हल्द्वानी: सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी हल्द्वानी की एक संस्था ने मानव जाति बचाओ अभियान के अंतर्गत निर्दोष पुरुषों को झूठे केसों में फंसाकर हो रहे अत्याचार से मुक्ति दिलाने का बीड़ा उठाया है. भारत सरकार से पुरुष आयोग एवं पुरुष कल्याण मंत्रालय बनाकर झूठे मुकदमे में फंसे निर्दोष पुरुषों को संरक्षण देने के लिए संस्था के पदाधिकारियों ने केंद्रीय पेट्रोलियम राज्य मंत्री रामेश्वर तेली से मुलाकात कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ज्ञापन भेजा है.
पुरुषों के उत्पीड़न के खिलाफ उठाई आवाज: एक समाज, श्रेष्ठ समाज संस्था के अध्यक्ष योगेन्द्र कुमार साहू ने कहा कि प्राचीन काल से पुरुषों ने महिलाओं के सम्मान और विकास में प्रगति और उन्नति लाने के लिए हमेशा ही दृढ़ता के साथ संघर्ष किया है. आगे भी ये काम करते रहेंगे. अब कुछ बदलती परिस्थितियों के अनुसार निर्दोष पुरुषों को भी छेड़छाड़, मारपीट, यौन शोषण, दहेज उत्पीड़न और बलात्कार के झूठे केसों में फंसाया जा रहा है. ये अब धीरे-धीरे चिंता का विषय बन रहा है.
महिला के आरोप पर पुरुष को होती है सजा: बहुत से निर्दोष पुरुष झूठे मुकदमे में जेल में बंद हैं. कई बार पुरुष अपने निर्दोष होने के सबूत भी देते हैं तो उन्हें नहीं माना जाता है. महिला के कहने भर से पुरुषों को अपराधी मान लिया जाता है. फिर पुरुषों को फंसाए गए झूठे केसों से समझौते के आधार पर लाखों रुपए की मोटी रकम मांगी जाती है. मजबूर पुरुष अपने मान सम्मान को बचाने के लिए इधर उधर से कर्जा लेकर इनकी मांगों को पूरी करते हैं. इस तरह कुछ लोगों ने महिलाओं को दिए गए विशेष अधिकारों के कानूनों का दुरुपयोग कर पुरुषों से मोटी रकम कमाने का व्यापार बना लिया है.
झूठे केस में फंसाए जा रहे पुरुष: योगेंद्र कुमार साहू ने कहा कि पुरुष मांगे गए रुपए नहीं दे पाते हैं तो उन्हें किसी झूठे केस में फंसाकर जेल भेज दिया जाता है. इससे पुरुष पर चौतरफा मार पड़ती है. यही नहीं मुकदमे में फंसने के बाद पुरुष का भविष्य अंधकार में चला जाता है. दूसरी ओर समाज में उसके प्रति घृणा पैदा हो जाती है. ऐसा पुरुष परिवार की जिम्मेदारी से दूर हो जाता है.
शोषण से तनाव में हैं पुरुष: इस कारण से पुरुष मानसिक तनाव में चला जाता है. फिर तनाव के चलते आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर देता है. इसके लिए सीधे सीधे जिम्मेदार हमारे देश की न्याय प्रणाली की है. क्योंकि यदि पुरुषों के संरक्षण के लिए पुरुष आयोग एवं पुरुष कल्याण मंत्रालय होता तो आत्महत्या करने वाला पुरुष अपनी पीड़ा को आयोग के सामने रखकर अपनी कानूनी लड़ाई सामाजिक तौर से लड़ता. लेकिन ऐसा नहीं है. जबकि महिलाओं के संरक्षण के लिए करीब पचास कानून और उनके लिए काम करने वाले दस हजार से अधिक एनजीओ, फिर अलग से मंत्रालय और आयोग भी हैं.
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पुरुष आयोग बनाने की मांग: झूठे आरोपों में फंसाने के बावजूद पुरुषों की रक्षा के लिए न कोई सख्त कानून है, न मुफ्त कानूनी सहायता. पुरुषों के कल्याण के लिए सरकारी योजनाओं में कोई अलग से बजट भी नहीं है. इसीलिए आज पुरुष समाज इतना कमजोर हो चुका है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष लगभग तीन गुना ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं. इसलिए अब भारत सरकार पुरुषों के संरक्षण के लिए तुरन्त पुरुष कल्याण मंत्रालय एवं पुरुष आयोग बनाए, ताकि झूठे केसों में फंसे निर्दोष पुरुषों को न्याय मिल सके.