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वन विभाग को पता ही नहीं बाघ है या गुलदार? सीधे दे दिए मारने के आदेश, HC ने मांगा जवाब

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 14, 2023, 7:05 PM IST

Forest Department Gave Permission to Kill Tiger Or Leopard in Nainital बाघ है या गुलदार? सीधे दे दिए मारने के आदेश. यह पूरा कारनामा वन विभाग का है. जिसका हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई की और वनाधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा. हाईकोर्ट की टिप्पणी थी कि किसी आदमखोर जानवर को मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संतुष्टि होनी जरूरी है. इसके अलावा वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट का ध्यान रखा जाता है, न कि किसी नेता के आंदोलन की. जानिए पूरा मामला...

Nainital High Court
नैनीताल उच्च न्यायालय

नैनीताल: भीमताल क्षेत्र में बाघ या गुलदार ने दो लोगों को अपना निवाला बनाया है. ऐसे में वन विभाग ने बिना चिन्हित किए सीधे मारने की अनुमति दी है. जिसका स्वतः संज्ञान लेकर हाईकोर्ट ने सुनवाई की. मामले में न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने वन विभाग से कहा कि हमलावर या हिंसक जानवर की पहचान करने के लिए कैमरे और पकड़ने के लिए पिजरें लगाएं. अगर पकड़ में नहीं आता है तो उसे ट्रेंकुलाइज कर रेस्क्यू सेंटर भेजें. कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि अभी तक यह पता नहीं है कि वो बाघ है या गुलदार. फिर कैसे मारने के आदेश दे दिए. वहीं, वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 11 A में उसे मारने के आदेश पर गुरुवार तक स्थिति स्पष्ट करने को कहा है.

दरअसल, नैनीताल हाईकोर्ट ने भीमताल में दो महिलाओं को मारने वाले हिंसक जानवर को नरभक्षी घोषित करते हुए उसे मारने के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन के आदेश का स्वतः संज्ञान लिया है. आज मामले में सुनवाई हुई. इस दौरान सरकार की तरफ से मुख्य स्थायी अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन धनंजय और डीएफओ चंद्रशेखर जोशी पेश हुए. मामले में खंडपीठ ने वन अधिकारियों से गुलदार को मारने की अनुमति देने के प्रावधान के बारे में जानकारी ली तो वो ठीक से इसका जवाब नहीं दे सके.

चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संतुष्टि होनी जरूरी, न कि किसी नेता के आंदोलन की: उनका कहना था कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 13 ए में हमलावर और खूंखार जानवर को मारने की अनुमति दी जाती है. उन्होंने उसे पकड़ने और पहचान करने के लिए 5 पिजड़े व 36 कैमरे लगा रखे हैं. जिस पर हाईकोर्ट ने उनसे पूछा कि गुलदार था या बाघ? उसे मारने के बजाए रेस्क्यू सेंटर भेजा जाना चाहिए. कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंसक जानवर को मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संतुष्टि होनी जरूरी है, न कि किसी नेता के आंदोलन की.
ये भी पढ़ेंः गुलदार ने मलवाताल और पिनरों के ग्रामीणों के उड़ाए होश! स्कूल करने पड़े बंद, 2 महिलाओं को बना चुका निवाला

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की जानकारी से करवाया अवगत: वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 11 ए के तहत तीन परिस्थितियों में किसी जानवर को मार सकते हैं. उसे पहले उस क्षेत्र से खदेड़ दिया जाता है, फिर ट्रेंक्यूलाइज कर रेस्क्यू सेंटर में रखा जाता है. आखिर में मारने जैसा अंतिम और कठोर कदम उठाया जा सकता, लेकिन विभाग ने बिना जांच के सीधे मारने के आदेश दे दिए.

वन विभाग को पता ही नहीं बाघ है या गुलदार? उन्हें यह तक पता नहीं है कि बाघ है या गुलदार, उसकी पहचान भी अभी तक वन विभाग नहीं कर पाई है. हाईकोर्ट ने कहा कि घर का बच्चा अगर बिगड़ जाता है तो उसे सीधे मार थोड़े दिया जाता है. सिर्फ क्षेत्र वासियों के आंदोलन के बाद उसे मारने के आदेश दे दिए. अब इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होगी.

नैनीताल: भीमताल क्षेत्र में बाघ या गुलदार ने दो लोगों को अपना निवाला बनाया है. ऐसे में वन विभाग ने बिना चिन्हित किए सीधे मारने की अनुमति दी है. जिसका स्वतः संज्ञान लेकर हाईकोर्ट ने सुनवाई की. मामले में न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने वन विभाग से कहा कि हमलावर या हिंसक जानवर की पहचान करने के लिए कैमरे और पकड़ने के लिए पिजरें लगाएं. अगर पकड़ में नहीं आता है तो उसे ट्रेंकुलाइज कर रेस्क्यू सेंटर भेजें. कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि अभी तक यह पता नहीं है कि वो बाघ है या गुलदार. फिर कैसे मारने के आदेश दे दिए. वहीं, वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 11 A में उसे मारने के आदेश पर गुरुवार तक स्थिति स्पष्ट करने को कहा है.

दरअसल, नैनीताल हाईकोर्ट ने भीमताल में दो महिलाओं को मारने वाले हिंसक जानवर को नरभक्षी घोषित करते हुए उसे मारने के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन के आदेश का स्वतः संज्ञान लिया है. आज मामले में सुनवाई हुई. इस दौरान सरकार की तरफ से मुख्य स्थायी अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन धनंजय और डीएफओ चंद्रशेखर जोशी पेश हुए. मामले में खंडपीठ ने वन अधिकारियों से गुलदार को मारने की अनुमति देने के प्रावधान के बारे में जानकारी ली तो वो ठीक से इसका जवाब नहीं दे सके.

चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संतुष्टि होनी जरूरी, न कि किसी नेता के आंदोलन की: उनका कहना था कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 13 ए में हमलावर और खूंखार जानवर को मारने की अनुमति दी जाती है. उन्होंने उसे पकड़ने और पहचान करने के लिए 5 पिजड़े व 36 कैमरे लगा रखे हैं. जिस पर हाईकोर्ट ने उनसे पूछा कि गुलदार था या बाघ? उसे मारने के बजाए रेस्क्यू सेंटर भेजा जाना चाहिए. कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंसक जानवर को मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संतुष्टि होनी जरूरी है, न कि किसी नेता के आंदोलन की.
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हाईकोर्ट की खंडपीठ ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की जानकारी से करवाया अवगत: वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 11 ए के तहत तीन परिस्थितियों में किसी जानवर को मार सकते हैं. उसे पहले उस क्षेत्र से खदेड़ दिया जाता है, फिर ट्रेंक्यूलाइज कर रेस्क्यू सेंटर में रखा जाता है. आखिर में मारने जैसा अंतिम और कठोर कदम उठाया जा सकता, लेकिन विभाग ने बिना जांच के सीधे मारने के आदेश दे दिए.

वन विभाग को पता ही नहीं बाघ है या गुलदार? उन्हें यह तक पता नहीं है कि बाघ है या गुलदार, उसकी पहचान भी अभी तक वन विभाग नहीं कर पाई है. हाईकोर्ट ने कहा कि घर का बच्चा अगर बिगड़ जाता है तो उसे सीधे मार थोड़े दिया जाता है. सिर्फ क्षेत्र वासियों के आंदोलन के बाद उसे मारने के आदेश दे दिए. अब इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होगी.

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