नैनीतालः हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में 20 हजार सीटों में केवल 1,625 बच्चों को ही प्रवेश दिए जाने के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने गढ़वाल विश्वविद्यालय को निर्देश दिए हैं कि स्थिति को सुधारने की कोशिश करें. ताकि, कोई भी छात्र उच्च शिक्षा से वंचित न रह पाएं. इतना ही नहीं विवि को एक हफ्ते के भीतर शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को जानकारी भी देनी होगी. इसके अलावा हाईकोर्ट ने मामले में यूजीसी, केंद्र सरकार और उत्तराखंड उच्च शिक्षा विभाग को नोटिस जारी किया है.
दरअसल, देहरादून निवासी रविंद्र जुगरान ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा है कि उत्तराखंड के एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि की 20 हजार सीटों में से 1,625 लोगों को ही प्रवेश मिल पाया. जिसका मुख्य कारण सीयूईटी यानी कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट रहा. इस टेस्ट का केंद्र मेरठ रखा गया था. जिससे उत्तराखंड के छात्र इस प्रवेश परीक्षा में शामिल नहीं हो पाए और उनको इसका पता तक नहीं चला.
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जबकि, केंद्र सरकार ने विश्वविद्यालय को इसमें छूट देकर कहा था कि इस टेस्ट को कराने की आवश्यकता नहीं है. इसके बाद भी यह टेस्ट कराया गया. जिसके चलते विश्वविद्यालय की हजारों सीटें खाली रह गई. 400 सीट वाले महिला महाविद्यालयों में तो 2 या 4 छात्रों को एडमिशन दिया गया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि सभी छात्रों के भविष्य को देखते हुए विश्वविद्यालय में खाली पड़ी सीटों को भरा जाए. ताकि, छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण कर अपना भविष्य संवार सके.
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वहीं, इस मामले की अगली सुनवाई 21 सितंबर को होगी. गौर हो कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एडमिशन लेने के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट अनिवार्य कर दिया गया. ऐसे में गढ़वाल विवि में यूजी और पीजी की कक्षाओं में एनटीए यानी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की ओर से आयोजित सीयूईटी प्रवेश परीक्षा के माध्यम से एडमिशन हो रहे हैं, लेकिन सीयूईटी की अनिवार्यता की वजह से विवि में काफी संख्या में सीटें खाली रह गई. जिसमें प्रदेश के छात्रों को विवि में प्रवेश तक नहीं मिल पाया. उधर, छात्र गढ़वाल विवि में प्रवेश में 50 फीसदी आरक्षण दिए जाने समेत अन्य मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं.
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