नैनीताल: प्रदेश में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति लिए बिना बनाए जा रहे 55 स्टोन क्रशरों के मामले पर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने राज्य सरकार को दो दिनों में जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.
बता दें कि रामनगर निवासी सर्वजीत सिंह और आनंद सिंह नेगी ने नैनीताल हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार ने एक साल के भीतर उत्तरकाशी, गंगोत्री, रुद्रप्रयाग, उखीमठ समेत प्रदेश के अन्य पहाड़ी जिलों में 55 स्टोन क्रशर लगाने की अनुमति दी है.
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साथ ही इन क्रशरों के निर्माण के लिए राज्य सरकार द्वारा पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति नहीं ली गई है, जो नियमों के खिलाफ है. वहीं याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकार द्वारा बनाए जा रहे इन स्टोन क्रशरों में ध्वनि प्रदूषण के मानक रात में 70 डेसीबल और दिन में 75 डेसिबल खुद ही तय कर दिए गए हैं. जबकि, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा आबादी क्षेत्र में स्टोन क्रशर स्थापित करने पर दिन में 55 डेसिबल और रात में 45 डेसीबल ध्वनि तय की गई है.
साथ ही याचिकाकर्ता का कहना है कि स्टोन क्रशर खोलने की अनुमति राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दी जाती है, लेकिन सरकार द्वारा बिना बोर्ड की अनुमति के ही प्रदेश में 55 क्रशर खोलने की अनुमति दे दी गई है. जिसके बाद मामले की सुनवाई करते हुए नैनीताल हाई कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार को जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.
कोर्ट ने क्रशरों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है. कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पूछा कि बिना बोर्ड की अनुमति के सरकार द्वारा प्रदेश में 55 स्टोन क्रशर कैसे बनाए जा रहे हैं.