हल्द्वानी: नैनीताल जिले के काठगोदाम की ऊंची पहाड़ियों पर स्थित मां शीतला देवी का पौराणिक मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. वैसे तो यहां श्रद्धालुओं की भीड़ हमेशा रहती है, लेकिन नवरात्रि में इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है. नवरात्रि में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचकर मां शीतला का आशीर्वाद लेकर अपने परिवार की सुख शांति की कामना करते हैं.
कहा जाता है कि साल 1892 में हल्द्वानी-अल्मोड़ा मोटर मार्ग के निर्माण से पहले बदरीनाथ, केदारनाथ और जागेश्वर की यात्रा करने वाले सभी यात्री काठगोदाम होते हुए जाते थे. उस समय कोई वाहन नहीं होता था. घोड़ा, खच्चरों के माध्यम से लोग यात्रा करते थे. यात्रा के दौरान आने वाले सभी श्रद्धालु और यात्री मंदिर के पीछे बने बाजार में विश्राम करते थे. यह बाजार तत्कालीन चंद राजा द्वारा लगाया जाता था.
बात साल 1892 की है, जब भीमताल क्षेत्र के पांडे गांव के लोग अपने गांव में मां शीतला देवी की मूर्ति स्थापना करने के लिए बनारस से मां शीतला देवी की मूर्ति लाए. मां शीतला देवी की मूर्ति को हरिद्वार में स्नान कराने के बाद ग्रामीण भीमताल पांडे गांव ले जा रहे थे, रात होने की वजह से ग्रामीणों ने देवी की मूर्ति को विश्राम के लिए काठगोदाम के गुलाब घाटी में बांज के पेड़ के नीचे रखा.
ग्रामीण जब सुबह मूर्ति ले जाने के लिए मूर्ति को उठाने लगे तो मूर्ति नहीं उठी. जिसके बाद एक ग्रामीण के सपने में मां शीतला देवी आईं और उन्होंने वहीं पर मूर्ति स्थापना की बात कही. जिसके बाद पांडे गांव के लोगों ने मां शीतला देवी की मूर्ति की स्थापना वहीं पर कर दी.
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मान्यता है कि मार्कंडेय ऋषि ने इसी स्थान पर तप किया था. जिसके बाद से यहां मार्कंडेय कुंड बना. आज भी कुंड में हमेशा स्वच्छ जल भरा रहता है.
मां शीतला देवी को स्वच्छता की देवी कहा जाता है. स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ है. बताया गया है उनके हाथों में सूप, कलश, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण करती हैं. मां शीतला को चेचक आदि रोगों की देवी भी कहा जाता है.