान कराने के बाद ग्रामीण भीमताल पांडे गांव ले जा रहे थे, रात होने की वजह से ग्रामीणों ने देवी की मूर्ति को विश्राम के लिए काठगोदाम के गुलाब घाटी में बांज के पेड़ के नीचे रखा.

ग्रामीण जब सुबह मूर्ति ले जाने के लिए मूर्ति को उठाने लगे तो मूर्ति नहीं उठी. जिसके बाद एक ग्रामीण के सपने में मां शीतला देवी आईं और उन्होंने वहीं पर मूर्ति स्थापना की बात कही. जिसके बाद पांडे गांव के लोगों ने मां शीतला देवी की मूर्ति की स्थापना वहीं पर कर दी.

पढ़ें- अवैध शराब तस्करी का गढ़ बनता जा रहा उत्तराखंड, देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

मान्यता है कि मार्कंडेय ऋषि ने इसी स्थान पर तप किया था. जिसके बाद से यहां मार्कंडेय कुंड बना. आज भी कुंड में हमेशा स्वच्छ जल भरा रहता है.

मां शीतला देवी को स्वच्छता की देवी कहा जाता है. स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ है. बताया गया है उनके हाथों में सूप, कलश, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण करती हैं. मां शीतला को चेचक आदि रोगों की देवी भी कहा जाता है.

हल्द्वानी: नैनीताल जिले के काठगोदाम की ऊंची पहाड़ियों पर स्थित मां शीतला देवी का पौराणिक मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. वैसे तो यहां श्रद्धालुओं की भीड़ हमेशा रहती है, लेकिन नवरात्रि में इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है. नवरात्रि में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचकर मां शीतला का आशीर्वाद लेकर अपने परिवार की सुख शांति की कामना करते हैं.

कहा जाता है कि साल 1892 में हल्द्वानी-अल्मोड़ा मोटर मार्ग के निर्माण से पहले बदरीनाथ, केदारनाथ और जागेश्वर की यात्रा करने वाले सभी यात्री काठगोदाम होते हुए जाते थे. उस समय कोई वाहन नहीं होता था. घोड़ा, खच्चरों के माध्यम से लोग यात्रा करते थे. यात्रा के दौरान आने वाले सभी श्रद्धालु और यात्री मंदिर के पीछे बने बाजार में विश्राम करते थे. यह बाजार तत्कालीन चंद राजा द्वारा लगाया जाता था.

नवरात्रि का आज तीसरा दिन, मां चंद्र घंटा की हो रही पूजा

बात साल 1892 की है, जब भीमताल क्षेत्र के पांडे गांव के लोग अपने गांव में मां शीतला देवी की मूर्ति स्थापना करने के लिए बनारस से मां शीतला देवी की मूर्ति लाए. मां शीतला देवी की मूर्ति को हरिद्वार में स्नान कराने के बाद ग्रामीण भीमताल पांडे गांव ले जा रहे थे, रात होने की वजह से ग्रामीणों ने देवी की मूर्ति को विश्राम के लिए काठगोदाम के गुलाब घाटी में बांज के पेड़ के नीचे रखा.

ग्रामीण जब सुबह मूर्ति ले जाने के लिए मूर्ति को उठाने लगे तो मूर्ति नहीं उठी. जिसके बाद एक ग्रामीण के सपने में मां शीतला देवी आईं और उन्होंने वहीं पर मूर्ति स्थापना की बात कही. जिसके बाद पांडे गांव के लोगों ने मां शीतला देवी की मूर्ति की स्थापना वहीं पर कर दी.

पढ़ें- अवैध शराब तस्करी का गढ़ बनता जा रहा उत्तराखंड, देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

मान्यता है कि मार्कंडेय ऋषि ने इसी स्थान पर तप किया था. जिसके बाद से यहां मार्कंडेय कुंड बना. आज भी कुंड में हमेशा स्वच्छ जल भरा रहता है.

