हल्द्वानी: कुमाऊं के पहाड़ों के लगातार हो रहे दोहन से प्रकृति पर खतरा मंडरा रहा है. ऐसे मानव जनित कारणों से हर साल आपदा का खतरा बढ़ जाता है. इसके बावजूद भी लगातार यहां पहाड़ों का दोहन किया जा रहा है. कुमाऊं के पहाड़ों से सबसे ज्यादा काम उप खनिज और खड़िया खनन कारोबार का है. ऐसे में लगातार हो रहे पहाड़ों के दोहन से जहां पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है तो वहीं सदियों पुराने जलस्रोत, नौले और धारे भी खत्म हो रहे हैं.
बागेश्वर जनपद में खड़िया खनन का कारोबार भी लगातार फल फूल रहा है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि खनन कारोबार के लिए लगातार पहाड़ों का दोहन हो रहा है. कई ऐसे कारोबारी हैं जो पहाड़ों का दोहन कर करोड़ों रुपए का कारोबार कर रहे हैं लेकिन, इनसे राजस्व के नाम पर सरकार प्रति वर्ष केवल 10 करोड़ रुपए ही पाती है. जबकि यहां पर सॉपस्टोन का कारोबार करीब ₹150 करोड़ से अधिक का है.
बागेश्वर में कब हुई थी पहली बार माइनिंग
बागेश्वर में पहली बार 1976 में खड़िया माइनिंग की शुरुआत की गई थी. यहां वर्तमान में करीब 95 स्वीकृत खड़िया खदान हैं. जिसमें करीब 60 खदानों से अभी भी खड़िया खदान का काम चल रहा है. जिससे लगभग पांच दर्जन से अधिक गांवों पर आज भी खतरा मंडरा रहा है.
वहीं, बात नैनीताल जनपद की करें तो यहां पर बड़े पैमाने पर उप खनिज खनन का कारोबार किया जाता है. जिससे सरकार को हर साल करोड़ों का राजस्व भी मिलता है लेकिन, राजस्व के नाम पर इन नदियों का सीना चीर कर नदियों और पहाड़ को खोखला किया जा रहा है.
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कुमाऊं मंडल की गौला नदी, कोसी नदी, दाबका नदी, नंधौर नदी और शारदा नदी से बड़े पैमाने पर खनन का कारोबार किया जाता है. इन नदियों से 2 हजार 342 हेक्टेयर क्षेत्रफल में खनन का कारोबार किया जाता है. जिससे सरकार को करीब 200 करोड़ के राजस्व की प्राप्ति होती है. वहीं, उप खनिज के नाम पर हर साल 15 हजार करोड़ का कारोबार किया जाता है.
हल्द्वानी के एमबीपीजी कॉलेज के भूगोल प्रोफेसर एसएन सिद्ध ने बताया कि पहाड़ों का दोहन हिमालय क्षेत्रों में लगातार लैंडस्लाइड की घटनाओं को बढ़ा रहा है. यही नहीं लगातार हो रहे पहाड़ों के दोहन के चलते पहाड़ों पर पानी के स्रोत बंद हो रहे हैं. नौले और धारे सूखने की कगार पर हैं. यही मुख्य कारण है जिससे पहाड़ों पर पानी का संकट खड़ा हो रहा है.