नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आज अपर व निजी सचिवों की वरिष्ठता को लेकर दिए गए पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. इस मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल के आदेश को निरस्त कर दिया है. ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में वेतनमान के आधार पर दी गयी अपर व निजी सचिवों की वरिष्ठता को निरस्त करते हुए संविलियन नियमावली 2002 के अनुसार अपर व निजी सचिवों के वरिष्ठता के आदेश दिए थे.
वहीं, पूर्व विभागों में की गई उनकी पूर्व सेवाओं की मौलिक नियुक्ति की तिथि से करते हुए वरिष्ठता निर्धारित करने के आदेश दिए थे. ट्रिब्यूनल के इस आदेश को अपर निजी सचिवों व प्रमुख निजी सचिवों आरएस देव, गोपाल नयाल व अन्य द्वारा याचिका दायर कर चुनौती दी गयी. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संविलियन के समय वे प्रतिवादी अपर निजी सचिवों हरिदत्त देवतल्ला, मदन मोहन भारद्वाज एवं 34 अन्य से उच्च वेतनमान प्राप्त कर रहे थे. जिस कारण वे वरिष्ठता नियमावली 2002 के अनुसार वरिष्ठ हैं.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ट्रिब्यूनल द्वारा संविलियन नियमावली की गलत व्याख्या की गई है. याचिकाकर्ता का 2004 में प्रमोशन हो चुका है. प्रतिवादियों द्वारा आज तक इसे कहीं भी चुनौती नहीं दी गयी. लिहाजा, ट्रिब्यूनल के आदेश को निरस्त किया जाये और उनकी वरिष्ठता को यथावत रखा जाये. इस मामले की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश थपलियाल व ललित सामन्त सरकार की ओर से स्पेशल काउंसिल वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत ने की.
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तीन सप्ताह में जवाब पेश करने के दिये आदेश: वहीं, दूसरी ओर आज उत्तराखंड हाईकोर्ट ने काशीपुर एलडी भट्ट उप जिला अस्पताल में पैथोलॉजी लैब के लिए स्वास्थ्य किट सप्लाई करने के लिए जारी टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर भी सुनवाई की. इस मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने टेंडर कर्ताओं को नोटिस जारी कर 3 सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है. वहीं, अब मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट ने 23 नवम्बर की तिथि नियत की है.
इस मामले के अनुसार काशीपुर निवासी मोहम्मद अहमद ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि काशीपुर के सरकारी हॉस्पिटल में पैथोलॉजी लैब में किट की सप्लाई के लिए जारी किए गए टेंडर एक ही परिवार के तीन लोगों को दे दिए गए. जो कि सरकारी धन का दुरुपयोग है. याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि इन टेंडर कर्ताओं में एक प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र का भी संचालन करता है जबकि वह इस टेंडर प्रकिया में प्रतिभाग नहीं कर सकता. याचिकाकर्ता ने मांग की है कि इसमें हुए घोटाले की जांच करायी जाए.