नैनीतालः राज्य सरकार को खनन के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने पूर्व के आदेश को संशोधित कर दिया है. अब सरकार की ओर से खनन पट्टा देने के बाद वैध पट्टाधारकों को 2 साल के भीतर केंद्रीय पर्यावरण बोर्ड की अनुमति लेनी आवश्यक होगी, तब जाकर खनन कर सकेंगे. अभी तक इस प्रकिया पर रोक लगाई गई थी.
दरअसल, नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से नैनीताल, देहरादून, अल्मोड़ा और उधम सिंह नगर में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति लिए बिना ही खनन के पट्टे आवंटित किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया है.
मामले में हाईकोर्ट ने अपने पूर्व के आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि राज्य सरकार से स्वीकृत खनन पट्टे मिलने के बाद वैध पट्टाधारकों को दो साल के भीतर केंद्रीय पर्यावरण बोर्ड की अनुमति लेनी आवश्यक होगी. अगर केंद्रीय पर्यावरण बोर्ड की अनुमति नहीं ली जाती है तो उनके पट्टों का लाइसेंस स्वतः ही निरस्त माना जाएगा.
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इतना ही नहीं अगर इसके बाद भी बिना अनुमति के खनन होता है तो खनन निदेशक और सचिव खनन जिम्मेदार होंगे. बता दें कि इससे पहले कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. इस आदेश को संशोधन करने के लिए आज राज्य सरकार की तरफ से संशोधन प्रार्थना पत्र कोर्ट में पेश किया गया. जिसमें सरकार को राहत मिली है. क्योंकि, अब खनन पट्टा देने के बाद केंद्रीय पर्यावरण बोर्ड से अनुमति लेने की जिम्मेदारी पट्टा धारकों की होगी.
गौर हो कि नैनीताल निवासी तरुण शर्मा ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार ने नैनीताल, अल्मोड़ा, देहरादून और उधम सिंह नगर जिले में खनन टेंडर निकालने से पहले राज्य पर्यावरण बोर्ड की अनुमति नहीं ली. जो कि खनन नियमों का उल्लंघन है. जबकि, नियमावली के अनुसार खनन पट्टे आवंटित होने के बाद दो साल के भीतर अनुमति लेनी आवश्यक है. अनुमति न लेने पर नदियों के अवैध रूप से खनन किया जा रहा है. जिस पर रोक लगाई जाए.