कालाढूंगी: 1999 में कारगिल में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष में भारतीय सेना की विजय पराक्रम और शौर्य की गाथा को पीढ़ियों तक प्रेरणा मिलती रहेगी. आज कारगिल विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ है. इस मौके पर राष्ट्र शहीद रणबांकुरों को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है.
1999 कारगिल युद्ध में शहीद हुए कालाढूंगी के चकलुवा निवासी मोहन चंद्र जोशी को आज नम आंखों से श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है. शहीद मोहन चंद्र जोशी के पवित्र पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन देशवासियों के लिए रखा था. भीड़ नम आंखों से खामोश होकर अपने वीर सपूत का अंतिम दर्शन करने कतार में खड़ी थी. भारत की बहादुर सेना ने 26 जुलाई को कारगिल की चोटियां दुश्मन से आजाद करवा ली थी. इस युद्ध में महज 19 वर्ष की आयु में शहीद मोहन चंद्र जोशी ने अपने साहस और पराक्रम से कारगिल युद्ध की विजयगाथा लिखकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. इसके साथ वे भारत पर कुर्बान होकर अमिट सितारे बन गए.
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कारगिल युद्ध भारतीय सेना के अदम्य साहस और बेजोड़ युद्ध कौशल के लिए समूचे विश्व में चर्चित रहा है. कारगिल वार में पाकिस्तान को धूल चटाने वाली भारतीय सेना ने देश को गर्व करने का बेमिसाल मौका दिया. इस युद्ध को देवभूमि के जवानों की शूरवीरता के लिए भी याद किया जाता है. ब्लॉक प्रमुख रवि कन्याल ने शहीद मोहन चंद्र जोशी को श्रद्धांजलि देकर नमन किया. साथ ही बताया कि देशप्रेमी और युवाओं के प्ररेणा स्रोत 19 वर्ष की आयु में देश की अस्मिता और अखंडता को बचाते हुए देश के लिए अपने जान की बाजी लगा दी. उनके इस अदम्य साहस और वीरता को वर्षों तक याद किया जाएगा.