मां शीतला देवी को स्वच्छता की देवी कहा जाता है. स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ है. बताया गया है उनके हाथों में सूप, कलश, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण करती हैं. मां शीतला को चेचक आदि रोगों की देवी भी कहा जाता है.

Intro:sammry- नवरात्रि स्पेशल- पौराणिक मंदिरों में एक मंदिर है मां शीतला देवी मंदिर चंद वंश के राजाओं 1892 में किया था स्थापना।

एंकर- देवभूमि उत्तराखंड देवी-देवताओं का निवास स्थान कहा जाता है उन्हें स्थानों में एक स्थान मां भगवती के शीतला के रूप में भी पूजा जाता है। मां शीतला को शीतलता की देवी कहा जाता है। नैनीताल जिले के काठगोदाम के ऊंची पहाड़ियों पर स्थित मां शीतला देवी का अलौकिक और पौराणिक विशाल मंदिर श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र है।मां शीतला के दर्शन करने वाले हर श्रद्धालु का मनोकामना पूर्ण होती है।



Body:काठगोदाम के पहाड़ियों पर स्थित मां शीतला देवी के मंदिर में ऐसे तो श्रद्धालुओं का भीड़ हमेशा उमड़ा रहता है लेकिन नवरात्रि में इस मंदिर का और महत्व बढ़ जाता है। नवरात्रि में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंच मां शीतला का आशीर्वाद लेकर अपने परिवार के सुख शांति की कामना करते हैं।


बताया जाता है कि सन 1892 में हल्द्वानी अल्मोड़ा मोटर मार्ग के निर्माण से पूर्व तक दक्षिण पूर्वी क्षेत्र एवं मैदानी क्षेत्र से बद्रीनाथ -केदारनाथ और जागेश्वर यात्रा करने वाले सभी यात्री काठगोदाम होते हुए जाया करते थे। उस समय कोई वाहन नहीं होता था घोड़ा खच्चरों के माध्यम से लोग यात्रा करते थे। यात्रा के दौरान आने वाले सभी श्रद्धालु और यात्री मंदिर के पीछे बने हाट बाजार में विश्राम किया करते थे। चंद राजा द्वारा हाट बाजार लगाई जाती थी।
बाइट -गिरीशचंद्र चंद मंदिर पुजारी

घटना 1892 की है जब नैनीताल जिले के भीमताल क्षेत्र के पांडे गांव के लोग अपने गांव में मां शीतला देवी की मूर्ति स्थापना करने के लिए बनारस से मां शीतला देवी की मूर्ति ला रहे थे। जिसके बाद मां शीतला देवी के मूर्ति को हरिद्वार में स्नान करने के बाद भीमताल पांडे गांव ले जा रहे थे रात होने के चलते। रात होने के चलते ग्रामीण मां शीतला देवी की मूर्ति को विश्राम के लिए काठगोदाम के गुलाब घाटी हाट बाजार के पास बाज के पेड़ के नीचे रखा। ग्रामीण सुबह जब मूर्ति ले जाने लगे तो मूर्ति नहीं उठी जिसके बाद यह ग्रामीण के सपने में मां शीतला देवी आई और उन्होंने वही मूर्ति स्थापना करने की बात कही। जिसके बाद पांडे गांव के लोगों ने मां शीतला देवी का मूर्ति का स्थापना वहीं पर कर दिया।


Conclusion: मान्यता है कि मार्कण्डेय ऋषि इसी स्थान पर तप किया था जिसके बाद से मार्कण्डेय कुंड बना और आज भी कुंड में हमेशा स्वच्छ जल भरा रहता है।

मां शीतला देवी को स्वच्छता की देवी कहा जाता हैं। स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ है बताया गया है उनके हाथों में सूप, कलश ,झाड़ू तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं
मां शीतला को चेचक आदि रोगों का देवी भी कहा जाता है।

वाइट -श्रद्धालु
बाइट -श्रद्धालु
Last Updated : Oct 1, 2019, 7:13 PM IST
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