नैनीतालः उत्तराखंड में वन रावत जनजाति के संरक्षण और उन्हें सरकार की जनहित की योजनाओं का लाभ दिए जाने को लेकर उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य व केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 6 नवंबर को होगी.
उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण यानी सालसा की ओर से नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. जिसमें उनका कहना है कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण पिथौरागढ़ ने वन रावत जनजाति का सर्वे किया है. ये जनजाति पिथौरागढ़, चंपावत और उधम सिंह नगर के जंगल एवं गांवों में रहती है. उनकी आबादी 850 के करीब है. इस सर्वे के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में वन रावतों की औसत आयु 55 साल से कम है. उनके गांव न्यूनतम स्वास्थ्य सेवाओं से कोसों दूर है.
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वन रावत के गांव से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 20 से 25 किमी दूर हैं. इन गांवों में सड़क, शिक्षा, बिजली, पानी आदि मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. जो आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. ये लोग वर्तमान दौर में भी अलग थलग हैं. सरकार वन अधिनियम के आधार पर वहां आवश्यक सुविधाएं मुहैया न हो पाने को आधार बनाती है.
जबकि, केंद्र सरकार के वन अधिकार अधिनियम 2006 में वन राजियों के गांवों में आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने में वन अधिनियम के नियमों में छूट प्रदान है. याचिका में वन रावतों की जरुरी सुविधाएं उपलब्ध कराने की अपील की गई है. बता दें कि कोरोना काल में हाईकोर्ट ने सरकार से इस हिमालयी जनजाति के लोगों के लिए टीकाकरण की व्यवस्था करने को कहा था.